मुंबई हादसा : अफवाह रेल यात्रियों की मौत का कारण बनी

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मुंबई के एलफिस्टन रेलवे स्टेशन पर पिछले दिनों मची भगदड़ में 22 रेल यात्रियों की जान चली गई, जबकि 35 लोग घायल हुए। हलांकि अभी यह पता नहीं चल सका है कि बरसात की वजह से ओवरब्रिज पर जमा यात्रियों की भीड़ में भगदड़ क्यों मची। लेकिन इसकी वजह अफवाह के सिवाय कुछ नहीं दिखती, हलांकि यह बात जांच के बाद साफ होगी कि आखिर यह घटना हुई कैसे।

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लोकल ट्रेनों में भीड़ का दबाब अधिक रहता है

यह बात भी सामने आ रही है कि बारिश की वजह से शार्ट सर्किट हुई, इसी दौरान अफवाह से भगदड़ मच गई और बेगुनाह यात्रियों की मौत हो गई, जिसमें महिला यात्री भी शामिल हैं, जो अपनी ड्यूटी पर जा रही थी। जिस समय यह घटना हुई, वह सुबह 10:40 का समय था। मुंबई और दूसरे महानगरों में यह वक्त नौकरी और ऑफिस के अलावा दूसरे कार्यो पर जाने वालों का होता है, इस दौरान लोकल ट्रेनों में भीड़ का दबाब अधिक रहता है।

अफवाह रेल यात्रियों की मौत का कारण बनी

भगदड़ क्यों मची, इस बात का खुलासा नहीं हो पाया है, लेकिन निश्चित तौर पर बेसिर-पैर की अफवाह रेल यात्रियों की मौत का कारण बनी। रेल विभाग ने मुंबई में 30 ओवरब्रिज बनाने का फैसला किया है। लेकिन सबसे अहम सवाल है कि इस तरह की घटनाओं को ओवरव्रिज बनाकर नहीं रोका जा सकता, क्योंकि अफवाहों का सिर-पैर नहीं होता। भीड़ में अगर लोग संयम से काम लें, तो इस तरह के हादसों पर रोक लगाई जा सकती है।

भीड़ भाड़वाले स्थानों पर इस तरह की कई घटनाएं हो चुकी हैं

देश में धार्मिक आयोजनों या भीड़ भाड़वाले स्थानों पर इस तरह की कई घटनाएं हो चुकी हैं। चार साल पूर्व बिहार की राजधानी पटना में दशहरा उत्सव के दौरान गांधी मैदान में मची भगदड़ में 33 लोगों की अफवाह की वजह से मौत हो गई थी। दक्षिण भारत के सबरीमाला मंदिर में भी एक धार्मिक उत्सव के दौरान पटाखे के ढेर में आग लग जाने से कई लोग जहां मारे गए थे, वहीं विस्फोट की वजह से मंदिर को को भी क्षति पहुंची थी।

15 राज्यों में पांच दशकों में 34 घटनाएं हुई हैं

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ डिजास्टर रिस्क रिडक्शन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, देश में 79 फीसदी हादसे धार्मिक अयोजनों में मची भगदड़ और अफवाहों से होते हैं। कुछ साल पहले एक सर्वे के अनुसार 15 राज्यों में पांच दशकों में 34 घटनाएं हुई हैं, जिसमें हजरों लोगों को जान चली गई।

तीसरे पायदान पर राजनैतिक आयोजन है,

रिपोर्ट के अनुसार, दूसरे नंबर पर जहां अधिक भीड़ जुटती हैं वहां 18 फीसदी घटनाएं भगदड़ की वजह से हुई। तीसरे पायदान पर राजनैतिक आयोजन है, जहां भगदड़ और अव्यवस्था से तीन फीसदी लोगों की जान जाती है। नेशनल क्राइम ब्यूरो के अनुसार, देश में 2000 से 2012 तक भगदड़ में 1,823 लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी।

धार्मिक स्थल पर अफवाहों से मची भगदड़ में 300 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं

चार साल पूर्व 2013 में तीर्थराज प्रयाग में आयोजित महाकुंभ के दौरान इलाहाबाद स्टेशन पर मची भगदड़ के दौरान 36 लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी थी। जबकि 1954 में इसी आयोजन में 800 लोगों की मौत हुई हो गई थी। उस दौरान कुंभ में 50 लाख लोगों की भीड़ आई थी। 2005 से लेकर 2011 तक धार्मिक स्थल पर अफवाहों से मची भगदड़ में 300 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।

दुनिया में भगदड़ की 215 घटनाएं हुई

राजस्थान के चामुंडा देवी, हिमांचल के नैना देवी, केरल के सबरीमाला और महाराष्ट्र के मंडहर देवी मंदिर में इस तरह की घटनाएं हुई हैं। हलांकि भीड़ और अफवाहों की वजह से मचने वाली भगदड़ का संबंध सिर्फ भारत से नहीं, बल्कि विदेशों भी इस तरह की घटनाएं हुई हैं। यहां मरने वालों को संख्या सबसे अधिक रही है। 1980 से 2007 तक दुनिया में भगदड़ की 215 घटनाएं हुई, जिसमें 7,000 से अधिक लोगों की मौत हुई।

