मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए…

मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए...

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समाज का हर व्यक्ति का अपना काम है जिसके अनुसार वह बेहतर समाज के निर्माण में अपना योगदान देता है। पर सच ये है कि ऐसे लोगों की संख्या हमारे समाज में कम है। पर ये भी उतना ही सच है कि इन्हीं चंद लोगों की बदौलत समाज को एक दिशा मिलती है।

इन्हीं कुछ लोगों में एक नाम शामिल है इंटरनेशनल साइक्लिस्ट हीरा लाल यादव का। सिर्फ भारत ही दुनिया को प्रेम, नशा मुक्ति और बेटी बचाओ का संदेश देने वाले इंटरनेशनल साइक्लिस्ट हीरा लाल यादव अपने साइकिल अभियान के तहत इन दिनों बनारस आए हुए हैं।

अपने व्यस्त कार्यक्रमों के बीच समय निकालकर हीरा लाल यादव ‘जर्नलिस्ट कैफे’ के ऑफिस पहुंचे और देवेंद्र सिंह से अपने अनुभवों को शेयर किया। साथ ही भविष्य की योजनाओं के बारे में बात की।

जवानों पर भारी है यह जोश-

चटख ग्रीन टी शर्ट और उसी रंग की कैप लगाए हट्टे-कट्टे हीरा लाल यादव जर्नलिस्ट कैफे के ऑफिस में दाखिल हुए तो उनका जोश देखकर यकीन करना मुश्किल हो रहा था कि इनकी उम्र 64 साल है। बात करने का अंदाज भी उतना ही जोशीला। हल्की-फुल्की औपचारिकता के बाद अपने अगले मिशन की चर्चा शुरू कर दी।

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बताया कि उन्हें नागालैंड से साइकिल यात्रा शुरू करनी है। हालांकि उनकी ट्रेन थोड़ी गलतफहमी की वजह से मिस हो गयी। जल्द ही नई डेट तय करके नागालैंड जाएंगे और वहां से देश को फिर से संदेश देने के लिए साइकिल यात्रा शुरू करेंगे। इस यात्रा की अवधि और रूट भी तय हो चुका है।

योगी की हठधर्मिता-

मूलरूप से गोरखपुर के सिधारी के रहने वाले हीरा लाल यादव ने अपने बारे बताया कि रोजी-रोटी की तलाश में परिवार के साथ मुंबई चले गए। सब्जी बेचने से लेकर तमाम छोटा-बड़ा काम किया। इस दौरान उन्हें नशे की लत लग गयी। सिगरेट काफी ज्यादा पीते थे। इसका असर हुआ कि छोटा बेटा भी स्मोकिंग की ओर अटरैक्ट होने लगा।

हीरा को इसकी जानकारी हुई तो आत्मग्लानि से भर गए। उन्होंने बच्चे के सामने एक उदाहरण पेश करने के लिए खुद नशा छोड़ने के साथ ही लोगों को इसके प्रति जागरुक करने के संकल्प लिया। अपने आसपास के लोगों को समझाने लगे। इस दौरान कई ऐसे थे जिन्होंने कहा कि नशा छोड़ना बेहद मुश्किल है। इस बात को उन्होंने चुनौती के तौर पर लिया और तय किया कि ऐसा कुछ करके दिखाएंगे कि हर इंसान यह मान ले कि मुश्किल कुछ भी नहीं है।

17 साल चलायी बिना सीट की साइकिल-

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हीरा लाल यादव बताते हैं कि उन्होंने तय किया कि बिना सीट की साइकिल से पूरे देश में यात्रा करेंगे। इसके जरिए नशामुक्ति और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देंगे। वर्ष 1997 में आजादी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर अपनी पहली साइकिल यात्रा मुंबई से दिल्ली, बाघा बार्डर से होकर कोलकाता तक की पूरी किया।

इसके बाद साइकिल यात्रा का सिलसिला शुरू हो गया। अब तक उन्होंने 18 देश की यात्राएं की हैं। देश के कोने-कोने में गये। जहां भी गए नशामुक्ति, पर्यावरण संरक्षण और बेटी बचाओ का संदेश दिया। अपनी साइकिल यात्रा के 17 साल उन्होंने बिना सीट की साइकिल ही चलाया। वर्ष 2005 में स्लिप डिस्क की प्रॉब्लम होने की वजह से अब सीट के साथ गियर की साइकिल चलाते हैं।

कर चुके हैं कई विदेश यात्रा-

हीरा बताते हैं कि देश के साथ ही विदेश में भी उन्होंने साइकिल यात्रा की। उन्होंने एक यात्रा बैंकाक से आरंभ की थाईलैंड में विभिन्न शहरों से होते हुए लाओस, कंबोडिया, वियतनाम की यात्रा की।

म्यांमार में साइकिल यात्रा की परमिशन नहीं मिलने की वजह से वहां नहीं जा सके। उन्होंने जापान की यात्रा की भी योजना बनाया है। हीरा बताते हैं कि अभी तक अपने कुल यात्रा का आंकलन तो नहीं किया लेकिन एक अनुमान के अनुसार एक लाख किलोमीटर का सफर साइकिल से पूरा कर चुके हैं।

सबने किया सम्मान-

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अपने खास अंदाज में दुनिया को संदेश देने वाले हीरा लाल यादव का सबने सम्मान किया है। वो बताते हैं कि उनसे लिए सबसे गौरव का पल तब था जब एक सम्मान समारोह के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें अपने हाथ से सम्मान दिया।

योग गुरू बाबा रामदेव ने उनका सम्मान किया। ओलंपिक मेडलिस्ट सुशील कुमार ने हीरा की बिना सीट की साइकिल को खूब पसंद किया। हीरा बताते हैं सैनिकों के प्रति उनके मन में बहुत सम्मान है। वार प्रिसनर के साथ ही शहीदों के परिवार को सम्मान दिलाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।

उनकी कोशिश है कि जल्द ही जापान में भारतीय सैनिकों के सम्मान में कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। उनके प्रयास को देखते हुए आर्मी ने भी उनका सम्मान किया। आर्मी चीफ विपिन रावत भी उनसे मिले। हीरा अब तक देश के सैकड़ों स्कूलों में लेक्चर दे चुके हैं। बीएचयू में भी 17 बार लेक्चर दिया है।

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