एक अस्पताल से नहीं, सरकारी अस्पतालों को सुविधाएं देने से बेहतर होंगी स्वास्थ्य सेवाएं

एमएसएमई एवं स्टार्टअप फोरम-भारत, आईएमएस-बीएचयू की ओर से आयोजित की गई पैनल चर्चा

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हेल्थकेयर फॉर डेवलप्ड इंडिया/2047 विषय पर आयोजित पैनल चर्चा में अनेक विशेषज्ञों ने अगले 5 वर्षों में बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की राह बताई. इस पैनल चर्चा शृंखला का उद्देश्य आगामी 2029 तक स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए भविष्यगामी मसौदा तैयार करना, स्वस्थ काशी, स्वस्थ यूपी और स्वस्थ भारत का मार्ग प्रशस्त करना है. आईएमएस-बीएचयू स्थित न्यू लेक्चर थिएटर में आयोजित पैनल में चर्चा में बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल के चिकित्साधीक्षक प्रो. कैलाश कुमार ने कहा कि केवल शारीरिक स्वास्थ्य ही महत्वपूर्ण नहीं होता बल्कि मानिसक स्वास्थ्य का स्वस्थ्य होना अति आवश्यक है. घर में यदि कोई बीमारी आ जाती है तो पूरा घर परेशान होता है. टारगेट से नहीं बल्कि गोल्स तय करना चाहिए. चिकित्सकों की तैनाती गांव में हो ये अच्छी बात है, लेकिन व्यवस्था को ये भी सोचना चाहिए कि जो भी डॉक्टर रिमोट क्षेत्र में भेजा जाता है तो उसको बुनियादी सुविधाएं मिलनी चाहिए.

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सरकार के सभी विभागों को मिलकर काम करना चाहिए

सरकार के सभी विभागों को सकारात्मक भाव से मिलकर काम करना चाहिए. वहां स्कूल भी हों, सड़क भी हों, पीने का पानी मिलें. जांच मशीनों से इलाज में सहयोग मिलता लेकिन मशीनें इलाज नहीं करतीं. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों का संचालन ठीक से होना चाहिए. वहां खाली पदों को भरा जाना चाहिए. बढ़ती जनसंख्या पर भी सोचना होगा. स्वास्थ्य सेवाओं की सीमाएं हैं, जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान देना समय की महत्वपूर्ण मांग है. स्ट्रीट फूड्स की गुणवत्ता पर ध्यान देना जरूरी है. फूड एलर्जी पर बात होनी चाहिए. पर्यावरण का ध्यान देना होगा और पेड़ों का संरक्षण बहुत जरूरी है.

जंक फूड पर नकेल कसनी चाहिए

उन्होंने कहाकि जंक फूड पर नकेल कसनी चाहिए. बच्चों को मोबाइल से दूर करते हुए खेलकूद को शामिल करना होगा. छोटे-छोटे गोल सेट करना होगा. एचआईवी की वजह से ब्लड बैंक सुधार दिये गए और कोविड ने आईसीयू को उन्नत कर दिया. कमजोर को मजबूत बनाने के लिए किसी मजबूत को बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए. हमारे कार्य ऐसे होने चाहिए जो मृत्यु के बाद भी जीवित हों. हॉस्पिटल में केवल बेड बढ़ाने से काम नहीं होगा, बल्कि बेड के सापेक्ष स्टाफ भी बढ़ाने होंगे. प्रशिक्षित मानव संपदा को रोके जाने की नीति बनाई जानी चाहिए. इसके साथ ही विजिटिंग फैकल्टी की नीति बनानी होगी. रेजिडेंट डॉक्टर की प्रतिनियुक्ति जिला अस्पतालों में की जाती है. इसे बदलने की आवश्यकता है. ऐसा करने से रेजिडेंट की पढ़ाई पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

पेशेंट फ्रेंडली वातावरण की आवश्यकता

पूर्व विभागाध्यक्ष, रेडियो एवं इमेजिंग, आइएमएस-बीएचयू प्रो. आशीष वर्मा ने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं को उन्नत करने के लिए पेशेंट फ्रेंडली वातावरण बनाने की आवश्यकता है. दुनिया की स्वास्थ्य सेवाएं तेजी से बदल रही हैं. मरीज अपनी सुविधाओं के अनुसार अपनी मांग को रखते हैं, उनकी मांग पर इलाज एवं डायग्नोसिस की राह बनती जा रही है. मरीज और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े प्रत्येक लोगों की भागीदारी से ही भारत की स्वास्थ्य सेवाएं उन्नत होंगी. विभिन्न क्षेत्र के उद्यमियों को भी जोड़ने की आवश्यकता है. आर्टिफिशियल इंटिलिजेंस के प्रयोग से इलाज की राह आसान बनाई जा सकती है.

