जानें क्या होता है कमिटमेंट फोबिया, क्यों लोगों में बसा है इसका डर ?

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कमिटमेंट फोबिया यह शब्द दो अंग्रेजी शब्दों से मिलकर बना है. पहला कमिटमेंट जिसका हिन्दी में अर्थ है वचन, जिम्मेदारी या उत्तरदायित्व और दूसरा शब्द है फोबिया जिसका हिन्दी अर्थ है डर. इन दोनों शब्दों से मिलकर बना कमिटमेंट फोबिया जिसका पूरा अर्थ है, किसी बात का वादा करने से लगने वाले डर को कमिटमेंट फोबिया कहा जाता है. आज कल यह बहुत से युवाओं में इस समस्या को खास तौर पर देखा जाता है. इसलिए इसका कारण क्या है और हमें खुद को बचाने के लिए क्या करना चाहिए?

जब कोई व्यक्ति फैसला या जिम्मेदारी लेने से डरता है या जब कोई किसी से वादा करने से डरता है या उसे पूरा करने से कतराता है तो, उसे ही कमिटमेंट फोबिया कहा जाता है. पश्चिमी देशों में यह समस्या पहले से ही आती रही है, लेकिन अब यह समस्या धीमे – धीमें भारत के युवाओं को अपना शिकार बना रही है. यही कारण है कि अब भारत में भी लिव-इन संबंधों की संख्या बढ़ने लगी है. क्योंकि आज के युवा लोगों को शादी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी लगने लगती है, ऐसे में जिम्मेदारी से भागना कमिटमेंट फोबिया के ही लक्षण होते हैं.

कैसे होता है कमिटमेंट फोबिया ?

कमिटमेंट फोबिया सिर्फ रिश्तों की जिम्मेदारी तक ही नहीं सीमित है, बल्कि वो हर इंसान इसका शिकार है जो नौकरी बदलने से डरता है, किसी भी चैलेंज या समस्याओं का सामना करने से भागता है. माना जाता है कि, इसकी शुरूआत आपके अंदर कम आत्मविश्वास के साथ होती है, जब धीमे-धीमे इंसान में आत्मविश्वास की कमी बढ़ती जाती है और एक समय ऐसा आता है कि, इंसान खुद पर भरोसा करना बंद कर देता है. बस तभी वह इंसान कमिटमेंट फोबिया का शिकार हो जाता है. यही वजह है कि, इसके लक्षण को समय रहते पहचानना बहुत जरूरी होता है.

कमिटमेंट फोबिया की कैसे करें पहचान ?

इससे पीड़ित व्यक्ति खुद पर भरोसा करने से डरते हैं, वह किसी भी सामान्य काम को भी बहुत बड़ा समझने लगते हैं, इसलिए वह जिम्मेदारियों को लेने से बचने लगते हैं. किसी भी रिश्ते में अपने विचार व्यक्त करने से डरते हैं. हालाँकि, कुछ मामलों में लोगों को थकान या नींद न आने की समस्या भी होती है, लेकिन इसके लक्षणों को पहचानने के लिए इनमें से कुछ देखना होगा कहीं कोई बार-बार प्रश्नों को टालने की कोशिश नहीं कर रहा है. इंसान अपनी पूरी बात भी इसमें नहीं कह सकता है. बिना किसी कारण के बहस करना शुरू कर देता है. इसके अलावा, व्यक्ति दूसरे को दोष देने की कोशिश करने लगता है अगर वह भी गलती करता है.

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कमिटमेंट फोबिया से ऐसे पाएं छुटकारा

इस बीमारी का इलाज और उपचार इंसान स्वयंम ही होता है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि, मन बदलकर ही इसे सुधार सकते हैं. इस दौरान अपने आप से बात करनी चाहिए और आत्मविश्वास को जगाना चाहिए. किसी से बात करना अच्छा लगे तो अपनी परेशानियों को उसके साथ साझा करनी चाहिए. कोई निर्णय लेने से पहले आप सलाह ले सकते हैं, इससे आपकी स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है और लोग धीरे-धीरे ठीक होने लगते हैं. अगर इससे भी कोई फायदा नहीं मिलता तो, काउंसिलिंग और साइकोथैरेपी के माध्यम से इस फोबिया से बाहर निकला जा सकता है.

 

 

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