कभी तिवारी हाते से चलती थी यूपी की सियासत, CBI ने दर्ज किया केस

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योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के कुछ दिनों बाद ही गोरखपुर की सड़कों पर उनके खिलाफ नारेबाजी हो रही थी। वजह थी पूर्व कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी के घर पर छापेमारी। तिवारी के समर्थकों ने इसे ‘बदले की कार्रवाई’ के तौर पर देखा। बदला, दो प्रमुख जातियों के बीच चली आ रही अदावत का, जिसकी प्रमुख धुरी पंडित हरिशंकर तिवारी हमेशा बने रहे।

बीते सोमवार को एक बार फिर से सियासी पारा चढ़ता दिखा, जब हरिशंकर तिवारी के बेटे और BSP विधायक विनय शंकर तिवारी और बहू रीता तिवारी के खिलाफ सीबीआई ने सोमवार को केस दर्ज किया। विनय शंकर तिवारी की कंपनी से जुड़े बैंक फ्रॉड के मामले में सीबीआई ने ताबड़तोड़ छापेमारी की गई। यह छापे लखनऊ, गोरखपुर, नोएडा समेत कई ठिकानों पर हुए।

बोलती थी हरिशंकर तिवारी की तूती- 

गोरखपुर जिले के दक्षिणी छोर पर चिल्लूपार विधानसभा सीट से लगातार 6 बार विधायक रहे हरिशंकर तिवारी की पहचान ब्राह्मणों के बाहुबली नेता के तौर पर है। 80 के दशक में राजनीति में धनबल और बाहुबल के जनक के तौर पर स्थापित हरिशंकर तिवारी की तूती बोलती थी। एक समय था जब गोरखपुर शहर के बीचोबीच ‘तिवारी का हाता’ से ही प्रदेश की सियासत तय होती थी। कांग्रेस, बीजेपी, एसपी, बीएसपी…सरकार चाहे किसी की भी रही हो, हरिशंकर तिवारी सबमें मंत्री रहे।

बताया जा रहा है कि गंगोत्री इंटरप्राइजेस के लिए बैंक लोन लिया गया था। लोन लेने के लिए फर्जी दस्तावेजों का प्रयोग किया गया और बाद में कंपनी ने लोन का भुगतान भी नहीं किया। इस मामले में बैंक ने विनय तिवारी की कंपनी के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई थी।

बताया जा रहा है कि चिल्लूपार से बसपा विधायक विनय शंकर तिवारी, पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी और उनके परिवार से जुड़ी कंपनियों गंगोत्री इंटरप्राइजेज, मैसर्स रॉयल एंपायर मार्केटिंग लिमिटेड, मैसर्स कंदर्प होटल प्राइवेट लिमिटेड के ठिकानों पर छापेमारी की गई है। सभी कंपनियां विनय तिवारी से ही जुड़ी हैं।

हरिशंकर तिवारी के नाम से जानी जाती थी ये सीट-

आठवें दशक की बात है, पूर्वी यूपी में बाहुबल सियासत के रास्ते खोल रहा था। कई बड़े माफिया गिरोह यहां पैर पसार चुके थे। इसी गिरोहबंद राजनीति के बीच हरिशंकर ने राजनीति का रास्ता पकड़ा। शुरुआती पराजय का स्वाद चखने के बाद 1985 में हरिशंकर चिल्लूपार से विधायक बने। इसके बाद यह सीट तिवारी के नाम से जानी जाने लगी।

तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह के तमाम प्रयास के बावजूद चिल्लूपार से तिवारी की जड़ें नहीं उखड़ीं। वह 1989,91,93,96 और 2002 में यहीं से जीते। इसी सीट के दम पर हरिशंकर राज्य के मंत्री बने, लेकिन लोकतंत्र पिछले आंकड़ों से नहीं चलता।

2007 में राजेश त्रिपाठी को बीएसपी ने टिकट दिया। पहले इस सीट पर श्यामलाल यादव बीएसपी से लड़ते थे। यादव टक्कर तो देते लेकिन जीत नहीं पाते। स्थानीय पत्रकार से नेता बने राजेश त्रिपाठी को भी बहुत गंभीरता से नहीं लिया गया। लेकिन जब मतपेटियां खुलीं तो परिणाम बदल चुका था। हरिशंकर अपनी सीट गंवा चुके थे। पहली बार जीते राजेश को इसका इनाम भी मिला और मायावती ने उन्हें मंत्री बनाया। 2012 में राजेश फिर जीते।

2017 में जब बीएसपी का टिकट राजेश ने अपने विरोधी हरिशंकर तिवारी परिवार में जाते देखा तो उन्होंने बगावत कर दी और बीजेपी में शामिल हो गए। बीएसपी ने हरिशंकर के बेटे विनय तिवारी को चिल्लूपार से टिकट दिया और वह चुनाव जीत गए।

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