Navratri Special 2024: नवरात्रि से पहले जानें काशी की नौ देवियों की विशेषताएं
Navratri Special 2024: शास्त्रों में मां दुर्गा को बीवी ब्रह्मा के निराकार रूप का स्वरूप माना जाता है हिंदू धर्म में ब्रह्मांड की उत्तपत्ति के पीछे की शक्ति को स्त्री रूप में देखा जाता है. मां दुर्गा की शक्ति, आराधना का महापर्व बड़े ही उत्साह, श्रद्धा व प्रेम से मनाया जाता है कल से नवरात्रि के शुभ पर्व की शुरुवात हो रही है जिसकी तैयारियां जोरों से चल रही हैं. नवरात्रि में मां दुर्गा के सभी स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है.
इसके साथ ही मां दुर्गा के सभी प्रमुख मंदिरों में साफ सफाई का कार्य चल रहा है और बाजारों में भी पूजा से जुड़ी सामग्री आ गई है. हिंदू मान्यता के अनुसार नवरात्रि में मां दुर्गा के दर्शन मात्र से ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. आपको बता दें कि वाराणसी में सभी नौ दुर्गा के स्वरूपों का मंदिर है और नवरात्रि में दूर–दूर से मां के दर्शन के लिए आते हैं.
क्या है नवरात्रि का पर्व और इस पर्व को क्यों मनाया जाता है ?
एक कथा के अनुसार, माता भगवती देवी दुर्गा ने महिषासुर नमक असुर के साथ नौ दिन तक युद्ध किया था उसके बाद नवमी की रात्रि को उसका वध कर दिया. उस समय से देवी माता को ‘महिषासुरमर्दिनी’ के नाम से जाना जाता है.तभी से मां दुर्गा की शक्ति को समर्पित नवरात्रि का व्रत करते हुए इनके नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है. इस पर्व का सीधा संबंध मां दुर्गा से माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन नवरात्रि के नौ दिनों बाद दसवें दिन मां दुर्गा ने राक्षस महीषासुर से युद्ध किया था और उसका वध भी किया था.
नवरात्रि कैसे मनाई जाती है ?
नवरात्रि का नव दिन देवी आदिशक्ति जगत जननी जगदंबा मां दुर्गा को समर्पित है. इन नव दिनों में मां दुर्गा की पूजा आराधना की जाती है. लोग घरों में कलश या घट स्थापना करते हैं, साथ ही ज्वार भी बोया जाता है. संपूर्ण भाव और श्रद्धा के साध लोग नव दिनों तक व्रत रखते हैं और विधि विधान से देवी मां की पूजा करते हैं.
मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का रहस्य क्या है ?
मां शैलपुत्री –
मां शैलपुत्री नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं. पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा. नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है. इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं. मां शैलपुत्री हिमालय राज की पुत्री हैं. देवी शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और मां दुर्गा का ये स्वरूप चंद्रमा को दर्शाता है.
मां ब्रह्मचारिणी–
मां ब्रह्मचारिणी को देवी पार्वती को अविवाहित रूप में पूजा जाता है. वह सफेद वस्त्र धारण करती हैं. उनके दाहिने हाथ में एक रुद्राक्ष माला होती है और बाएं हाथ में कमंडल (पानी का एक बर्तन) होता है. रुद्राक्ष को उनके वनवासी जीवन में भगवान शिव को पति के रूप में पाने की तपस्या से जोड़कर देखा जाता है.
मां चंद्रघंटा–
माता चंद्रघंटा का रूप अलौकिक है. माता के मस्तक पर अर्ध चंद्रमा विराजमान है, जिस कारण ही इन्हें चंद्रघंटा के नाम से पुकारा जाता है. स्वर्ण की भांति चमकीला माता का शरीर, 10 भुजाओं वाला है. अस्त्र-शस्त्र से सुशोभित मैया सिंह पर सवार हैं.
मां कुष्मांडा–
देवी कुष्मांडा को लेकर भगवती पुराण में बताया गया है कि मां दुर्गा मां के चौथे स्वरूप की देवी ने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड को उत्पन्न किया था, इसलिए इनका नाम कुष्मांडा पड़ा. माना जाता है जब सृष्टि के आरंभ से पहले चारों तरफ सिर्फ अंधेरा था. ऐसे में मां ने अपनी हल्की सी हंसी से पूरे ब्रह्मांड की रचना की.
मां स्कंदमाता–
कार्तिकेय (स्कन्द) की माता होने के कारण इनको स्कन्दमाता कहा जाता है. यह माता चार भुजाधारी कमल के पुष्प पर बैठती हैं, अतः इनको पद्मासना देवी भी कहा जाता है. इनकी गोद में कार्तिकेय भी बैठे हुए हैं , अतः इनकी पूजा से कार्तिकेय की पूजा स्वयं हो जाती है.
मां कात्यायनी–
कात्यायनी नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में छठवीं रूप हैं. ‘कात्यायनी’ अमरकोष में पार्वती के लिए दूसरा नाम है, संस्कृत शब्दकोश में उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, हेेमावती व ईश्वरी इन्हीं के अन्य नाम हैं.
मां कालरात्रि–
मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं. दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं. ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं. इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते.
मां महागौरी–
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है और कन्या पूजन किया जाता है. आदिशक्ति श्रीदुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं. मां महागौरी का रंग अत्यंत गौर वर्ण है इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है. मान्यता के अनुसार अपनी कठिन तपस्या से मां ने गौर वर्ण प्राप्त किया था.
मां सिद्धिदात्री–
मां दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं. ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं. नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है. इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है.
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काशी में स्थित हैं नौ देवियों के नौ मंदिर
वाराणसी में नवरात्रि का विशेष महत्त्व है.कहा जाता है कि काशी के नौ देवियों के दर्शन से ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.काशी इकलौती ऐसी नगरी है जहां नौ देवियों के अलग अलग मंदिर हैं और नवरात्रि के नौ दिनों में दूर – दूर से श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शन के लिए उमड़ती है.नौ दिनों में काशी के प्राचीन दुर्गा मंदिरों का दृश्य बेहद अलौकिक होता है.
written by – Tanisha Srivastava