स्नैक्स में भी मोदी लहर…यहां खूब बिकता है मोदी नमकीन

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बाजार का एक फंडा होता है, जो बिक रहा है उसे बेचते रहो। भारतीय राजनीति के एक ब्रैंड बन चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी गुजरात में ऐसे ही बिक रहा है। अहमदाबाद से छोटा उदयपुर जाते हुए एक गांव के नजदीक बच्चों के एक हुजूम से रूबरू होता हूं। मेरे हाथ में चिप्स का पैकेट होता है, बच्चों से कहता हूं आप लोग भी लो। बच्चे गुजराती में कुछ कहते हुए उसे लेने से मना कर देते हैं।

मैं उसे हाथ में लेकर देखता हूं…

गाड़ी ड्राइवर ने बच्चों की बात मुझे हिंदी में समझाई कि ये सब कह रहे हैं कि यह वाला नहीं खाते, इन्हें दूसरा वाला पसंद है। हमने पूछा दूसरा वाला कहां मिलता है। बच्चे पास में ही एक घर में चल रही दुकान में ले जाते हैं, वहां वे गुजराती में कुछ कहते हैं। दुकानदार उनकी पसंद का पैकेट देने लग जाता है। मैं उसे हाथ में लेकर देखता हूं। नाम है-मोदी का खजाना।

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पैकेट के पीछे लिखा हुआ होता है- मोदी का जादू। पैकेट पर मोदी के अलग-अलग रूप में स्कैच बने हुए होते हैं। साथ ही लोकसभा भी प्रतीक स्वरूप दिखाई गई होती है। नोटों के फोटो भी उस पर होते हैं। कीमत पांच रुपये। पहली बार मैं इस प्रॉडक्ट से रूबरू होता हूं। दुकानदार बताने लग जाता है- ‘लोकल प्रॉडक्ट है। मोदी जी के नाम पर है।

कंपनी इसी मानसिकता का तो फायदा उठा रही है

पैकेट के अंदर कोई न कोई गिफ्ट भी होता है, इस वजह से बच्चों में काफी लोकप्रिय है। हम लोग अपने दुकानों पर ज्यादातर इसी को रखते हैं।’ मैं जिज्ञासावश पूछता हूं कि मोदी जी का नाम इस प्रॉडक्ट की बिक्री को कितना प्रभावी बनाता है, दुकानदार का जवाब होता है- ‘गुजरात में मोदी जी के नाम पर तो कुछ भी बेचा जा सकता है। यह स्नैक्स बनाने वाली कंपनी इसी मानसिकता का तो फायदा उठा रही है।’

छोटा उदयपुर खास क्यों?

खैर बाजार की इस मानसिकता को सोचता हुआ मैं छोटा उदयपुर पहुंचता हूं। यह आदिवासी जिला है और हस्तकला के लिए जाना जाता है। यहां पर तीन विधानसभा सीटें हैं और तीनों ही जनजाति के लिए आरक्षित हैं। 150 + के लक्ष्य को हासिल करने के लिए बीजेपी यहां अपना पूरा जोर लगाए हुए है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने घर-घर जाकर वोट मांगने के अभियान की शुरूआत इसी जिले से की थी और एक आदिवासी परिवार में भोजन भी किया था। जिले में एक संखेडा विधानसभा सीट आती है। यहां के बने फर्नीचर बहुत ही खास माने जाते हैं। उनकी पहचान पूरी दुनिया में है।

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यहां के लोग बताते हैं कि चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग और नरेंद्र मोदी साबरमती के किनारे रिवरफ्रंट पर जिस झूले पर बैठे थे, वह संखेड़ा का ही बना था। शिंजो आबे और उनकी पत्नी को भी संखेडा की ही बनी कुर्सियों पर बिठाया गया था, लेकिन यहां के लोगों को इस बात की शिकायत है कि उन्हें उनकी कला की वह कीमत नहीं मिल रही है, जो उन्हें मिलनी चाहिए। बेरोजगारी साल दर साल अपने पांव पसारती जा रही है।

कांग्रेस मांग रही है जवाब

छोटा उदयपुर को कांग्रेस प्रभाव वाला जिला माना जाता है। आदिवासी शुरू से ही कांग्रेस के वोटबैंक का हिस्सा माने जाते रहे हैं। 2012 के चुनाव में यहां की तीन सीटों में से दो पर कांग्रेस को जीत मिली थी। कांग्रेस अपने इस दबदबे को बनाए रखना चाहती है। गांव स्तर पर जनसभाओं के आयोजन को पार्टी ने अपनी रणनीति में शुमार कर रखा है, जिनके जरिये वह बीजेपी के बीस साल के शासन का हिसाब मांग रही है। पार्टी के नेता अमित शाह के बेटे जय शाह पर भी कटाक्ष कर रहे हैं। वे जनसभाओं में कहने से नहीं चूकते कि छोटी से पूंजी के जरिये महज कुछ महीनों के अंदर जय शाह के अरबपति होने का जादू बीजेपी के लोगों को उदेपुर के आदिवासियों को भी सिखाना चाहिए, जिससे यहां के लोगों की भी गरीबी दूर हो सके। पार्टी दावा कर रही है कि राज्य में उसकी सरकार बनते ही छोटे उदेपुर के विकास के लिए अलग से खाका बनाया जाएगा।

(साभार- एनबीटी)

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