ये है पहली भोजपुरी फिल्म, जिसे राष्ट्रपति ने भी देखा था

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भारत में कई भाषाओं में फिल्में बनती हैं, उनमें एक भोजपुरी भी है। खैर भोजपुरी को अभी तक भाषा का दर्ज नहीं मिला पाया है, लेकिन भोजपुरी बोलने वालों की तरफ से उसे भाषा का दर्जा दिलाने के लिए काफी प्रयास किया जा रहे हैं। जिसमें भोजपुरी फिल्में भी अपना योगदान दे रही हैं। आज हम पहली भोजपुरी फिल्म की बात करेंगे, जिसने पहली स्क्रीनिंग में ही तहलका मचा दिया था और जिसकी पहली स्क्रीनिंग सदाकत आश्रम में की गई थी और देश के प्रथम राष्ट्रपति ने इसे देखा था।

चौंक गए न ? जानते हैं कौन थी वो फिल्म? वो थी “गंगा मैया तोहे पियरी चढइबो।” इस फिल्म ने पहली भोजपुरी फिल्म का गौरव पाने के साथ ही धमाका मचा दिया था।

विधवा पुनर्विवाह पर आधारित

विधवा पुनर्विवाह पर आधारित यह फिल्म वर्ष1963 में प्रदर्शित की गई थी जिसका निर्देशन कुंदन कुमार ने किया था और कुमकुम, असीम कुमार और नजीर हुसैन ने मुख्य किरदार निभाया था। इसमें चित्रगुप्त ने संगीत दिया था और लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी ने इसके लिए गाना गाया था गीतकार शैलेंद्र ने अपने गीतों से इसे सजाया था।

नरगिस की मांका था आइडिया

बिहार की आंचलिक भाषा से फिल्म निर्माण की अवधारणा सबसे पहले अभिनेत्री नरगिस की मां जद्दनवाई ने की थी। वाराणसी की रहने वाली जद्दनवाई ने इस संदर्भ में वाराणसी के ही प्रख्यात हिन्दी फिल्मों के खलनायक कन्हैयालाल से सम्पर्क किया।कन्हैयालाल ने अपने मित्र और हिन्दी फिल्मों के चरित्र अभिनेता व लेखक नाजीर हुसैन को इसके लिए प्रेरित किया।

विमल राय भी नहीं हासिल कर सेक थे पटकथा

जद्दनवाई की बात मन में रखकर नाजीर हुसैन ने भोजपुरी में एक अच्छी पटकथा तैयार की। पटकथा इतनी सशक्त और दमदार बनी की अनेक हिन्दी फिल्मकारों ने इसे हिन्दी में भी फिल्माने की पेशकश की थी। लाख प्रलोभन देने के बावजूद नाजीर हुसैन से वह पटकथा प्रख्यात फिल्मकार विमल राय भी हासिल नहीं कर सके।

ये वही जद्दनवाई थीं, जो दरभंगा राज परिवार के संगीत परम्परा के दौरान दरभंगा में कई वर्षों तक रही थीं। उस समय बेबी फातिमा रसीद के नाम से जानी जानेवाली नरगिस मात्र दस वर्ष की थी।

आर्थिक मदद थी मुख्य समस्या

नजिर हुसैन के सामने फिल्म निर्माण के लिए आर्थिक मदद प्राप्त करना अहम समस्या थी। उस समय क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्म निर्माण को वित्तीय सहायता मुहैया करना जोखिम भरा काम था। फाइनान्सरों की तलाश में उन्होंने पटना, वाराणसी, कलकत्ता, लखनऊ, दिल्ली और मुम्बई तक का अनगिनत दौरा किया, लेकिन कोई भी उनकी प्रस्तावित फिल्म को फाइनेन्स करने के लिए तैयार नहीं हुआ।

संयोग सेएक दिन उनकी मुलाकात आरा के व्यवसायी विश्वनाथ प्रसाद शाहाबाद से हो गई जिनके पास अपना स्टूडियो और सिनेमा हॉल था। शाहाबाद के रूप में उन्हें फाइनेंसर मिल गया और फिल्म का मुहूर्त शॉट पटना के शहीद स्मारक में हुआ और फिल्म का निर्माण शुरू हो गया। फिल्म के ज्यादातर हिस्से बिहटा में फिल्माए गए थे। पटना के गोलघर और आरा के रेलवे स्टेशन में भी दृश्य फिल्माए गए।

एक साल में फिल्म बनकर तैयार

एक वर्षकी अवधि में नाजीर हुसैन की उस पटकथा पर निर्मल पिक्चर्स के बैनर तले भोजपुरी की पहली फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढइबो’ फिल्म बनकर तैयार हो गई।

वाराणसी टॉकीज में सबसे पहले प्रदर्शित हुई

अच्छे परिणाम से भी आगे निकलने वाली यह मात्र एक फिल्म भर नहीं थी, बल्कि भोजपुरी क्षेत्र की एक जबरदस्त पहचान बनी। फिल्म वर्ष1962 के फरवरी महीने में सबसे पहले वाराणसी के प्रकाश टाकीज में प्रदर्शित हुई ।

किया नौ लाख का व्यवसाय

अपने मधुर गीत-संगीत और सशक्त पटकथा पर आधारित कलाकारों के अभिनय की बदौलत पांच लाख की लागत से बनी, इस फिल्म ने नौ लाख का व्यवसाय कर प्रादेशिक भाषा की फिल्म के लिए कीर्तिमान स्थापित किया। वहीं हिन्दी फिल्म उद्योग को चुनौती भी दे डाली। फिल्म में भोजपुरी भाषी क्षेत्रों की कठिनाइयों और सामाजिक परिवेश को बड़ी मार्मिकता से उजागर किया गया था।

सड़कों पर बैलगाड़ियों की लगी कतार

यह फिल्म जब पटना के वीणा टॉकीज में 22 फरवरी 1963 को प्रदर्शित हुई तो सड़कों पर बैलगाड़ियों की लम्बी कतारें लग गई थी। टिकट नहीं मिलने पर लोग पटना में रात बिता कर दूसरे दिन फिल्म देख कर ही गांव लौटते थे। सपरिवार फिल्म देखना तब किसी उत्सव सा होता था।

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