फातिमा शेख जयंती: जानिए भारत में पहला कन्या स्कूल खोलने वाली मुस्लिम महिला शिक्षिका के बारे में
भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख की आज 191वीं जयंती है. कुछ ही लोगों को पता होगा कि फातिमा शेख ने मुस्लिम महिलाओं के हित के लिए तमाम कार्य किये थे. बच्चियों की शिक्षा को लेकर फातिमा शेख ने देशभर में काफी काम किया. इसी वजह से उन्हें भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका कहा जानें लगा. ज्योतिबाराव फुले और सावित्रीबाई फुले से भी फातिमा शेख का काफी गहरा संबंध रहा है. आईये विस्तार से जानते हैं फातिमा शेख के बारे में…
शूद्रों व महिलाओं की शिक्षा के लिए ताउम्र संघर्षरत रहीं राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले व माता सावित्रीबाई फुले की सहयोगी, भारत की पहली मुस्लिम शिक्षिका माता फातिमा शेख़ जी की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन। pic.twitter.com/HAG7RR6nf2
— Chandra Shekhar Aazad (@BhimArmyChief) January 9, 2023
कौन है फातिमा शेख…
फातिमा शेख का जन्म आज ही के दिन 1831 में पुणे में हुआ था। वह अपने भाई उस्मान के साथ रहती थी। उन्हें और उनके भाई को निचली जातियों के लोगों को शिक्षित करने के कारण समाज से बाहर निकाल दिया था। इसके बाद दोनों भाई-बहन सावित्रीबाई फुले से मिले और उनके के साथ मिलकर दलित और मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया था।
घर जाके दलितों को शिक्षा देतीं थी…
फातिमा शेख घर-घर जाकर दलितों और मुस्लिम महिलाओं को स्वदेशी पुस्तकालय में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया करती था। हालांकि, उन्हें प्रभुत्वशाली वर्गों के भारी प्रतिरोध का सामना भी करना पड़ा था। इसके बावजूद फातिमा शेख और उनके सहयोगियों ने सत्यशोधक आंदोलन जारी रखा।
घर से शुरू की स्वदेशी लाइब्रेरी…
-फ़ातिमा ने सावित्रीबाई के साथ मिलकर अपने ही घर में स्वदेशी लाइब्रेरी की शुरू की. उन्होंने दलित और मुस्लिम महिलाओं और बच्चों के उन समुदायों को पढ़ाना शुरू किया, जिन्हें वर्ग, धर्म या लिंग के आधार पर शिक्षा से वंचित रखा जाता था.
-इस काम के बदले में फ़ातिमा को भी काफू ज्यादा विरोध सहना पड़ा लेकिन वह पीछे नहीं हटीं. उन्होंने घर-घर जाकर अपने समुदाय के दलितों को स्वदेशी लाइब्रेरी में आकर पढ़ने और भारतीय जाति व्यवस्था से बाहर निकलने के लिए जागरूक किया. वह सत्यशोधक अन्दीलन का भी हिस्सा रहीं.
उनसे जुडी कुछ अनसुनी बातें…
-उस जमाने में स्त्री शिक्षा का कोई महत्व नहीं था. महिलाओं को घरों की चारदीवारी में रखा जाता था और उन्हें पढ़ने की अनुमति नहीं थी. लेकिन ज्योतिबाराव फूले ने देश में शिक्षा की अलख जगाई.
-उन्होंने दलित समुदायों और महिलाओं की शिक्षा के लिए बहुत से काम किए और इन सभी कामों में उनकी पत्नी सावित्रीबाई फूले ने उनका भरपूर सहयोग किया. लेकिन लोगों को यह मंजूर नहीं था और इसलिए फूले दंपति को घर से बेघर होना पड़ा
-ऐसे में फातिमा और उनके भाई उस्मान ने फूले दंपति का साथ दिया. उन्होंने न सिर्फ उन्हें अपने घर में रहने की जगह दी बल्कि बच्चियों के लिए स्कूल चलाने की की इजाज़त भी दी. यहीं से फ़ातिमा भी फूले दंपति के अभियान से जुड़ गईं.
आपको बता दें कि भारत सरकार ने 2014 में फातिमा शेख की उपलब्धियों को याद किया और अन्य अग्रणी शिक्षकों के साथ उर्दू पाठ्यपुस्तकों में उनके प्रोफाइल को जगह दी, ताकि सभी बच्चे उनके बारे में ज्यादा-से-ज्यादा जान सकें।
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