इन मामलों के लिए जाने जाते हैं प्रशांत भूषण…

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जाने माने वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण को उच्चतम न्यायालय की आवमानना के एक मामले में दोषी ठहराया गया है। प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायधीश और चार अन्य पूर्व मुख्य न्यायधीशों को लेकर ट्वीट को लेकर यह फैसला आया है।

जस्टिस अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की तीन जजों की इस बेंच ने कहा कि यह अवमानना का गंभीर मामला है। इस बेंच में जस्टिस अरुण मिश्र के अलावा जस्टिस बीआर गावी और जस्टिस कृष्णा मुरारी थे।

कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट एक्ट, 1971 के तहत इस मामले में प्रशांत भूषण को अधिकतम छह माह तक की सजा हो सकती है या फिर दो हजार रूपये का जुर्माना लगाया जा सकता है या फिर दोनों सजा सुनाई जा सकती है।

पिछले दिन जिन मामलों को लेकर प्रशांत भूषण चर्चा में रहे हैं, उनमें प्रमुख ये हैं-

पीएम केयर्स फंड पर सवाल-

सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की ओर से प्रशांत भूषण ने जनहित याचिका दाखिल करके कोविड-19 महामारी का मुकाबला करने में राहत कार्यों के लिए पीएम केयर्स फंड से एनडीआरएफ को फंड ट्रांसफर करने की मांग की थी।

इसके जवाब देते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि पीएम केयर्स फंड के बनाने पर कोई रोक नहीं है क्योंकि यह राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से स्वतंत्र और अलग है जो आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत निर्धारित है।

लॉकडाउन में फंसे मजदूरों के हक की मांग-

प्रशांत भूषण के माध्यम से लॉकडाउन के दौरान यह याचिका अप्रैल, 2020 के दौरान दाखिल की गई जिसमें देश भर में फंसे लाखों प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक सुरक्षित भेजने की मांग की गई थी।

इस याचिका के जवाब में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सरकार वास्तव में प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए अपने स्तर पर अच्छा कर रही है।

राफेल मामले में पुनर्विचार याचिकाएं-

सुप्रीम कोर्ट में प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने भारत सरकार की ओर से फ्रांसीसी कंपनी दैसो एविएशन से 36 राफेल जेट खरीदने के सौदे में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच को फिर से करने के लिए पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी।

लेकिन तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और केएम जोसेफ की पीठ ने 14 नंवबर, 2019 को इनकी पुनर्विचार याचिकाओं को सुनवाई के योग्य नहीं माना था।

आरटीआई को कमजोर करने की कोशिश-

केंद्र और राज्य सूचना आयोगों में सचूना आयुक्तों के रिक्त पदों को भरने के लिए याचिका तो वैसे अंजलि भारद्वाज की थी लेकिन भारद्वाज के वकील प्रशांत भूषण ही थे। इस मामले में तर्क देते हुए प्रशांत भूषण ने कहा था कि केवल जो भ्रष्ट हैं वो इस क़ानून से डरते हैं।

तब मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबड़े ने कहा था कि हर कोई अवैध नहीं कर रहा है।

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