एलके आडवाणी बर्थडे: पाक में जन्म, राजनीतिक सफर, जानें धमाके वाला रोचक किस्सा
बीजेपी के सीनियर नेता, मार्गदर्शक मंडल के सदस्य और पूर्व डिप्टी पीएम लालकृष्ण आडवाणी आज अपने जीवन के 95वें पड़ाव पर प्रवेश कर चुके हैं. मंगलवार (8 नवंबर) को वो अपना 95वां जन्मदिन मना रहे हैं. आडवाणी के जन्मदिन के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के दिग्गज नेताओं ने उन्हें बधाई दी. भारत में हिंदुत्व पॉलिटिक्स के बड़े चेहरे से लेकर राम मंदिर आंदोलन तक आडवाणी ने भारतीय राजनीति को नई दिशा दी. एलके आडवाणी के जन्मदिन पर जानिए उनसे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें.
कराची में जन्म और लाहौर में शिक्षा…
8 नवंबर, 1927 को वर्तमान पाकिस्तान के कराची में लालकृष्ण आडवाणी का जन्म हुआ था. उनके पिता के डी आडवाणी और मां ज्ञानी आडवाणी थीं. विभाजन के बाद भारत आ गए. आडवाणी ने 25 फरवरी, 1965 को कमला आडवाणी को अपनी अर्धांगिनी बनाया. आडवाणी के दो बच्चे (एक पुत्र और एक पुत्री) हैं, जिनके नाम जयंत आडवाणी और प्रतिभा आडवाणी है. लालकृष्ण आडवाणी की शुरुआती शिक्षा लाहौर में ही हुई, बाद में भारत आकर उन्होंने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से लॉ में स्नातक किया.
राजनीतिक सफर…
वर्ष 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की. तब से लेकर वर्ष 1957 तक आडवाणी पार्टी के सचिव रहे. वर्ष 1973-1977 तक आडवाणी ने भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष का दायित्व संभाला. वर्ष 1980 में बीजेपी की स्थापना के बाद से वर्ष 1986 तक आडवाणी पार्टी के महासचिव रहे. इसके बाद वर्ष 1986-1991 तक बीजेपी के अध्यक्ष पद का उत्तरदायित्व भी उन्होंने संभाला. इसी दौरान वर्ष 1990 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या के लिए राम रथ यात्रा निकाली. हालांकि, आडवाणी को बीच में ही गिरफ़्तार कर लिया गया पर इस यात्रा के बाद आडवाणी का राजनीतिक कद और बड़ा हो गया. वर्ष 1990 की रथयात्रा ने लालकृष्ण आडवाणी की लोकप्रियता को चरम पर पहुंचा दिया था. वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद जिन लोगों को अभियुक्त बनाया गया है उनमें आडवाणी का नाम भी शामिल है.
पार्टी में आडवाणी की भूमिका…
लालकृष्ण आडवाणी 3 बार बीजेपी के अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं. आडवाणी 4 बार राज्यसभा और 5 बार लोकसभा के सदस्य रहे. वर्ष 1977-1979 तक पहली बार केंद्रीय सरकार में कैबिनेट मंत्री की हैसियत से लालकृष्ण आडवाणी ने दायित्व संभाला. आडवाणी इस दौरान सूचना प्रसारण मंत्री रहे. आडवाणी ने अभी तक के राजनीतिक जीवन में सत्ता का जो सर्वोच्च पद संभाला है वह है एनडीए शासनकाल के दौरान डिप्टी पीएम का. लालकृष्ण आडवाणी वर्ष 1999 में एनडीए की सरकार बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेत़ृत्व में केंद्रीय गृहमंत्री बने और फिर इसी सरकार में उन्हें 29 जून, 2002 को 7वें डिप्टी पीएम पद का दायित्व भी सौंपा गया. भारतीय संसद में एक अच्छे सांसद के रूप में आडवाणी अपनी भूमिका के लिए कभी सराहे गए तो कभी पुरस्कृत भी किए गए. वर्ष 2015 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था.
