Navratri Specials: काशी के सबसे बड़े मंदिर कुष्मांडा की उत्पत्ति कैसे हुई ?
जाने मां कुष्मांडा से जुड़े अदभुत रहस्य
Navratri Specials: नवरात्रि के पवन पर्व की शुरुवात हो गई है .आज है मां कुष्मांडा देवी का दिन. आज काशी के सबसे बड़े दुर्गा मंदिर दुर्गाकुंड स्थित मां कुष्मांडा देवी के दर्शन किए जाते हैं. मां कुष्मांडा देवी के दर्शन का इतना महत्त्व माना गया है कि उनके भव्य श्रृंगार को देखने के लिए लोग मध्यरात्रि से कतार लगाकर आते हैं. आइए जान लेते हैं कि क्या इतिहास है, कैसे हुई मां कुष्मांडा की उत्पत्ति साथ ही जान लेते हैं उनसे जुड़ी और भी बातें.
कुष्मांडा देवी की पूजा का विशेष महत्व
नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा के दर्शन– पूजन का दिन है. मां कुष्मांडा के दर्शन करने से भक्तों के जीवन की मुश्किलें और कष्ट दूर हो जाती हैं इसके साथ ही साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. मां कुष्मांडा का निवास सूर्य मंडल के अंदर के लोक में स्थित है. मां कुष्मांडा में ही ऐसी शक्तियां हैं जो सूर्य लोक में निवास कर सके.
कैसे हुई मां कुष्मांडा की उत्पत्ति
एक कथा के अनुसार माना जाता है कि इस सृष्टि की उत्पत्ति से पहले जब चारो ओर अंधकार था और कोई भी जीव जंतु नहीं था तब मां दुर्गा ने ब्रह्मांड की रचना की, इसी कारण से उन्हें कुष्मांडा कहा जाने लगा. सृष्टि की उत्पत्ति करने के कारण मां कुष्मांडा को आदिशक्ति नाम से भी अभिहित किया जाता है.
मां कुष्मांडा की पूजन विधि
मां कुष्मांडा के पूजा के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करें उसके बाद स्वच्छ कपड़े पहन कर घर तथा मंदिर को साफ करें. स्वच्छ घर में ही देवी का वास होता है इसके बाद मां के आगे दीप जलाकर पूजन करें उसके बाद उन्हें धूप, दीप, फल,फूल, सिंदूर, अक्षत और कुमकुम अर्पित करें. मां कूष्मांडा को लाल रंग बेहद प्रिय है इसलिए उन्हें गुड़हल का पुष्प चढ़ते हैं.
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काशी में मां कुष्मांडा की विशेष मान्यता
काशी में मां कुष्मांडा का भव्य मंदिर दुर्गाकुंड पर स्थित है आपको बता दें कि मां के भव्य श्रृंगार को देखने के लिए लोग मध्यरात्रि से कतार में आते हैं. काशी में मां कुष्मांडा की उत्पत्ति की कहानी बेहद रोचक है मान्यता है कि मान्यता है कि दैत्य शुम्भ निशुम्भ के वध के बाद देवी ने यहीं विश्राम किया था .
देवी दुर्गा को समर्पित, दुर्गा मंदिर का निर्माण 18 वीं शताब्दी में एक बंगाली महारानी द्वारा किया गया था. पौराणिक कथा के अनुसार, मंदिर में स्थित मूर्ति मनुष्य द्वारा नहीं बनाई गई है बल्कि वह स्वयं प्रकट हुई है. ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा ने कई शताब्दियों तक दक्षिण से वाराणसी की रक्षा की है.
written by – Tanisha Srivastava