गीता प्रेस को मिलेगा 2021 का गांधी शांति पुरस्कार, गीता प्रेस नहीं स्वीकार करेगी सम्मान 

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100 साल पुरानी गीता प्रेस आज देश ही नही बल्कि दुनिया भर में एक जाना माना नाम बन चुका है। गीता प्रेस ने श्रीमद्भागतगीता, रामचरित मानस, पुराण, उपनिषद जैसे कई बड़े धार्मिक ग्रंथों की पुस्तकों को प्रकाशित किया है। लेकिन इसके बाद भी गीता प्रेस की पुरानी  परंपरा है कि यह प्रेस कभी भी किसी भी प्रकार का सम्मान स्वीकार नहीं करता है। वहीं रविवार को संस्कृति मंत्रालय द्वारा गोरखपुर की गीता प्रेस को 2021 का ‘गांधी शांति पुरस्कार’ दिया जाएगा। गीता प्रेस को ये पुरस्कार ‘अहिंसक और दूसरे गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक  परिवर्तन की दिशा में योगदान के लिए दिया जा रहा है। लेकिन गीता प्रेस ने इस पुरस्कार को लेने से इंकार कर दिया है, क्योंकि गीता प्रेस अपने नियमों को तोड़ना नहीं चाहता है।

2021 का गांधी शांति पुरस्कार 

दरअसल, रविवार को संस्कृति मंत्रालय ने इस साल 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार गोरखपुर गीता प्रेस को देने की घोषणा की है। यह ऐलान संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी के निर्णय के बाद रविवार को किया गया था। गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के बाद गीता प्रेस से जुड़े हुए लोगों को काफी खुशी हो रही है। पीएम मोदी और सीएम योगी ने भी ट्वीट कर गीता प्रेस को बधाई दी है।

सम्मान लेगी पर धनराशि नहीं

बता दें, सबसे बड़े व प्रतिष्ठित धार्मिक किताबों के प्रकाशक गीता प्रेस के सामने यह किसी धर्म संकट से कम नही है। यहां एक ओर सम्मानीय गांधी शांति पुरस्कार है तो दूसरी संस्था की अपनी परंपरा है। ऐसे में गीता प्रेस ने संस्था की परंपरा को बनाए रखते हुए साल 2021 का गांधी शांति पुरस्कार को लेने से इंकार कर दिया है। इसके साथ ही गीता प्रेस ने कहा है कि वह सम्मान जरूर स्वीकार करेगा लेकिन इसके साथ मिलने वाली धनराशि नहीं लेगा।

आर्थिक सहायता नहीं लेती है गीता प्रेस

गोरखपुर गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने कहा, ‘हम लोग किसी भी तरह के आर्थिक सहायता या पुरस्कार नहीं लेते हैं, इसलिए इसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं।’ बता दें कि इससे पहले भी गीता प्रेस ने कभी भी कोई पुरस्कार स्वीकार नहीं किया था। प्रबंधन से जुड़े लोगों ने कहा कि हालांकि इस बार परंपरा को तोड़ते हुए सम्मान को स्वीकार किया जाएगा। लेकिन इसके साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की धनराशि नहीं ली जाएगी।

महात्मा गांधी पर छपे थे कई लेख

गीता प्रेस के ट्रस्टी ने कहा कि गीता प्रेस से महात्मा गांधी का विशेष जुड़ाव था। उन्होंने कल्याण पत्रिका के लिए पहला लेख लिखा था। इसमें गांधी जी ने स्वाभाविक शब्द के दुरुपयोग का जिक्र किया था। जिसके बाद उन्होंने कई बार कल्याण के लिए लेख या संदेश लिखे। गांधी जी के निधन के बाद गीता प्रेस में उनके विचार छपते रहें। महात्मा गांधी ने 8 अक्टूबर 1933 को गीता प्रेस की गीता प्रवेशिका के लिए भूमिका लिखी थी।

1923 में हुई थी गीता प्रेस की स्थापना

गीता प्रेस की स्थापना साल 1921 में कोलकाता में गोविंद भवन ट्रस्ट में हुई थी। गीता प्रेस को जयदयाल गोयनका ने संस्थापित किया था। इसी ट्रस्ट से गीता प्रेस का प्रकाशन होता था। छपाई के दौरान किताबों में त्रुटि रह जाती थी, जिसकी शिकायत गोयनका जी ने प्रेस के मालिक से की तो उन्होंने कहा कि इतनी शुद्ध गीता का प्रकाशन चाहिए तो अपनी प्रेस की स्थापना कर लीजिए। जिसके बाद गीता प्रकाशित करने के लिए प्रेस लगाने की बात चली तो गोरखपुर में प्रेस की स्थापना का फैसला किया गया। इसके बाद 29 अप्रैल 1923 को हिन्दी बाजार में 10 रुपये महीने के किराए पर कमरा लेकर गीता का प्रकाशन शुरू किया गया। जिसके बाद धीरे-धीरे गीता प्रेस का निर्माण हुआ।आज गीता प्रेस को 100 साल हो चुके हैं।

92.5 करोड़ पुस्तकें हो चुकी हैं प्रकाशित

गीता प्रेस गोरखपुर लगभग 1850 प्रकार की 92.5 करोड़ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित कर चुकी है। इनमें हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, मराठी, गुजराती, तमिल, कन्नड़, असमिया, उड़िया, उर्दू, तेलुगु, मलयालम, पंजाबी, अंग्रेजी, नेपाली आदि भाषाएं शामिल हैं। गीता प्रेस ने श्रीमद्भागतगीता, रामचरित मानस, पुराण, उपनिषद जैसे कई बड़े धार्मिक ग्रंथों की पुस्तकों को प्रकाशित किया है।

 

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