आम मरीज को भर्ती के लिए बेड नहीं मिल पाते

गैस्ट्रोइण्ट्रोलॉजिस्ट डा. हेमंत गुप्ता ने कहा कि वर्ष 2014 में एक अवधारणा पर विचार किया गया था कि आखिर बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं को कैसे ठीक किया जाए. पहले की सरकारों में स्वास्थ्य सेवाएं प्राथमिकता नहीं थीं. कोविड ने सबको जगाया है. काशी में देखा जाए तो अनेक सरकारी अस्पताल हैं. पहले उसमें बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव था. आम मरीज को भर्ती होने के लिए बेड नहीं उपलब्ध हो पाते. किसी एक अस्पताल या संस्थान को उन्नत करने से नहीं बल्कि सरकारी अस्पतालों को स्तरीय सुविधाएं देने से स्वास्थ्य सेवाएं उन्नत होंगी. विशेष स्वास्थ्य सेवाओं का विकेंद्रीकरण होना आवश्यक है. हॉस्पिटल के विकास से आसपास का वातावरण भी विकसित होता है.

कोरोना ने बता दिया कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है

इस अवसर पर बलिया विश्वविद्यालय के पूर्व संस्थापक कुलपति प्रो. योगेंद्र सिंह ने कहा कि कोरोना ने बता दिया कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है. समाज की विषमता समाप्त करने का काम स्वास्थ्य सेवाएं कर सकती हैं. गांव से शहर तक स्वास्थ्य सेवाएं एक होनी चाहिए. गांव का भी लोड शहर के बड़े अस्पतालों पर पड़ता है. समाज में जागरुकता अभियान चलाना चाहिए.

80 प्रतिशत लोगों को इलाज नहीं मिल पाता

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण, नई दिल्ली के विशेष कार्याधिकारी हिमांशु बुराड ने 2047 के भारत का स्वास्थ्य कैसा हो, इसके लिए प्रस्ताव रखे. कार्यक्रम के सलाहकार प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डा. वेणु गोपाल झंवर, देवा इंस्टीट्यूट ने उद्घाटन भाषण दिया. उन्होंने कहा कि हमको अपनी क्षमता को समझने की जरूरत है. तभी स्वास्थ्य सेवा के माध्यम से हम अपनी अर्थव्यवस्था को स्वस्थ्य बना सकते हैं. देश में 14 प्रतिशत की बड़ी जनसंख्या दिमागी बीमारियों से ग्रसित है. इसमें भी दुखद ये है कि 80 प्रतिशत लोगों को इलाज नहीं मिल पाता है. इलाज न मिलने की सबसे बड़ी समस्या इलाज पाने की रिक्तता है, ट्रीटमेंट गैप.
पैनल चर्चा में डा. प्रियंका अग्रवाल, डॉ. सिद्धार्थ लखोटिया, डॉ. तुहिना बनर्जी, डॉ. एनके अग्रवाल, डॉ. मानुषी श्रीवास्तव, डॉ. अरुण कुमार दुबे, डॉ. एस.एस. चक्रवर्ती, डा. उपिंदर कौर, डॉ. अनुराग सिंह, डॉ. पी.वी. राजीव, डॉ. विजय सोनकर, प्रो. नीरज शर्मा, प्रो. संजय सिंह, डॉ. इंद्रनील बसु, डॉ. अशोक राय, श्री सर्वेश पांडे, डॉ. पीयूष हरि, डॉ. स्वप्निल पटेल, डॉ. प्रभास कुमार रॉय, डॉ. अतुल्य रतन ने विचार व्यक्त किये. अतिथियों का स्वागत एवं संचालन सह-अध्यक्ष डॉ. मनोज कुमार शाह ने किया. कार्यक्रम संयोजक डॉ. अंशुमान बनर्जी ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

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