प्रियंका ने इंदिरा के बेलछी दौरे की याद ताजा कर दी
प्रदीप कुमार
सोनभद्र के घोरावल मे जघन्य नरसंहार के आदिवासी पीड़ितों से मिलने जा रहीं प्रियंका ग़ांधी को नारायणपुर में रोके जाने पर उनका धरना और फिर प्रशासन द्वारा उन्हें हिरासत में लिए जाने की कारवाई न जाने क्यों इंदिरा जी के बेलछी दौरे की याद ताजा कर गई । घटनाक्रम की कुछ बातों को छोड़ कर अगर हौसला , इरादा और तेवर को आधार बनाया जाए तो तकरीबन सब कुछ वैसा ही नजर आता है । आज की तरह ही बेलछी नरसंहार के दौरान सत्ता से बेदखल कांग्रेस विपक्ष में बेहद कमजोर स्थिति में थी । लगता था कांग्रेस खत्म हो गई , इंदिरा युग का खात्मा हो गया पर बेलछी के एक दौरे से इंदिरा गांधी और कांग्रेस ने संघर्ष का ऐसा रास्ता पकड़ा जिसके चलते 1980 आते आते जनता ने एक बार फिर कांग्रेस के हाथ में सत्ता की बागडोर थमा दी बल्कि फिर से इंदिरा युग की वापसी को सम्भव बना दिया ।
आखिर क्या था बेलछी कांड ?
सियासत और उसके बाहर जवान हुई नई पीढ़ी को शायद यह वाकया न मालूम हो पर जो राजनीति के पुरनिये हैं वो अभी भी उसकी चर्चा गाहे बगाहे करते रहते हैं। अतीत के घटनाक्रम भले ही ठीक उसी तरह खुद को दोहराते न हो पर राजनीति में भविष्य की इबारत लिखने में भूमिका जरूर अदा करते हैं । आखिर क्या था बेलछी कांड और कैसे हाथी पर सवार होकर इंदिरा जी पहुंची थी वहाँ ?
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खबर आई अगस्त 1977 में बिहार के बेलछी में एक बड़ा नरसंहार हुआ है
खबर आई अगस्त 1977 में बिहार के बेलछी में एक बड़ा नरसंहार हुआ है।कई हरिजन परिवारों को सवर्ण दबंगों ने आग में झोंक दिया, इंदिरा फौरन वहां के लिए निकल पड़ीं. प्लेन से पटना गईं और फिर वहां से कार से बिहार शरीफ पहुंची. बिहार शरीफ में भारी बारिश हो रही थी, बेलछी जाने से हर किसी ने रोका, लेकिन इंदिरा ने जिद पकड़ ली. शाम हो रही थी, ना नावें थीं और ना कोई और तरीका जिससे कि उफनती नदी पार हो जाए। कांग्रेसियों ने बहुत समझाया कि आगे रास्ता एकदम कच्चा और पानी से लबालब है लेकिन वे पैदल ही चल पड़ीं, मजबूरन साथी नेताओं को उन्हें जीप में ले जाना पड़ा मगर जीप कीचड़ में फंस गई। फिर उन्हें ट्रैक्टर में बैठाया गया तो वह भी गारे में फंस गया।
इंदिरा तब भी अपनी धोती थामकर पैदल ही चल दीं तो मोती नाम का एक हाथी मंगाया गया, हाथी के ऊपर हौदा भी नहीं था, केवल एक कम्बल हाथी की पीठ पर कसा हुआ था।बमुश्किल इंदिरा बैठीं और पीछे बिहार कांग्रेस नेता प्रतिभा सिंह बैठ गईं। इतने खराब मौसम में इंदिरा केवल महावत और एक महिला साथी के साथ साढ़े तीन घंटे तक बिना हौदे के हाथी पर सफर करती रहीं।उनके इस दौरे ने गांव के लोगों का दिल जीत लिया।लौटने तक केवल एक सेव ही खाया था इंदिरा जी ने।
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बेलछी गांव तब नरसंहार के कारण सुर्खियों में था
उनके इस दुस्साहस की बराबरी पक्ष-विपक्ष का कोई भी नेता नहीं कर पाया।बमुश्किल 500 बेहद गरीब लोगों का बेलछी गांव तब नरसंहार के कारण सुर्खियों में था। अगले दिन हाथी पर बैठीं इंदिरा की ये तस्वीर देश विदेश की मीडिया की सुर्खियां बन गईं।इंदिरा के कार्यकर्ताओं में फिर से विश्वास लौट आया. इंदिरा को लेकर लोगों के मन में जो गुस्सा था वो इस घटना से काफी हद तक दूर हो गया, रही सही कसर इंदिरा गांधी की दो गिरफ्तारियों और जनता सरकार की आपसी फूट ने कर दिया।
सियासत में तब से अब तक काफी कुछ बदला । सोच बदली, चरित्र बदला , नैतिक मूल्य गहरी खाई में दफ्न हो गए , अगर कुछ नहीं बदला तो वो है संधर्ष की हकीकत । लोगों के दुख दर्द में उनके बीच जाइये , उनका दर्द महसूस कीजिये , उनकी तकलीफों की आवाज बनिये । जनता से जुड़ कर उनके हक हकूक की आवाज बुलंद कीजिये। शहर की सड़क और गांव की पगडंडी को आंदोलन की आंच से गर्म करिए , तभी संसद को आवारा होने और सत्ता को बेलगाम होने से रोका जा सकता है।
प्रियंका अपनी दादी के इस तेवर को आगे भी जारी रखेगीं
अब प्रियंका अपनी दादी के इस तेवर को आगे भी जारी रखेगीं या नहीं वो कामयाब होगीं या नहीं ये तो भविष्य के गर्भ में है पर लगता है कि कांग्रेस का नेतृत्व खुद में बदलाव की प्रसव पीड़ा से गुजर रहा है। वैचारिक शून्यता और चरित्र के संकट की सियासी धुंध सिर्फ संघर्ष से ही छँटेगी । और कोई रास्ता न है और न होगा । वैसे इस साहस और तेवर के लिए शाबास प्रियंका।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)