Padma Award: काशी की कला व संगीत को पहचान देने वालों को मिला सम्मान
दुनिया भर में फैली काष्ठ कला की चमक
Padma Award: पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी गयी है. इस बार यह सम्मान पाने वालों की सूची में एक बार फिर काशी की कला और संगीत को तरजीह दी गयी. संगीत की साधना के लिए मरणोपरांत संगीतज्ञ पंडित सुरेंद्र मोहन मिश्र को तो खिलौना उद्योग को नई पहचान दिलाने के लिए हस्त शिल्पी गोदावरी सिंह को पद्मश्री से सम्मा नित किया गया है.
गृह मंत्रालय की ओर से दिए जाने वाले पद्म पुरस्कार के लिए इस बार काशी से 32 लोगों ने अर्जी लगायी थी. इनमें कोई भी इस योग्य नहीं मिला. बनारस से संगीतज्ञ पंडित सुरेंद्र मोहन मिश्र को मरणोपरांत पद्मश्री पुरस्काार मिलने की जानकारी पर उनके परिवारीजनों के साथ ही उनके शिष्य गुरु को याद कर भावुक हो गये. उधर, हस्त शिल्पी गोदावरी सिंह का नाम शामिल होने की जानकारी मिलने पर लोगों ने उन्हें शुभकानायें दी.
दुनिया भर में फैली काष्ठ कला की चमक
खोजवा कश्मीरीगंज निवासी गोदावरी सिंह ने पांचवीं के बाद पढ़ाई नहीं की है. उन्होंने अपनी कला के हुनर के जरिये देश-विदेश में अपनी अलग कला की पहचान बनाई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इनको बधाई दे चुके हैं. गोदावरी सिंह ने बताया कि सबसे पहले 1970 में लकड़ी के खिलौने का निर्यात किया था.
कुछ विषम परिस्थितियों की वजह से केवल कक्षा पांच तक पढ़ाई की, लेकिन कला के क्षेत्र में जो जुनून था, उसमें समय बढ़ने के साथ ही तकनीक और विकास का सहारा लेते हुए शिल्प कला को पहचान दिलाने में साधना रत हैं. उन्होंने कहा कि जर्मनी, अमेरिका, यूरोप अब सहित दुनिया भर में अब भी लकड़ी के खिलौने की बहुत डिमांड है. लोगों की मांग के हिसाब से खिलौनों को तैयार कर बाहर भेजने का काम किया जाता है.
शास्त्रीय, उपशास्त्रीय तथा सुगम संगीत के पुरोधा थे पंडित सुरेंद्र
रामापुरा निवासी बनारस घराने के मुर्धन्य संगीतज्ञों में शुमार पंडित सुरेंद्र मोहन मिश्र की पहचान मंच से लगाव न रखने वाले गुरु के रूप में ज्यादा थी. पिछले साल नवंबर में उनका निधन होने के बाद से उनके शिष्य अपने गुरु के संकल्प को पूरा करने में लगे हैं. बीएचयू संगीत एवं मंच कला संकाय, अन्य विश्वविद्यालयों, संगोत महाविद्यालयों और विदेशों में भी उनके शिष्य हैं. पंडित सुरेंद्र मोहन तीन विधाओं के मर्मज्ञ थे. शास्त्रीय, उपशास्त्रीय के साथ सुगम संगीत में जो उनको पकड़ थी. उनको पद्मश्री मिलने पर शिष्यों व उनके चाहने वालों ने श्रद्धांजलि दी.
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मिर्जापुरी कजरी पिया मेहंदी मंगाइ द मोतीझील से मिली पहचान
लोक गायिका उर्मिला श्रीवास्तव पद्मश्री मिलने के बाद आल्हाोदित हैं. पचास साल से अधिक समय से मिर्जापुरी कजरी गाने वाली उर्मिला का कहना है कि गुरुवार को फोन से पदम सम्मान मिलने की सूचना मिली. इससे मन प्रसन्नुचित है. उर्मिला ने बताया कि पिया मेंहदी मंगाइ द मोती झील से जाके साइकिल से ना, यह गीत उनका पसंदीदा गीत है. आज सैकड़ों लोग इस गीत को गुनगुनाते हैं, लेकिन जो मिठास इसमें है, वह किसी और गीत में नहीं है. उहोंने संगीत की शिक्षा गुरु अमिता दत्त और प्रो. कमला श्रीवास्तव से ली है. माता-पिता को प्रेरणा से संगीत की साधना को जारी रखी और न केवल युवा पीढ़ी को संगीत से जोड़ा बल्कि देश-विदेश में भी सुरीली मिर्जापुरी कजरी को पहचान दिलाई.