आडवाणी के लिए काफी अहम रहा 2009…
लालकृष्ण आडवाणी के लिए वर्ष 2009 काफी अहम है. इस वर्ष में आडवाणी का एनडीए का पीएम उम्मीदवार बनाया गया था, लेकिन वह चुनावी समर में कामयाब नहीं हो पाए थे. इसके बाद वर्ष 2014 में उनके स्थान पर नरेंद्र मोदी को पीएम का चेहरा बनाने का फैसला हुआ था. इस तरह वह डिप्टी पीएम के पद पर तो रहे, लेकिन कभी पीएम नहीं बन सके. हालांकि, आडवाणी ने कभी खुलकर अपने पीएम न बन पाने के बारे में कोई बात नहीं कही. लेकिन, इससे बड़ा एक मलाल उनकी जिंदगी में रहा है, जिसके बारे में वर्ष 2017 में आडवाणी ने खुलकर अपनी बात रखी थी.
वर्ष 1997 में एंड्रयू वाइटहेड को दिए एक साक्षात्कार में आडवाणी ने कराची के अपने दिनों को याद करते हुए कई दिलचस्प बातें बताई थीं. यहां देखें साक्षात्कार में हुए सवाल-जवाब के कुछ अंश…
क्या आपके दिल में कराची के लिए विशेष लगाव है? इस सवाल के जवाब में आडवाणी ने कहा ‘बहुत ज्यादा. आखिर मेरा जन्म कराची में हुआ है. मैंने वहीं पर स्कूली पढ़ाई पूरी की. कुछ साल कॉलेज भी गया था. जब मैंने कराची छोड़ा था तब मैं 19 साल का था. सिंध प्रॉविंस हुआ करता था, तब उसकी आबादी भी ज्यादा नहीं थी. कुल 43 लाख आबादी में से वहां 13 लाख हिंदू थे. शायद 30 लाख मुस्लिम थे, लेकिन हिंदू आबादी ज्यादातर शहरों और कस्बों में थी. उस समय कराची की आबादी 3 से 4 लाख हुआ करती थी. आज के हिसाब से तब यह एक छोटा सा शहर था. ज्यादातर दोस्त हिंदू थे, कुछ ईसाई, पारसी और यहूदी भी थे. उनके स्कूल का नाम सेंट पैट्रिक हाई स्कूल था, उसमें बहुत कम मुस्लिम पढ़ते थे.’
एक सवाल के जवाब में आडवाणी ने कहा ‘आज (वर्ष 1997 के साक्षात्कार के दौरान) हालात बिल्कुल अलग हैं. यह देखकर मुझे तकलीफ होती है. कुछ साल पहले एक सर्वे में पता चला था कि कराची दुनिया के 10 सबसे गंदे शहरों में से एक है, मैं चौंक गया था. वर्ष 1978 में मुझे कुछ दिनों के लिए कराची जाने का मौका मिला था, उस समय मैं मोरारजी भाई की सरकार में शामिल था. उस समय जहां भी मैं गया था, उतनी गंदगी नहीं थी. खास बात यह है कि मेरे बचपन के दिनों में कराची सबसे साफ शहरों में हुआ करता था.’
बंटवारे के समय के हालात का जिक्र करते हुए आडवाणी ने कहा वर्ष 1947 के शुरुआती महीनों में चीजें तेजी से बदल रही थीं. अप्रैल-मई में पिक्चर साफ हो गई. यह जानकर हमें बहुत बुरा लगा था कि सिंध पाकिस्तान में रहने वाला है. क्या उस समय भी आप आरएसएस के ऐक्टिव मेंबर थे? इस सवाल के जवाब में आडवाणी ने कहा ‘हां, मैं 14 साल की उम्र में ही आरएसएस से जुड़ गया था.
क्या उस समय कराची में आरएसएस और मुस्लिम लीग के बीच कोई शत्रुता जैसा माहौल था? इस सवाल के जवाब में आडवाणी ने कहा ‘नहीं, वहां मुस्लिम लीग मजबूत नहीं थी. शायद वहां जनता की राय ली जाती तो कराची के मुस्लिम भी बंटवारे के समर्थन में न होते. बंटवारे को समर्थन ज्यादातर पाकिस्तान के बाहर के इलाकों से ज्यादा देखा गया था. सिंध, पंजाब, पूर्वी पाकिस्तान, ईस्ट बंगाल जहां से भी हिंदुओं को पलायन करना पड़ा, वे यहां आकर अच्छी तरह से बस गए जबकि यूपी, बिहार से पाकिस्तान जाने वाले लोग आज भी मुहाजिर कहे जाते हैं. वे अच्छी तरह से बस भी नहीं पाए हैं.’
