136 साल बाद लैंसडौन का नाम बदलकर जसवंत गढ़ करने की पहल, कैंट बोर्ड ने सेना मुख्यालय भेजा पत्र

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भारतीय सेना में वीर सैनिक व राइफलमैन जसवंत सिंह का नाम आज भी जीवंत है। माना जाता है कि लैंसडौन में ‘हीरो आफ द नेफा’ राइफलमैन जसवंत सिंह की आत्मा अमर है। अदृश्य रूप से उनकी आत्मा आज भी सेना में अपना योगदान दे रही हैं। जिस जगह  पर अमर सैनिक  जसवंत सिंह शहीद हुए थे, उसी जगह का नाम लैंसडौन है। अब 136 सालों के बाद लैंसडौन का नाम बदलकर जसवंद सिंह के नाम पर करने की कवायद हो रही है। कैंट बोर्ड ने सेना मुख्यालय को लैंसडौन का नाम जसवंतगढ़ करने की मांग को लेकर पत्र लिखा है। अगर रक्षा मंत्रालय से हरी झंडी मिल जाती है तो लैंसडौन को नये नाम के रूप में जसवंतगढ़ नाम मिल जाएगा।

 

लैंसडौन का नाम जसवंतगढ़ करने की मांग

बता दें, कैंट बोर्ड ने लैंसडौन का नाम बदल कर जसवंतगढ़ किए जाने संबंधी प्रस्ताव सेना मुख्यालय में भेजा है। जसवंतगढ़ नाम महावीर चक्र विजेता वीर सेनानी व राइफलमैन जसवंत सिंह के नाम पर रखा जा रहा है। ये वही पराक्रमी सिपाही जसवंत सिंह है, जिन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध में अकेले ही अरूणाचल प्रदेश की नूरानांग चौकी पर 300 से अधिक चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। कहा जाता है कि भारतीय सेना के ये शूरवीर सैनिक मरने के बाद भी जिंदा है। लैंसडौन की पहाड़ियों में चीनी सैनिकों से लड़ते हुए जसवंत सिंह शहीद नहीं बल्कि अमर हो गए थे। आज भी उनकी आत्मा लैंसडौन में भारतीय सैना की रक्षा करती है।

पहले भी बदला है लैंसडौन का नाम

गौरतलब है कि 5 मई 1887 में जब कालोडांडा को तत्कालीन वायसराय ऑफ इंडिया लॉर्ड लैंसडाउन के नाम पर लैंसडौन नाम रखा गया था। उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि भविष्य में भी लैंसडौन का नाम बदलने की मांग की जाएगी। 136 सालों तक जिस लैंसडौन ने गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंटल सेंटर के साथ पर्यटन के क्षेत्र में पहचान बनाई है, अब उस लैंसडौन को नया नाम मिलने की उम्मीद है।

20 जू को कैंट बोर्ड ने भेजा प्रस्ताव

बीती 20 जून को कैंट बोर्ड ने सेना मुख्यालय को भेजे एक प्रस्ताव में लैंसडौन की नाम बदल कर जसवंत गढ़ करने की सिफारिश की है। दरअसल, महावीर चक्र विजेता जसवंत सिंह गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट में बतौर राइफलमैन भर्ती हुए थे। उनके अदम्य साहस व वीरता को देखते हुए भारतीय सेना ने नूरानांग चैक पोस्ट को जसवंत गढ़ नाम देते हुए वहां जसवंत सिंह के नाम से मंदिर बनाया, जहां उनसे जुड़ी चीजों को सुरक्षित रखा गया। साथ ही सेना ने मरणोपरांत भी उन्हें सेवा में माना और अन्य सैनिकों के भांति ही उन्हें तमाम सुविधाएं व भत्ते दिए।

लैंसडौन का नाम बदली का इतिहास

लैंसडौन भी एक परिवर्तित नाम है। जिसे 4 नवंबर 1887 में रखा गया था। इससे पहले इस जगह को कालोडांडा के नाम से जाना जाता था। बता दें, अब चौथी बार इस क्षेत्र का नाम बदलने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। इस बार सेना ने लैंसडौन का नाम बदलने की कवायद की है।

