हिंदी भाषी प्रदेशों में बंद हुई राहुल गांधी की ‘मोहब्बत की दुकान’….
राहुल गांधी के वह दांव जिससे कांग्रेस पूरी तरह से फेल हो गई...
Election: देश में आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के महज 5 महीने ही बचे हैं. इससे पहले पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव को भाजपा व कांग्रेस लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल के रूप में देख रही थी. इस बीच सेमीफाइनल में कांग्रेस की हार उसके लिए एक सबक बन गई है. चार राज्यों के चुनाव नतीजे में तीन राज्य हिंदी पट्टी क्षेत्र से आते हैं जिसमें मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की एक तरफा जीत हुई है. लोकसभा चुनाव से पहले इस जबरदस्त जीत से भाजपा का दिल बाग बाग होना लाजमी है. मध्य प्रदेश में जहां भारतीय जनता पार्टी प्रचंड जीत के साथ अपनी सत्ता को बचाने में कामयाब हुई है वहीं राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी ने कांग्रेस की सत्ता को उखाड़ फेंका है. राजस्थान में तो वैसे भी पिछले कई पंचवर्षीय से हर बार सत्ता परिवर्तन की परंपरा रही है लेकिन छत्तीसगढ़ का कांग्रेस के हाथ से फिसलना ग्रैंड ओल्ड पार्टी के लिए जबरदस्त झटका की तरह है. हालांकि तेलंगाना में पार्टी ने BRS की विजय रथ को रोकते हुए पहली बार दक्षिण भारत में किसी राज्य में किसी पार्टी की हैट्रिक का करिश्मा करने से भी रोक दिया है लेकिन हिंदी भाषी पट्टी क्षेत्र में राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान नहीं चल पाई. जहां भी राहुल गांधी गए वहां पर लोगों ने उनकी दुकान का शटर ही डाउन कर दिया.
तो आईए जानते हैं राहुल गांधी के वह दांव जिससे कांग्रेस पूरी तरह से फेल हो गई…
आपको बता दें कि जहां भी विधानसभा चुनाव हुए राहुल गांधी सभी जगह भारत जोड़ो यात्रा के दौरान आए एक शब्द ‘मोहब्बत की दुकान’ का जिक्र करते रहे. बीजेपी को ‘नफरत फैलाने’ वाला करार देते रहे लेकिन मोहब्बत की दुकान व ‘पनौती’ जैसे शब्दों को जनता ने भाव नहीं दिया. राजस्थान में चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘पनौती’ शब्द का इस्तेमाल किया था. बता दे कि राहुल गांधी ने कहा कि क्रिकेट वर्ल्ड कप फाइनल में भारत के लड़के अच्छा खासा मैच जीत रहे थे लेकिन ‘पनौती’ ने हरवा दिया. एक चुनावी रैली में पीएम ने बिना राहुल गांधी का नाम लिए ”मूर्खों का सरदार” का मखौल उड़ाया था. शायद उसी के जवाब में राहुल गांधी ने पनौती वाला वार प्रधानमंत्री मोदी पर किया लेकिन शायद राहुल गांधी या गलती कर गए .
आपको बता दें कि नरेंद्र मोदी खुद पर हुए निजी हमले को भुनाने में माहिर हैं या कोई पहला मौका नहीं था जब मोदी ने कांग्रेस पर हमला किया हो इससे पहले भी जब विपक्ष ने पीएम मोदी को लेकर कुछ निजी हमले किए हैं तो उन्होंने अपने पक्ष में एक तरह की सहानुभूति लहर पैदा करने में कामयाबी हासिल की है.
मोदी का चेहरा ही पार्टी के लिए असली हीरो
इस जीत का असली सेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है. बीजेपी ने इन चुनाव में किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरा घोषित नहीं किया था. पूरा नाम सामूहिक नेतृत्व प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर लड़ा गया था. लेकिन या कोई पहले ही बार नहीं है जब बिना मुख्यमंत्री चेहरे के चुनाव लड़ा गया हो इससे पहले भी भाजपा ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में बिना सीएम कैंडिडेट घोषित किया चुनाव लड़ा था लेकिन दोनों ही राज्यों में यह प्रयोग बुरी तरह फेल हुआ और उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा. लेकिन इस बार हिंदी पट्टी क्षेत्र में प्रधानमंत्री मोदी ने जमकर प्रचार किया और खूब रोड शो भी किए है.
नहीं चला कांग्रेस का जाति जनगणना का जादू
आपको बता दें कि 2 अक्टूबर को बिहार में जाति जनगणना के नतीजे का औपचारिक ऐलान हुआ था जिसके बाद कांग्रेस सभी राज्यों में सरकार बनने पर जाति जनगणना की मांग उठा रही थी. ओबीसी वर्ग में भाजपा की काट के लिए उसने राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना का राग छोड़ दिया. 9 अक्टूबर को जिस दिन 5 राज्यों में चुनाव तारीखों का ऐलान हुए उसी दिन कांग्रेस की मीटिंग में प्रस्ताव पास हुआ कि केंद्र में सत्ता आते ही पूरे देश में जाति जनगणना कांग्रेस करावेगी. चारो तरफ आवाज उठने लगी की ”जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी” का नारा बुलंद होने लगा.
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कांग्रेस की गारंटी पर भारी पड़ी मोदी की गारंटी
आपको बता दें कि चुनाव में भाजपा समेत कई दलों ने भी लोग लुभावना वादे किए. राजस्थान और छत्तीसगढ़ की अपनी सरकारों की लोक कल्याणकारी योजनाओं के अलावा कांग्रेस ने अपनी चुनावी गारंटी में कर्ज माफी,मुफ्त बिजली और सस्ते गैस सिलेंडर ,बेरोजगारी भत्ता, महिलाओं के लिए कैश समेत कई लोग भवन वादे किए थे. इसके पहले मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी साल में ”लाडली बहन योजना” का ऐलान करके बड़ा ट्रंप का खेल और उसी के साथ हर महीने एक ₹1000 की सहायता राशि दी गई बाद में से बढ़कर 1250 रुपए कर दिया गया और आगे से ₹3000 महीने करने का वादा किया गया. वहीं, दूसरी तरफ पीएम मोदी अपनी रैलियों में कांग्रेस के वादों को “मुक्त की रेवड़ी कह इन योजनाओं को खारिज कर रहे थे और बीजेपी के वादों को “मोदी की गारंटी” बता रहे थे. नतीजा को इस रूप में देखा जा सकता है कि जनता ने “कांग्रेस की गारंटीयों” के ऊपर “मोदी की गारंटी” को रखा है जिसके चलते तीनों राज्यों में भाजपा -कांग्रेस पर भारी दिखाई दी.
कांग्रेस को अंतर्कलह की चुकानी पड़ी कीमत
आपको बता दें कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की अंदर खाने चल रहा है झगड़ा उसे ले डूबी. 5 साल के कार्यकाल के दौरान अक्सर अशोक गहलोत और सचिन पायलट तो वहीं, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टी.एस सिंह देव के आपसी झगड़े चर्चा का विषय रहे हैं. लेकिन चुनाव से पहले कांग्रेस की आलाकमान दोनों ही राज्यों में सभी नेताओं को साधने की कोशिश की. कांग्रेस ने लगातार यह संदेश देने की कोशिश की की सभी एक है और कोई गुटबाजी नहीं है लेकिन चुनाव परिणाम पार्टी के भीतर एकजुट के दावे की हवा निकालते दिख रहे हैं.