जिलाधिकारी के लिए सकरात्मक रहना हमेशा जरूरी है – आलोक रंजन

आलोक रंजन की किताब का हुआ विमोचन

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लखनऊ: जिलाधिकारी के लिए सकरात्मक रहना हमेशा जरूरी है. समस्या का समाधान होना जरूरी है. डीएम रहते हुए गरीब से गरीब आदमी को बराबर अधिकारी देना और उनकी बात को सुनने सबसे जरूरी है. अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान में अपनी पुस्तक ज़िलाधिकारी का विमोचन पर पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन ने यह जानकारी साझा की.

आलोक रंजन ने अलग – अलग शहरों में डीएम रहते हुए अपने अनुभव को किताब के दौर पर प्रस्तुत किया है. कार्यक्रम के दौरान उन्होंने सिविल सर्विस की तैयारी वालों छात्रों के साथ अपने अनुभव साझा किया. सेवानिवृत्त लेखक और पत्रकार अशोक शर्मा के साथ परिचर्चा में आलोक रंजन ने बताया कि कैसे एक कलेक्टर ज़िले में रेवेन्यू क़ानून व्यवस्था और विकास कार्यों में अपना पूरा योगदान करता है.

उन्होंने बताया कि कलेक्टर के पद पर रहते हुए जनता सहयोगी अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच समन्वय स्थापित करते हुए कार्य निष्पादन की चुनौतियां तो होती ही हैं पर राजनीतिक और ऊपर के अधिकारियों के दबाव के बावजूद कार्यों को बिना किसी भेदभाव और निष्पक्षता के बेहतर ढंग से अंजाम देना और अधीनस्थों से भी इसी तरह कार्य कराना वाक़ई बेहद चुनौती पूर्ण होता है.

निष्पक्ष होकर काम करने पर सब सरकार साथ देती है

उन्होंने कहा कि निष्पक्ष होकर काम करने पर कभी कोई राजनीतिक दबाव नहीं होता है. उन्होंने बताया कि सभी सरकार में वह डीएम के पद पर काम कर चुके हैं. बताया कि सुबह 9 से दोपहर 1 बजे तक वह प्रतिदिन आम आदमी से मिलते थे. बताया कि पहले डीएम लोगों के बीच जाकर कार्य करते थे और लोग उनके कार्यों और व्यवहार से प्रभावित होकर उनका गुणगान करते थे, पर अब तो कलेक्टर खुद ही अपने कार्यों और व्यवहार का प्रचार प्रसार मीडिया और सोशल साइट्स पर करते नहीं थकते.

गाजीपुर, इलाहाबाद, आगरा में डीएम रहते अनुभव साझा किया

आलोक रंजन ने किताब में अपने पांच ज़िलों में डीएम रहते हुए अनुभव को शेयर किया. इसमें गाजीपुर, इलाहाबाद, आगरा जैसे शहरों में डीएम रहते हुए कैसे काम किया इसको लेकर उन्होंने अपने अनुभव साझा किया. उन्होंने बताया कि गाजीपुर में एक बार डीएम रहते हुए कांग्रेस के नेता जनता के साथ विरोध करने आए. एक प्रधान को सस्पेंड कर दिया गया था। करीब 5000 लोगों के साथ विधायक ने धरना दिया था. उस समय मेरा काफी विरोध किया. बाद में फोन कर बताया कि आप ठीक कर रहे है. जब सही होता है तो नेता भी समर्थन करते हैं. यह अलग बात है कि वोट के चक्कर में सामने आकर समर्थन नहीं कर पाते है.

मीडिया को खबर से मतलब है

उन्होंने कहा कि अगर आप सूचनाएं समय से शेयर करते रहते हैं तो मीडिया आपके साथ है। मीडिया को खबर और सूचना के अलावा कुछ नहीं चाहिए. हालांकि कई अफसर खुद के प्रचार- प्रसार में लग जाते हैं. यह कई बार आगे चलकर उनके लिए ही नुकसान दायक होता है.

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सरकारी से ज्यादा तरकारी जरूरी

उन्होंने बताया कि गोरखपुर में एक बार उस समय के सीएम बाबू बनारसी दास आए थे. उनके लिए एयरपोर्ट पर चाय, कॉफी, लस्सी, दही, छांछ रखा था. उनसे पूछा गया कि आप क्या लेंगे. चाय, कॉफी, लस्सी तो सीएम ने कहा कि छांछ मिल जाता तो अच्छा होता. तुरंत छांछ परोस दिया गया. उस दौरान वहां मौजूद अधिकारी ने बताया कि नौकरी में सरकारी से ज्यादा जरूरी तरकारी है. यह बात लंबे समय तक हमने याद रखा. कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार और लेखिका वंदना मिश्र, लेखक और राजनेता प्रोफ़ेसर रमेश दीक्षित, डाक्टर सिद्धार्थ कुंवर भटनागर, पत्रकार संजय श्रीवास्तव और सलिल श्रीवास्तव भी मौजूद रहे.

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