वाराणसी: काकोरी ट्रेन एक्शन आज़ादी के संघर्ष की महत्वपूर्ण घटना -अनिल राजभर

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वाराणसी: उत्तर प्रदेश के श्रम एवं सेवायोजन मंत्री अनिल राजभर, महापौर अशोक तिवारी, जिलाधिकारी एस. राजलिंगम, मुख्य विकास अधिकारी हिमांशु नागपाल ने “काकोरी ट्रेन एक्शन शताब्दी महोत्सव” कार्यक्रम की श्रृंखला में शुक्रवार को उद्यान पार्क सिगरा में अमर शहीद स्मारक पर पुष्प अर्पित कर अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित किये. इस अवसर पर मंत्री अनिल राजभर ने कहा कि आजादी की लड़ाई में मील का पत्थर माने जाने वाले काकोरी ट्रेन एक्शन का शताब्दी वर्ष प्रदेश में मनाया जा रहा है. काकोरी ट्रेन एक्शन आज़ादी के संघर्ष की महत्वपूर्ण घटना है.

ब्रिटिश हुकूमत की हिल गयी थीं चूलें

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारियों द्वारा ब्रिटिश राज के विरुद्ध भयंकर युद्ध छेड़ने की ईच्छा से हथियार खरीदने के लिये ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लूट लेने की यह एक ऐतिहासिक घटना थी, जो 9 अगस्त, 1925 को क्रांतिकारियों द्वारा की गयी थी. जिससे ब्रिटिश सरकार के हुकूमत की चूलें हिल गयी थीं. इस दौरान मंत्री अनिल राजभर शहीदों के स्मृति में आंवले का पौधा लगाकर पौधारोपण भी किया. इस अवसर पर महापौर अशोक तिवारी, जिलाधिकारी एस. राजलिंगम, मुख्य विकास अधिकारी हिमांशु नागपाल सहित अन्य लोक प्रमुख रूप से उपस्थित रहे.

काकोरी कांड का काशी से कनेक्शन, क्रांतिकारियों ने यहां बनाई की रणनीति

बनारस के शचींद्रनाथ सान्याल को लाहौर, मेरठ और 1915 में बनारस कॉन्सपिरेसी के बाद कालेपानी की सजा हुई थी. उन्होंने ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ की स्थापना की थी. जिसके झंडे तले देशभर के क्रांतिकारी एकजुट हुए थे. बनारस को अपनी कर्मभूमि बना चुके चंद्रशेखर आजाद काकोरी कांड के अगुवा थे. कम ही लोगों को पता है कि काकोरी कांड की रणनीति भी काशी में ही तैयार हुई थी. शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने अपने एक संस्मरण में लिखा कि काकोरी कांड में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाह खां, काशी के राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह समेत ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ के दस क्रांतिकारी शामिल थे.

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इनके अलावा कालापानी की सजा काट रहे शचींद्रनाथ सान्याल के भाई भूपेंद्रनाथ, मन्मथनाथ गुप्त भी इस अभियान का हिस्सा थे. काकोरी कांड में रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्लाह खां के अलावा बनारस के राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को भी 17 दिसंबर 1927 को गोंडा में फांसी की सजा दी गई थी. वैसे तो राजेंद्र नाथ लाहिडी बंगाल के रहने वाले थे, लेकिन उनका परिवार काशी में बस गया था. उन्होंने बीएचयू में पढाई की थी.

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