कृष्णा सोबती को मिलेगा 'ज्ञानपीठ पुरस्कार'
महान लेखिका कृष्णा सोबती को ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा जायेगा। उन्होंने भारत विभाजन से लेकर, स्त्री-पुरुष संबंधों, भारतीय समाज में आते बदलाव और मानवीय मूल्यों के पतन जैसे विषयों को बेबाकी से कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत किया।
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प्रसिद्ध लेखिका कृष्णा सोबती को इस साल के ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए चुना गया है। 1966 में प्रकाशित मित्रो मरजानी संभवत: उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है, जिसके जरिये उन्होंने स्त्रियों की दैहिक आजादी के सवाल को मुखरता से उठाया था।
53वां ज्ञानपीठ पुरस्कार कृष्णा सोबती को देने का निर्णय
इसके अलावा डार से बिछड़ी, दिलो-दानिश, ऐ लड़की और समय सरगम जैसे उपन्यासों से उन्होंने हिंदी कथा साहित्य को समृद्ध किया है। ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई ने शुक्रवार को बताया कि प्रो. नामवर सिंह की अध्यक्षता में हुई प्रवर परिषद की बैठक में 53वां ज्ञानपीठ पुरस्कार कृष्णा सोबती को देने का निर्णय लिया गया।
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सोबती साहसी लेखन के लिए जानी जाती हैं
पुरस्कार स्वरूप उनको 11 लाख रुपये, प्रशस्ति पत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा प्रदान की जाएगी। 18 फरवरी, 1924 को गुजरात (वर्तमान पाकिस्तान) में जन्मी सोबती साहसी लेखन के लिए जानी जाती हैं। उनके रचनाकर्म में निर्भीकता, खुलापन और भाषागत प्रयोगशीलता दिखाई देती है।
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कौन हैं कृष्णा
कृष्णा सोबती का जन्म गुजरात में 18 फरवरी 1925 को हुआ था। विभाजन के बाद सोबती दिल्ली में आकर बस र्गई और तब से यही रहकर साहित्य सेवा कर रही हैं। उन्हें 1980 में ‘जिन्दी नामा’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। 1996 में उन्हें साहित्य अकादमी का फेलो बनाया गया जो अकादमी का सर्वोच्च सम्मान है।
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