घटनाओं में दोगुने से अधिक लोग जख्मी हुए। 2005 में बगदाद में एक धार्मिक जुलूस के दौरान तकरीबन 700 लोग मारे गए थे जबकि 2006 में मीना घाटी में हज के दौरान लगभग 400 लोगों की मौत हुई।

हमें दोबारा दूसरे हादसों के लिए जिम्मेदार बनाती है

हमारे पास भीड़ को नियंत्रित करने का कोई सुव्यवस्थित तंत्र नहीं है, जिसकी वजह है कि आए दिन इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं। सरकार की ओर से लोगों को मुआवजा देकर अपने दायित्वों की इतिश्री कर ली जाती है। लेकिन सरकार या व्यवस्था से जुड़े लोगों का ध्यान फिर इस ओर से हट जाता है। यही लापरवाही हमें दोबारा दूसरे हादसों के लिए जिम्मेदार बनाती है।

हादसे कई परिवारों को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करते हैं जहां से वे पुन: अपनी दुनिया में नहीं लौट पाते हैं। अकारण परिवार का मुखिया, बेटी, पत्नी, मां, या पिता शिकार हो जाते हैं।

आयोजकों और प्रशासन के पास इंतजाम नहीं होते

आम तौर राजनीति रैलियां हों या फिर धार्मिक आयोजन भीड़ जुटाने के लिए तरह-तरह का हथकंडा अपनाया जाता है। भीड़ तो जमा हो जाती है, लेकिन उसे नियंत्रण के लिए आयोजकों और प्रशासन के पास इंतजाम नहीं होते, जिसका नतीजा होता है कि इस तरह की अफवाह की वजह से लोगों में अपने को सुरक्षित रखने की होड़मच जाती है। इस वजह से बेकाबू भीड़ की भेंट बेगुनाह लोग चढ़ जाते हैं।

भगदड़ के दौरान महिलाएं और मासूम दब जाते हैं

कहा जाता है कि अफवाह को सिर पैर नहीं होते हैं। इस स्थिति में लोगों में सोचने समझने की क्षमता खो देते हैं, जिसका नतीजा है भीड़ के आपा खोने की वजह से लोग मारे जाते हैं। हादसे के बाद उतनी व्यवस्था नहीं होती, जहां पीड़ितों को तत्काल इलाज की सुविधा उपलब्ध हो और उनकी जान बचाई जा सके। हादसा महिलाओं और मासूम बच्चों के लिए बेहद दुखद होती है, क्योंकि हादसे के दौरान लोग भाग नहीं पाते। क्योंकि भगदड़ के दौरान महिलाएं और मासूम दब जाते हैं। मौत की वजह खुद आयोजक होते हैं।

अनहोनी और मीडिया की खीचाई के बाद सरकार जागती है

आम तौर पर धार्मिक आयोजन के लिए प्रशासनिक अनुमति नहीं ली जाती है। आगर अनुमति ली भी जाती है तो वह औपचारिक होती है। क्योंकि आदेश से अधिक लोग जुटते हैं, जबकि दूसरी सुविधाएं उस तरह की नहीं होती हैं। सरकारें और अफसर भी इस तरह के आयोजनों से मुंहबंद कर लेते हैं। किसी भी प्रकार की अनहोनी और मीडिया की खीचाई के बाद सरकार जागती है।

जाट आंदोलन गलत सरकारी नीति का नतीजा है

हरियाणा का पंचकूला कांड, जाट आंदोलन गलत सरकारी नीति का नतीजा है। कोर्ट के बार-बार दखल के बाद खट्टर सरकार वोट बैंक बनाती रही, जबकि भीड़ जमा होती रही। जबकि अदालत इस मसले पर हर रोज सरकार को चेतावनी दे रही थी। हादसे होने के कारण सरकारें चुप हो जाती हैं। इस तरह की घटनाओं से सबक नहीं लेती हैं। देश के लिए यह शर्म की बात है। विदेशों में इस तरह की घटनाएं कम होती हैं।

घटना कि सही जांच के बाद दोषियों को सजा मिलनी चाहिए

मुंबई के एलिफिस्टन रेलवे स्टेशन पर हुआ हादसा हमारे लिए चुनौती है। एक तरफ हम बुलेट रेल चलाने जा रहे हैं, दूसरी तरफ रेलवे स्टेशन पर जमा होने वाली यात्री सुरक्षित नहीं हैं। भविष्य में इस तरह की वारदात न हो हमें विचार करना होगा। भीड़ से बचने के लिए और लोकल ट्रेनों और सुविधाओं को बढ़ाना होगा। रेल यात्रियों को भी अफवाह और भीड़ में संयम बरतने की आवश्यकता है। इस घटना कि सही जांच के बाद दोषियों को सजा मिलनी चाहिए।

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