65 प्रतिशत लोगों की पहुंच शौचालय तक नहीं है

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भारत के ग्रामीण इलाकों में लगभग 65 प्रतिशत लोगों की पहुंच शौचालय तक नहीं है। इसलिए देश में धार्मिक मामलो से ज्यादा शौचालय पर ध्यान देने की आवश्यकता है। फिल्मकार राकेश ओम प्रकाश मेहरा का कहना है कि चाहे अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म ‘ट्वायलेट एक प्रेम कथा’ हो या उनके निर्देशन में बनी फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’, खुले में शौच बंद करने से संबंधित इन फिल्मों का समय बिल्कुल सही है। फिल्मकार को लगता है कि देश को मंदिर और मस्जिद से ज्यादा शौचालय बनाने की जरूरत है।

मेहरा ने मुंबई से फोन पर बताया, “मैं वास्तव में नहीं जानता कि ये फिल्में क्या करेंगी, लेकिन ये सही समय पर बनी हैं।”यूनीसेफ इंडिया के मुताबिक, देश में 56.4 करोड़ लोग अब भी खुले में शौच करते हैं। भारत के ग्रामीण इलाकों में लगभग 65 प्रतिशत लोगों की पहुंच शौचालय तक नहीं है।

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जहां शुक्रवार को रिलीज हुई फिल्म ‘ट्वायलेट एक प्रेम कथा’ मनोरंजक तरीके से शौचालय बनाने की जरूरत पर प्रकाश डालते हुए स्वच्छ भारत के संदेश का प्रसार कर रही है, वहीं ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ की कहानी झुग्गी में रहने वाले एक लड़के के बारे में है, जो अपनी मां के लिए शौचालय बनवाना चाहता है।

ये कहानियां इंसानों के बारे में हैं..

मेहरा ने कहा कि ये फिल्में शौचालय जैसे विषय से परे जाती हैं।उन्होंने कहा, “ये कहानियां शौचालयों के बारे में नहीं हैं। ये कहानियां इंसानों के बारे में हैं..इसलिए मैं उम्मीद करता हूं कि ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ लोगों के दिलों को छुएगी और आपको सकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी।” फिल्मकार ने कहा कि वह फिल्म के जरिए जागरूकता का प्रसार होने की उम्मीद करते हैं।

“मैं धार्मिक विश्वास को झुठला नहीं रहा हूं..

उन्होंने कहा, “फिल्म की आवाज आपसे कहती है कि मंदिर, मस्जिद बनाने से ज्यादा जरूरी शौचालय बनाना है।”राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मकार ने कहा, “मैं धार्मिक विश्वास को झुठला नहीं रहा हूं.. पर मैं मंदिर-मस्जिद में विश्वास नहीं करता। मैं मानता हूं कि वे समाज के लिए आवश्यक हैं और लोग वहां मन की शांति और अध्यात्म से जुड़ाव पाते हैं, लेकिन मेरा यह भी मानना है कि राष्ट्र का ध्यान उसी पर केंद्रित नहीं रखा जा सकता।”

नगरपालिका स्कूलों में शौचालय के निर्माण में योगदान दे रहे

उन्होंने कहा कि राष्ट्र का ध्यान देश के लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक लाभ पर देना होगा, ताकि वे खुश रहें। ‘रंग दे बसंती’ के निर्देशक इन दिनों गैर-सरकारी संगठन युवा अनस्टॉपेबल के साथ मिलकर नगरपालिका स्कूलों में शौचालय के निर्माण में योगदान दे रहे हैं।दिल्ली में पले-बढ़े मेहरा पिछले तीन दशकों से मुंबई में रह रहे हैं। आर्थिक राजधानी में यह फिल्म सुख-सुविधा संपन्न वर्ग से इतर झुग्गियों में रहने वाले लोगों के इर्द-गर्द घूमती है।

उम्मीद ने उन्हें इस फिल्म के लिए प्रेरित किया

फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइममिनिस्टर’ चार बच्चों के साथ वास्तव में झुग्गी बस्तियों में फिल्माई गई है। इसमें राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अंजलि पाटिल ने भी काम किया है। उन्होंने कहा कि 30 साल पहले जब वह मुंबई में शिफ्ट हुए थे तो यहां एकमात्र धारावी झुग्गी थी, लेकिन आज यहां कई झुग्गियां हैं।फिल्मकार के मुताबिक, इन झुग्गियों में रहने वाले लोग कई समस्याओं के बावजूद उम्मीद नहीं छोड़ते हैं और उनकी इसी उम्मीद ने उन्हें इस फिल्म के लिए प्रेरित किया।

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