एक ऐसा संग्रहालय जहां है toilets का 4500 साल पुराना इतिहास
जीव तथ्यों और वस्तुओं से भरे हमारे संग्रहालयों और इतिहास की पुस्तकों ने बीते समय में कुछ बहुत दिलचस्प कहानियां गढ़ी हैं। लेकिन एक ऐसे संग्रहालय की कहानी को कही जगह नहीं मिलती है, जहां शौचालय के 4,500 साल पुराने इतिहास को संरक्षित कर रखा गया है।
पश्चिमी दिल्ली के द्वारका स्थित सुलभ इंटरनेशनल म्यूजियम ऑफ टॉयलेट्स शहर के अन्य संग्रहालयों के जितना बड़ा नहीं है, लेकिन यहां 2,500 ईसा पूर्व से स्वच्छता के विकास को दर्शाते दिलचस्प तथ्य चित्र और वस्तुओं का अद्भुत संग्रह है।
अपने आप में खास इस संग्रहालय में विभिन्न प्रकार की शौचालय सीटें प्रदर्शित हैं। यहां लकड़ी से लेकर सजावटी, विद्युत से लेकर फूलों के विभिन्न प्रकार के शौचालय लोगों को चकित करते हैं।सुलभ को सामाजिक सुधारक बिंदेश्वर पाठक ने ऑस्ट्रिया की फ्रीट्ज लिस्चाका और दुनिया भर के 80 से 90 पेशेवरों की मदद से स्थापित किया था।
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इस संग्रहालय के निगरानीकर्ता बागेश्वर झा ने बताया, “यह दुनिया भर में शौचालयों के विकास की ऐतिहासिक प्रवृत्तियों के बारे में शिक्षित और अन्वेषण के उद्देश्यों के साथ स्थापित किया गया था।”शौचालय सुविधाओं के अस्तित्व का एक लंबा इतिहास है और शायद यह रोमन साम्राज्य से भी अधिक पुराना है।
शौचालयों के विकास के इतिहास को जानना भारत में थोड़ा विचित्र है, जहां आज भी बहुत से लोग रेलवे पटरियों के पास या अन्य स्थानों पर खुले में शौच करते हैं। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि भारत इस क्षेत्र में अग्रणी देशों में शामिल रहा है। मोहनजोदड़ो की खुदाई में स्नान घरों में निजी शौचालय के अस्तित्व की पुष्टि होती है।
इस संग्रहालय में प्राचीन मिस्र, बेबीलोनिया, ग्रीस, जेरूशलम, क्रीत और रोम में इस्तेमाल में लाए जाने वाले शौचालयों और स्वच्छता की प्रथाओं पर आधारित लेख, चित्रकारी और प्रतिरूप देखने को मिलते हैं।
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संग्रहालय द्वारा प्रकाशित एक साहित्य के अनुसार, यहां शौचालय की आदतों और व्यवहार से संबंधित बहुत दिलचप्स और हास्यास्पद वस्तुएं भी हैं। ब्रिटेन में प्राचीन समय में पत्थर के शौचालयों और स्नानागारों में कल्पना का अद्भुत दर्शन पेश किया था।झा ने कहा, “कुछ साल पहले एक फ्रांसीसी कलाकार बेंजामिन जिलबरमैन ने मिस्टर पी एंड पू मॉडल को संग्रहालय को भेंट किया था।”
उन्होंने कहा, “आंध्र प्रदेश के गिरी कुमार नामक एक व्यक्ति ने हमें एक ऐसा मॉडल भेंट किया था, जिसे भारतीय और पश्चिमी दोनों तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता था। इस मॉडल को उन्होंने खुद डिजाइन किया था।”
झा अफसोस जताते हुए कहते हैं कि निजी और सामुदायिक स्वच्छता और ‘संपूर्ण मानवता के कल्याण’ विषय पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता, जितने का वह हकदार है। यह संग्रहालय लोगों को निशुल्क प्रवेश देता है और राष्ट्रीय अवकाश के अलावा हर दिन खुला रहता है।
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