जानें, इंसेफ्लाइटिस का इतिहास, बचाव और बीमारी के लक्षण
इंसेफ्लाइटिस एक घातक बीमारी है जो फ्लैविवाइरस के संक्रमण से होती है। सबसे पहले इस बीमारी को 1871 में जापान में देखी गई जिसकी वजह से जैपनीज नाम जोड़ा गया। ये बीमारी मच्छरों से फैलती है क्योंकि ये मच्छर ही इस बीमारी के वाहक माने जाते हैं। जैपनीज इंसेफ्लाइटिस एक ट्रॉपिकल बीमारी है मतलब(ये वो बीमारी है जो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को अपना शिकार बनाती है।)
कब हुई भारत में शुरूआत
जैपनीज इंसेफ्लाइटिस का पता तमिलनाडु राज्य में सबसे पहले साल 1955 में पता चला था। उसके बाद धीरे-धीरे इस बीमारी ने भारत के कई राज्यों में अपना प्रकोप दिखाना शुरू कर दिया। इस बीमारी ने धीर-धीरे कर्नाटक,त्रिपुरा,आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में फैल गई। वहीं उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाके गोरखपुर, गोंडा, देवरिया,महाराजगंज और बस्ती जैसे जिलों में एक महामारी की तरह फैल गई।
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सबसे पहले ये बीमारी पूर्वी उत्तर प्रदेश में साल 1978 में दिखाई दी जिसमें करीब 528 लोगों की मौत हुई थी। पिछले कुछ समय में इस बीमारी से होने वाली मौंतों में लगातार इजाफा हो रहा है।पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में सबसे ज्यादा मौतें होती है हर साल बावजूद इसके सरकार कोई कड़े इंतजाम नहीं कर रही है। जुलाई से लेकर नवंबर तक गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में सबसे ज्यादा मौंते इसी बीमारी से होती हैं।
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जैपनीज इंसेफ्लाइटिस के लक्षण
संक्रमण होने के बाद सिरदर्द और बुखार आना इसके मुख्य लक्षण हैं लेकिन जब बीमारी बढ़ जाती है तो सिरदर्द, बुखार, और गर्दन में अकड़न आ जाती है इसके अतिरिक्त मांसपेशियों में दर्द होने लगता है। इस बीमारी से संक्रमित व्यक्ति को झटके भी महसूस होते हैं और कभी-कभी रोगी कोमा में चला जाता है। इस बीमारी से बच्चों में गंभीर समस्याएं होने लगती है और लकवे की संभावना भी बढ़ जाती है साथ ही सोंचने समझने की शक्ति भी कम हो जाती है।
कैसे लगाएं पता
इस बीमारी का पता लगाने के लिए सेरीब्रोस्पाइनल फ्लूइड की जांच से बीमारी का पता लगाया जा सकता है। इस बीमारी का कोई विशेष इलाज नहीं है लेकिन फिर भी अगर सही समय से बीमारी के बारे में पता चल जाए तो पीड़ित की जान बचाई जा सकती है।
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