UP का एक ऐसा गांव जहां लगती है लड़कियों की बोली फिर…

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शीर्षक पढ़ कर चौंकना स्वाभाविक है, क्या आज के तेजी से विकसित हो रहे समाज में ऐसा मुमकिन है? जी हां, जिले के दो विकास खंड के करीब आधा दर्जन गांवों में मंगता जाति के सैकड़ों ऐसे परिवार हैं, जहां आज भी हाथ पीले होने की उम्र होने पर दुल्हन की सार्वजनिक बोली लगती है। बोली में हिस्सा सिर्फ उसी समाज के लोग ले पाते हैं।

आज भी यह समाज बहुत पिछड़ा और अभावग्रस्त है

जो सबसे ज्यादा बोली लगाता है, दुल्हन उसकी हो जाती है। फिर पूरी रीति-रिवाज से उसकी शादी कर दी जाती है।आजीविका दुश्वारियाें से भरी : विकास खंड बख्शा के रसिकापुर, सराय विभार और महराजगंज विकास खंड के चांदपुर, लाल बाग, घरवासपुर एवं आराजी सवंसा में इस जाति के लोग निवास करते हैं। यह परिवार होली, दीपावली, विजया दशमी आदि पर्व पूरी आस्था के साथ मनाते हुए खुद को हिंदू धर्म से जोड़े हुए हैं। शिक्षा से दूर रहने के कारण आज भी यह समाज बहुत पिछड़ा और अभावग्रस्त है।

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इनकी पचासी फीसदी आबादी इक्कीसवीं सदी में भी झोपड़ों और कच्चे घरों में जिंदगी बसर करती है। स्कूल चलो अभियान शुरु होने पर 60 फीसदी बच्चों का प्राथमिक स्कूलों में नामांकन तो होता है लेकिन बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं। दिन भर गांव में इधर-उधर घूमते हैं या फिर घर पर रहते हैं। तीरथ के दो बेटों अनिल और मनोज ही ऐसे हैं जिन्होंने स्नातक की उपाधि ले रखी है लेकिन वे भी बैंड पार्टी के साथ बाजा बजाने का काम करते हैं।मंगता जाति की 98 फीसदी आबादी साक्षर भी नहीं है। समाज के पुरुष सदस्य नृत्य, मजदूरी और दूसरों के यहां शादी-विवाह में पत्तल उठाने का भी काम करते हैं।

समाज के युवकों का जमावड़ा लगता है

महिलाएं काश्तकारों के खेतों में मजदूरी करती हैं। इसी से होने वाली आय से आजीविका चलती है जबकि अधिकांश भूमिहीन हैं। दो परिवारों को प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन तो मिले हैं लेकिन उसे एक कोने में रख चूल्हे पर लकड़ी जलाकर ही खाना बनाती हैं।कन्या होती समृद्धि का प्रतीक : मंगता बिरादरी में कन्या को समृद्धि का पर्याय माना जाता है। कन्या की उम्र जब शादी के योग्य हो जाती है तो उनके माता-पिता को बहुत चिंता नहीं करनी पड़ती। इसकी वजह यह है कि समाज में दहेज जैसी कुरीति से कोसों दूर है। शादी की बात चलते ही इसी समाज के युवकों का जमावड़ा लगता है।

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वे कन्या को देख कर बोली लगाते हैं। जो सबसे ज्यादा बोली लगाता है उसी युवक के साथ उसकी शादी तय कर दी जाती है। बोली लगाने के दौरान कभी-कभी विवाद भी हो जाता है लेकिन दूसरी बिरादरी के लोगों की पंचायत बुलाने या पुलिस का सहयोग लेने की बजाय खुद ही पंचायत बैठा कर आपसी सहमति से उसका समाधान कर लेते हैं। वर पक्ष से कन्या पक्ष शादी का पूरा खर्च लेता है। यह रकम 25 हजार से लेकर डेढ़ लाख तक होती है। रसिकापुर निवासी बुल्ले कहते हैं इसे लड़की का सौदा करना कतई नहीं समझा जाना चाहिए। हम तो जो वर पक्ष अधिक शादी का खर्च देता है, उसी के साथ बेटी का विवाह करते हैं। लक्खू और लालमन कहते हैं कि बेटे की शादी पर अब अधिक धन खर्च होता है लेकिन इसमें भी बहुत खुशी मिलती है।

(dainik jagran)

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