  1. 05 मई 1887 को अल्मोड़ा में गढ़वाल राइफल्स की स्थापना हुई, जिसे बाद में कालोडांडा में शिफ्ट किया गया।
  2. चार नवंबर 1887 को कालोडांडा का नाम बदलकर तत्कालीन वायसराय ऑफ इंडिया लॉर्ड लैंसडाउन के नाम पर लैंसडौन नाम मिला।
  3. एक अक्टूबर 1921 को लैंसडौन में गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंटल सेंटर की स्थापना हुई और आज भी यह सेंटर लैंसडौन की पहचान है।
  4. इसी गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट के वीर सेनानी थे जसवंत सिंह रावत, जिनके नाम पर अब लैंसडौन का नाम रखने की कवायद जारी है।

चीन की गोली से नहीं मरे थे जसवंत सिंह 

कहते हैं वीर का केवल शरीर मिटता है लेकिन उसका जज्बा नहीं मिटता है। कुछ ऐसा ही भारतीय सेना के वीर जसवंत सिंह थे। सेना के राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की आत्मा आज भी जवानों का हौंसला बढ़ाती हैं। 19 अगस्त 1941 को प्रखंड वीरोंखाल के अंतर्गत ग्राम बाडियूं में जन्म जसवंत सिंह रावत गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट में राइफलमैन के पद पर थे। उनकी तैनाती अरूणाचल प्रदेश के नूरानांग पोस्ट थी। 1962 को चीनी सेना ने इस चैक पोस्ट पर हमला बोल दिया था। राइफलमैन जसवंत सिंह को छोड़ अन्य तमाम सैनिक शहीद हो गए। लेकिन जसवंत सिंह ने हिम्मत नहीं हारी और अकेले ही मोर्चा संभाला था। जसवंत सिंह ने अपनी युद्ध की रणनीति बनाई और अलग-अलग दिशाओं में जाकर चीनी सैनिकों पर फायरिंग करते रहें। चीनी सैनिकों को भी यह लगने लगा कि पोस्ट में कई भारतीय सैनिक मोर्चा संभाले थे। 72 घंटे तक जसवंत सिंह ने अकेले मोर्चा संभाले रखा था। अंत में जब उन्हें पोस्ट हाथ से जाती नजर आई तो उन्होंने स्वयं को गोली मार दी और वीरगति को प्राप्त हो गए थे। जिस पोस्ट में जसवंत सिंह शहीद हुए, सेना ने उस पोस्ट को जसवंत गढ़ नाम दिया और इस वीर सेनानी की याद में एक मंदिर का निर्माण करवाया।

जसवंत के लिए लगाई जाती है रोज भोजन-थाली

भारतीय सेना का कहना है कि आज भी अमर जसवंत  सिंह राउत की आत्मा लैंसडौन में रहती है। वहां उनकी आत्मा देश की निगरानी कर रही है। जसवंत सिंह की आत्मा के होने की बात को वैज्ञानिकों ने भी स्वीकारा है। यहीं नहीं, जिस पोस्ट में राइफलमैन जसवंत सिंह शहीद हुए थे, वहां आज भी उनके लिए प्रतिदिन खाने की थाली लगाई जाती है। पोस्ट पर जसवंत सिंह के लिए हर रोज बिस्तर लगाया जाता है। भले ही जसवंत सिंह को शहीद हुए आज 61 वर्ष गुजर गए हों, लेकिन सैनिकों के लिए वे भगवान से कम नही है। इसी वजह से भारतीय सेना में जसवंत सिंह को ‘हीरो आफ द नेफा’ के नाम से पुकारा जाता है। अब परंपरा बन गई है कि नूरानांग के जसवंतगढ़ में शहीद जसवंत सिंह की स्मृति में बनाए गए मंदिर के आगे हर सैनिक सैल्यूट करके ही आगे बढ़ता है।

 

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