बोध वृक्ष लगाकर पीएम मोदी ने नालंदा यूनिवर्सिटी के न्यू कैंपस का किया उद्घाटन
पीएम मोदी बुधवार को बिहार के राजगीर में ऐतिहासिक नालंदा यूनिवर्सिटी के न्यू कैंपस का उद्घाटन किया . इस कार्यक्रम के लिए पीएम मोदी तय समय पर नालंदा यूनिवर्सिटी पहुंचे और उन्होंने विश्वविद्यालय की पुरानी धरोहर को करीब से देखा. इसके बाद वे न्यू कैंपस पहुंचे. यहां पहुंचकर उन्होंने बोध वृक्ष लगाया और फिर न्यू कैंपस का उद्घाटन किया.
न्यू कैंपस में इन देशों ने की भागीदारी
नालंदा विश्वविद्यालय में भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओस, मॉरीशस, म्यांमार, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम देशों के राजदूतों ने भागीदारी की है. इन देशों के राजदूतों ने विश्वविद्यालय का समर्थन करने के लिए समझौता पत्रों पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके अलावा कई देशों के छात्रों ने आने वाले सेशन में पीएचडी पाठ्यक्रम के लिए आवेदन किया है. नालंदा विश्वविद्यालय ने अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों के लिए 137 स्कॉलरशिप प्रदान किया है. विश्वविद्यालय में फिलॉसफी, बौद्ध धर्म, तुलनात्मक धर्म, इतिहास, पारिस्थितिकी और पर्यावरण अध्ययन के लिए अलग-अलग संस्थाएं हैं.
क्या कुछ खास है नालंदा के इस न्यू कैंपस में ?
नालंदा विश्वविद्यालय के दो अकेडमिक ब्लॉक है, जिसमें 40 क्लासरूम है. यहां पर 2000 बच्चों के बैठने की व्यवस्था की गयी है. यूनिवर्सिटी में दो ऑडिटोरयम भी हैं जिसमें प्रत्येक में 300 सीटें हैं. इसके अलावा, एक अंतर्राष्ट्रीय केंद्र और एम्फीथिएटर बनाया गया है, जिसमें दो हजार लोग बैठ सकते हैं. यही नहीं, छात्रों के लिए स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स और फैकल्टी क्लब भी हैं. नालंदा विश्वविद्यालय का कैंपस “NET ZERO” है, जिसका अर्थ है कि यहां पर्यावरण अनुकूल शिक्षा और गतिविधियां होती हैं. कैम्पस में पानी को रिसाइकल करने के लिए एक प्लांट लगाया गया है, जिसमें 100 एकड़ की वॉटर बॉडीज और कई सुविधाएं हैं जो पर्यावरणीय रूप से अनुकूल हैं.
16 सौ साल पुरानी यूनिवर्सिटी है नालंदा
नालंदा यूनिवर्सिटी का इतिहास लगभग 1600 साल पुराना है जिसकी स्थापना पांचवीं सदी में हुई थी. उस समय पर नालंदा यूनिवर्सिटी दुनिया भर के छात्रों के लिए एक आर्कषण का केंद्र हुआ करती थी. विशेषज्ञों का कहना है कि, 12वीं शताब्दी में आक्रमणकारियों ने इन विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया था. इससे पहले इस प्राचीन विश्वविद्यालय ने 800 साल पहले तक अनगिनत विद्यार्थियों को शिक्षा दी थी. इसे गुप्त राजवंश के राजा गुप्त प्रथम ने बनाया था. पांचवीं सदी में निर्मित इस प्राचीन विश्वविद्यालय में लगभग 10 हजार विद्यार्थी पढ़ते थे, जिसमें 1500 शिक्षक थे.
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छात्रों में अधिकांश बौद्ध भिक्षु चीन, कोरिया और जापान से आए थे. वहीं इतिहासकारों की मानें तो, सातवीं सदी में चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने भी नालंदा से शिक्षा ग्रहण की थी. जिसके बाद अपने द्वारा लिखी गयी किताब में उन्होने नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता के विषय में काफी कुछ लिखा है. बता दें कि, यह विश्वविद्यालय हमेशा से ही बौद्ध के दो सबसे अहम केंद्रों में एक रही थी, यह प्राचीन भारत के ज्ञान और बुद्धिमत्ता के प्रसार में योगदान का गवाह है.