Navratri Specials: काशी की मां चंद्रघंटा कंठ में विराजमान हो करवाती हैं मोक्ष प्राप्ति

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Navratri Specials: नवरात्रि के पवन पर्व की शुरुआत हो गई है .आज मां चंद्रघंटा देवी का दिन है ब्रह्मचारिणी के बाद मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. मां चंद्रघंटा का काशी में विशेष महत्त्व माना जाता जाता है. ऐसी मान्यता है कि मां चंद्रघंटा का श्रृंगार इतना भव्य होता है कि उसको देखते के लिए लोग चौक की सकरी गलियों से होकर आते हैं. आइए जान लेते हैंकि कैसे हुई मां चंद्रघंटा की उत्पत्ति .साथ ही पूजन विधि इसके साथ ही इनसे जुड़े कुछ रोचक रहस्य.

चंद्रघंटा देवी की पूजा का विशेष महत्व

नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना करने का विधान है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां चंद्रघंटा की विधिपूर्वक पूजा और व्रत करने से साधक को जीवन में आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है और मां भक्तों से प्रसन्न होकर उन्हें शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं.

चंद्रघंटा देवी का नाम कैसे पड़ा ?

मां दुर्गा का तीसरा रूप चंद्रघंटा है. नवरात्र के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. मां चंद्रघंटा का यह स्वरूप बेहद ही सुंदर, मोहक, अलौकिक, कल्याणकारी व शांतिदायक है. माता चंद्रघंटा के माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्रमा विराजमान है, जिस कारण इन्हें चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है.

मां चंद्रघंटा देवी की पूजन विधि

देवी की पूजा के लिए लाल और पीले फूलों का उपयोग करना चाहिए. पूजा में अक्षत, चंदन और भोग के लिए पेड़े चढ़ाना चाहिए. मां की अराधना उं देवी चंद्रघंटायै नम: का जप करके की जाती है. मंत्रों का जप, घी से दीपक जलाने, आरती, शंख और घंटी बजाने से माता प्रसन्न होती हैं.

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काशी में मां चंद्रघंटा का विशेष महत्त्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वर्ग पर राक्षसों का उपद्रव बढ़ने पर दुर्गा मैया ने चंद्रघंटा माता का रूप धारण किया था. काशीवासियों की मान्यता है कि जब किसी का अंतिम समय होता है तो माता चंद्रघंटा उसके कंठ में विराजमान होकर अपने घंटे की ध्वनि से उसे मोक्ष की प्राप्ति करवाती हैं.

 

 

 

 

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