Kissa EVM ka : क्यों पड़ी देश को मतपत्र को हटाकर ईवीएम लाने की जरूरत ?

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Kissa EVM ka: दौर चुनावी पर्व का है जिसमें हमने एक चरण को पार भी कर लिया है. अन सबके बीच चुनाव का मूल आधार ईवीएम हमेशा से ही सियासत में विवाद और बहस का मुद्दा रहा है. विपक्ष हमेंशा से ही अपनी हार का ठिकरा बेचारी ईवीएम पर फोड़ता रहता है. ऐसे में चुनाव में ईवीएम की चर्चा हो या न हो लेकिन मतगणना के बाद इसकी चर्चा जोरों से शुरू हो जाती है.

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है करोड़ो मतदाताओं की मत शक्ति के तौर पर प्रयोग होने वाली ईवीएम का इतिहास क्या रहा होगा, क्यों इसकी जरूरत पड़ी, कैसे मतपत्र से बेहतर है ईवीएम. ऐसे न जाने कितने ही सवाल हैं जो ईवीएम को लेकर लोगों के मन में उठते होंगे ? यदि आप के मन भी इस तरह के कई सवाल रहते हैं तो यह सीरीज आपके इन सभी सवालो का जवाब बनने वाली है क्योंकि, इस सीरिज में हम बात करने जा रहे ईवीएम निर्माण से लेकर अब तक के सफर के बारे… इस सीरिज के दूसरे एपिसोड में हम जानेंगे की आखिर मतपत्र को हटाकर ईवीएम की देश को क्यों पड़ी जरूरत ….?

क्यों पड़ी EVM की जरूरत ?

साल 1957 में भारतीय लोकतंत्र में बूथ कैप्चरिंग जैसी समस्याएं तेजी से बढ रही थी. साल 1957 लोकसभा चुनाव के दौरान यह समस्याएं बड़ा रूप ले चुकी थी. बानगी के तौर पर बेगूसराय जिले की मटिहानी विधानसभा सीट के रचियाही इलाके से एक घटना सामने आयी थी, जिसमें बूथ कैप्चरिंग को अंजाम दिया गया था और ऐसे कितने ही मामले साल 1970 से लेकर 80 के दशक तक समाचार पत्रों की बड़ी सुर्खियां हुआ करते थे. इसके साथ ही समय के साथ चुनाव में भाग लेने वाली पार्टियों और उम्मीदवारों की संख्या में भी लगातार इजाफा होता जा रहा था. प्रत्याशी अपनी जीत के लिए धन और बल के माध्यम से चुनाव में जीत हासिल करने के लिए बूथ कैप्चरिंग की घटनाओं को बड़े स्तर पर अंजाम दे रहे थे.

ऐसे में तेजी से बढ़ते बूथ कैप्चरिंग के मामले लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव आयोजित करने वाले निर्वाचन आयोग के लिए बड़ी समस्या बनते चले जा रहे थे, ऐसे में इस समस्या से निजात के लिए आश्यकता किसी बड़े फैसले या बदलाव किए जाने की थी, ताकि निष्पक्ष और स्वतंत्र तौर पर चुनाव संपन्न कराएं जा सकें. इससे उबरने के लिए धीमे – धीमे निर्वाचन आयोग इस बड़ी समस्या पर काम करने लग गया और इसी कड़ी में आगे काम करते हुए निर्वाचन आयोग ने कई पार्टियों की सहमति से ईवीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रयोग चुनाव प्रक्रिया में किए जाने की शुरूआत की थी.

कैसे काम करती है EVM मशीन ?

EVM में दो भाग हैं: कंट्रोल और बैलेट यानी एक जगह है जहां आप बटन दबाकर अपना वोट देते हैं और दूसरी जगह है जहां आप अपना वोट स्टोर करते हैं. इसकी कंट्रोल यूनिट मतदान अधिकारी के पास होती है, जबकि बैलेट यूनिट दूसरी तरफ रखी जाती है, जिसे लोग मतदान के लिए इस्तेमाल करते हैं. आपको बैलेट यूनिट पर सभी पार्टियों के चिह्न और उम्मीदवार के नाम नजर आते हैं, जिनके आगे एक नीली बटन लगी होती है. आप इन बटन को दबाकर वोट देते हैं. वहीं कंट्रोल यूनिट पर बैलेट मार्क वाला एक बटन होता है, जिसे दबाने के बाद दूसरा वोटर अपना वोट डाल पाता है.

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जैसे ही आखिरी वोट किसी मतदान केंद्र पर डाल दिया जाता है, पोलिंग ऑफिसर नियंत्रण कक्ष पर Close बटन दबा देता है. इसके बाद EVM पर मतदान नहीं कर किया जा सकता है. मतदान के बाद बैटल यूनिट से कंट्रोल यूनिट को अलग करके रख दिया जाता है. रिजल्ट प्राप्त करने के लिए कंट्रोल यूनिट पर Result बटन को दबाना होता है. यह बटन गलती से दबने से बचाने के लिए दो सेफगार्ड भी होते है. जब तक Close बटन दबाकर वोटिंग प्रक्रिया पूरी होने तक इस बटन को नहीं दबाया जा सकता है, सुरक्षा के लिए ये बटन छिपी हुई हैं और इसे सुरक्षा कारणों के चलते सील भी रखा जाता है. इस सील को सिर्फ काउंटिंग पर ही तोडा जाता है.

 

 

 

 

 

 

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