क्या 1947 में एक बार भी लगा था कि आपको कराची में ही रहना चाहिए? इसके जवाब में आडवाणी ने कहा ‘अगर मैं पीछे जाकर देखूं तो उस समय काफी अनिश्चितता की स्थिति थी. हमारा फैसला वहीं रहने का था क्योंकि पंजाब से बिल्कुल अलग स्थितियां वहां थीं. बंटवारे से पहले कोई दंगा नहीं हुआ था. बंटवारे के बाद भी स्थितियां उतनी खराब नहीं हुई थीं. हत्याएं शुरू हो गईं, ट्रेनों और सड़कों पर खून बहने लगा. पंजाब, नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस, बंगाल में भारी हिंसा भड़की हुई थी. लेकिन कराची में ऐसा कुछ नहीं था. ऐसे में जब बंटवारा हो रहा था तो हमें लग रहा था कि हम क्यों जाएं? हम यहीं रहेंगे, ऐसी भावना मन में थी.’
ऐसा क्या हुआ कि कराची छोड़ने का फैसला लेना पड़ा? इसके जवाब में आडवाणी ने कहा ‘कराची में सितंबर के महीने में एक भीषण धमाके के बाद मेरी ही नहीं, वहां रहने वाली पूरी हिंदू आबादी का नजरिया बदल गया. आरोप आरएसएस के लोगों पर लगे. उसी समय दिल्ली में गांधी जी ने आरएसएस की एक मीटिंग को संबोधित किया था. मुझे 11 या 12 सितंबर, 1947 का डॉन अखबार का अंक अच्छी तरह से याद है. एक तरफ आरएसएस रैली में गांधी के संबोधन का जिक्र था जिसमें उन्होंने कश्मीर में कबायलियों को भेजने के लिए पाकिस्तान की आलोचना की थी.’
उन्होंने कहा ‘अगर पाकिस्तान इसी तरह का रवैया रखता है तो कौन जानता है कि भारत और पाकिस्तान में जंग छिड़ जाए और यह नहीं होना चाहिए. अखबार के दूसरे पन्ने पर पाकिस्तान में आरएसएस की साजिश का आरोप लगाते हुए बम धमाके की हेडलाइन छपी थी. एक हेडलाइन थी ‘RSS Plot to Blow Up Pakistan Unearthed’ और दूसरी तरफ ‘Gandhi Speaks to RSS Volunteers in Terms of War’ हेडिंग बनी थी.’
उस दौर को याद करते हुए आडवाणी ने कहा ’19 साल की उम्र में आरएसएस से जुड़े होने के कारण वह बिल्कुल भी भयभीत नहीं हुए थे. आखिर में 12 सितंबर, 1947 को उन्होंने कराची छोड़ दिया. वह अकेले थे और उन्होंने पहली बार प्लेन का सफर किया था. आरएसएस से जुड़ा होने के कारण लोगों ने सलाह दी थी कि अकेले ही अभी निकल जाइए. करीब एक महीने के बाद परिवार ने कराची छोड़ा. सिंध से अक्टूबर में तेजी से पलायन शुरू हो चुका था. जनवरी, 1948 आते-आते वहां भी दंगे भड़क गए. पाकिस्तान बनने के बाद एक महीने तक मैं वहां रहा. पाकिस्तान के इंडिपेंडेंस डे के दिन भी उन्हें कोई खुशी नहीं हुई थी. बंटवारे के दर्द से आहत स्कूल में कई बच्चे मिठाई भी नहीं खाए थे. हमें आजादी जैसी कोई फीलिंग नहीं हो रही थी.’
लोग ढूंढ रहे 90 के दशक का आडवाणी…
भारतीय राजनीति में आज भी लालकृष्ण आडवाणी एक बड़ा नाम हैं. लेकिन, पिछले कुछ समय से वो अपनी मौलिकता खोते हुए नजर आ रहे हैं. जिस क्रामकता के लिए वो जाने जाते थे, उस छवि के ठीक विपरीत आज वो समझौतावादी नजर आते हैं. हिंदुओं में नई चेतना का सूत्रपात करने वाले आडवाणी में लोग नब्बे के दशक का आडवाणी ढूंढ रहे हैं. अपनी बयानबाज़ी की वजह से उनकी काफी फज़ीहत हुई. अपनी किताब और ब्लॉग से भी वो चर्चा में आए और आलोचना भी हुई.
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