रामनगर की रामलीला: बहू-बेटी पर कुदृष्टि रखने वाले को मार डालना पाप नहीं, श्रीराम ने किया बालि वध
रामनगर की रामलीला: वाराणसी के रामनगर की रामलीला की 18वीं लीला का मंचन किया गया. शुक्रवार को बालि वध, सुग्रीव का राजतिलक, अंगद को युवराज पद व वर्षा वर्णन की लीला संपन्न हुई. लीला के प्रथम चरण में श्रीराम का बल पाकर सुग्रीव अपने भाई बालि को युद्ध के लिए ललकारता है, बालि अपनी पत्नी के मना करने के बावजूद युद्ध भूमि में जाता है. बालि और सुग्रीव की लड़ाई में घायल होकर सुग्रीव प्रभु श्रीराम की शरण में जाता है.
युद्ध के दौरान ही श्रीराम एक वृक्ष की ओट लेकर बाण से बालि का वध करते हैं. मरणासन्नट बालि ने धर्म का प्रश्न उठाया तो प्रभु ने उत्तर दिया कि अनुज वधू, भंगिनी, पुत्रवधू और पुत्री चारों समान हैं. इन पर कुदृष्टि रखने वाले को मारना कहीं से भी पाप नहीं है. श्रीराम बालि की पत्नी तारा का करुण-क्रंदन सुन उसे ज्ञान प्रदान कर सारी माया हर लेते हैं. सभी बालि का अंतिम संस्कार करते हैं. वहीं प्रवर्षण पर्वत पर श्रीराम ने वर्षा का सजीव वर्णन किया.
सागर पार जाने को जामवंत ने हनुमान को याद दिलाया बल
राज खजाना, नगर व स्त्री के मद में प्रभु को भूले सुग्रीव के प्रति आक्रोश जताते हुए श्रीराम लक्ष्मण को उसे बुलाने की आज्ञा देते हैं. हनुमान भी सुग्रीव को समझाते हैं. सुग्रीव टालने के अंदाज में वानर सेना को सीता को खोजने के लिए भेजता है. सुग्रीव की बात सुनते ही लक्ष्मण क्रोधित हो उठते हैं. लक्ष्मण के क्रोध को शांत करते हुए युवराज अंगद सभी को लेकर श्रीराम की शरण में जाते हैं. वहां सभी को अलग-अलग दिशाओं में भेजा जाता है. हनुमान को बुलाकर श्रीराम उन्हें एक अंगूठी देते हैं. सीता को खोजते हुए हनुमान व वानर सेना एक गुफा के पास पहुंचते हैं. जहां गंधर्व पुत्री स्वयंप्रभा से उनकी भेंट होती है.
वही वानर सेना को समुद्र तट के पास पहुंचाती है. सीता का पता न चलने पर वानर सेना समुद्र तट पर दुखी हो बैठती है तभी गिद्धराज सम्पाती वानरसेना को देख प्रसन्नता व्यक्त करते हैं. लेकिन अंगद की मुख से रावण द्वारा सीता हरण, जटायु वध व अन्य बाते सुन दुखी हो जाते हैं. सम्पाती अपनी गिद्धदृष्टि से देख उन्हें सीता के अशोक वाटिका में रहने की बात बताते हैं. विशाल समुद्र को देख इसे कैसे पार करेंगे यह सभी सोच में पड़ गए तभी जामवंत के याद दिलाने पर हनुमान पर्वतकार हो गर्जन करते हैं. जामवंत उन्हें सिर्फ सीता का पता लगाकर आने की बात कहकर लंका भेजते हैं. इसी पर आरती के पश्चात लीला को विश्राम दिया जाता है.