चॉकलेट जलवायु परिवर्तन से लड़ने में कैसे करता है मदद

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लखनऊ: दुनिया भर में आपको करोड़ों लोग मिल जाएंगे, जिन्हे चॉकलेट पंसद हैं. लेकिन अगर हम आपसे कहें कि ये जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की क्षमता रखता है. ये पढ़कर आपको हैरानी हुई होगी लेकिन एक्सपर्ट का मानना है ऐसा हो सकता है. उनका कहना है कि बायोचर की मदद से ये संभव हो सकता है. ये तकनीक पृथ्वी के वातावरण से कार्बन हटाने में मदद कर सकती है.

जर्मनी के हैम्बर्ग में एक बायोचार फैक्ट्री है, जहां कोको के छिलकों को 600 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है. इसके बाद इससे निकलने वाला काला पाउडर जलवायु परिवर्तन से लड़ने की क्षमता रखता है. इस खास काले पाउड को ही बायोचर कहा जाता है.

बायोचर कैसे जलवायु परिवर्तन से लड़ने में है सक्षम?

इंसान धरती पर हर साल करीब 4000 टन कार्बन डाई ऑक्साइड पैदा करते हैं. संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑफ क्लाइमेट चेंज(आईपीसीसी) का मानना है बायोचर में जलवायु परिवर्तन से लड़ने में अपार संभावनाएं हैं. बायोचर करीब 260 करोड़ टन कार्बन डाई ऑक्साइड(सीओटू) को जमा करने में मदद कर सकता है. लेकिन इसके साथ ही इसके इस्तेमाल को बढ़ाना एक चुनौती है.

बायोचर की बात करें तो इसे एक खास तरीके से तैयार किया जा सकता है. इसके लिए एक ऑक्सीजन मुक्त कमरा तैयार किया जाता है. इस कमरे में बायोचर बनाने के लिए कोको के छिलके को करीब 600 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है.

बायोचर का खाद की तरह किया जा सकता है इस्तेमाल

बायोचर बनाने की प्रक्रिया के आखिर में जो चीज बनकर बाहर निकलती है, उसे खाद की तरह इस्तेमाल किया जाता है. ग्रीन कंक्रीट बनाने में इसका इस्तेमाल हो सकता है. दरअसल बायोचर बनाने की प्रक्रिया ग्रीन हाउस गैसों को कैद कर लेती है. सर्कुलर कार्बन जो बायोचर बनाने वाली प्रमुख कंपनी है.

उसका कहना है कि बायोचर मिट्टी की क्विलाटी को बेहतर कर सकता है. इसके साथ ही ये मिट्टी का नेचुरल माइक्रोबायोलॉजिकल बैलेंस भी वापस ला सकता है. सर्कुलर कार्बन के सीईओ पाइक स्टेनलुंड ने न्यूज एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा कि हम कार्बन चक्र को उलट रहे हैं.

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