क्या आस्था से जुड़ा है हठयोग, जानें इससे जुड़ा बड़ा रहस्य

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अक्सर कुम्भ के मेले में अपने देखा होगा तमाम साधु-शांत अलग प्रकार की मुद्रा में योग करते है. आस्था से जुड़े उस मेले में कोई जलते हुए कंगनों पर ध्यान लगाए बैठा है तो कोई कांटों के बिस्तर पर लेटकर अपने आराध्य का ध्यान कर रहा होता है तो कोई दिन-रात खड़ा ही रहता है. सनातन धर्म में साधुओं द्वारा किए जाने वाले इन कठिन तप को हठयोग के नाम से जाना जाता है. इस तरह के किए जाने वाली तपस्या या फिर कहें हठ योग के पीछे का क्या रहस्य है और इसे कौन कर सकता है और सबसे खास बात यह कि ऐसा करने पर किसी को मिलता क्या है, आइए हठयोग के बारे में विस्तार से जानते हैं.

जरा सोचिए अगर आपको कह दिया जाए कि आप अपने हाथों को ऊपर करके खड़े हो जाएं तो आप अधिक से अधिक कितनी देर तक या कितने घंटे तक आप ये कर पाएंगे ? लेकिन हम कहे की आपको ये सालों तक ऐसे ही करने के लिए तो आपको ये बात नामुमकिन लगेगी, लेकिन आपको बता दें कि यह काम एक हिन्दू संत अमर भारती पिछले 5 दशकों से करते आ रहें हैं. उन्होंने लगभग 50 सालों से अपना एक हाथ ऊपर उठा रखा है. वे अपने इसी हठयोग के जरिए अपने आराध्य देवता भगवान शिव को प्रसन्न करके उनकी कृपा पाना चाहते हैं. हालांकि उनका मानना है कि इतने सालों की सफल हठयोग साधना भी शिव की कृपा से ही चली आ रही है.

कई तरह के होते है हठयोग….

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी के अनुसार साधु संत अपने इंद्रियों और मन पर नियंत्रण पाने के लिए तमाम तरह के हठयोग करते हुए अपने शरीर को कष्ट देते हैं. वे बलपूर्वक अपने मन को अपने आराध्य की कृपा पाने या फिर किसी सिद्धि को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं. स्वामी रवींद्र पुरी के अनुसार सनातन परंपरा में चार हठ का वर्णन मिलता है, जिसमें राजहठ यानि राजा का हठ, बालहठ यानि किसी बच्चे का हठ, स्त्रीहठ यानि किसी स्त्री का हठ और योगहठ यानि साधुओं के द्वारा किया जाने वाला हठ होता है.

घोर तपस्या का दूसरा नाम हठयोग है…

जेठ के महीने में अक्सर साधु अग्नि तपस्या करते हैं. जिसमें पांच कंडों की धूनी लगती है. जिसके बीच में बैठकर साधु तपस्या करते हैं. इस तपस्या में प्रतिदिन पांच-पांच कंडे बढ़ते जाते हैं. इस तरह के हठयोग में साधु अपने शरीर में भभूत लगाकर अग्नि के ढेर के बीच बैठता है. इस प्रक्रिया में सिर के ऊपर गीला कपड़ा बांधा जाता है ताकि आंख और कान को किसी भी तरह से नुकसान न पहुंचे. स्वामी रवींद्र पुरी के अनुसार पंचधूनी की परंपरा पौराणिककाल से चली आ रही है. इसे माता पार्वती ने भी भगवान शिव से विवाह करने के लिए किया था. वहीं साधुओं की परंपरा में इसे गुरु गोरखनाथ, मछंदर दास और शंकराचार्य जी ने भी अपनी साधना के लिए हठयोग किया थाा.

साधु-संत क्यों करते हैं हठयोग…

एक योगी हमेशा साधना की दृष्टि से किसी भी हठ को करता है, ताकि उसकी साधना सफल हो और उसे सिद्धि प्राप्त हो. बहुत सारे महात्मा पंचधूनी की साधना करते हैं. यह भी हठ योग की श्रेणी में आता है. इसी प्रकार यदि कोई खड़े-खड़े तपस्या करता है तो वो भी हठयोग ही कहलाता है. इसी प्रकार कोई बगैर कुछ खाए तो कोई बगैर कुछ पिये तपस्या करता है. ये सभी हठयोग के अंतर्गत आता है.इस तरह से देखें तो हठयोग का मतलब किसी साधना को करने के लिए शुद्ध और निष्काम भावना से अपने मन को बलपूर्वक एक तरफ मोड़ना है.

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