सीबीआई और कोर्ट का डर लाया त्रिवेंद्र और उमेश को साथ?

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क्या बलूनी बने दोनों के खेवनहार…

राजनीति भी जो न कराए वही कम है! जिस प्रकार कभी उमेश कुमार को हथियार बनाकर त्रिवेंद्र सिंह रावत की टीम को अनेकों स्टिंग प्रकरणों से परेशान करके रख देने वाले बीजेपी के मीडिया किंग अनिल बलूनी आज त्रिवेंद्र रावत और उमेश कुमार के बीच राजनीतिक सुलह करवाकर उत्तराखंड में इन दोनों के बीच जारी खूनी जंग को रोकने हेतु बीच बचाव के लिए आगे आए हैं, वह उत्तराखंड की राजनीति को अंदर से समझने वालों के लिए एक सुखद अनुभूति का क्षण है, क्योंकि उत्तराखंड की राजनीति का ये आलम है कि अपने राजनीतिक दुश्मनों को छोड़िए यहां के नेता अपने राजनीतिक दोस्तों को भी शक की निगाहों से देखते हैं।

ये काम कर जहां अनिल बलूनी एक ओर उत्तराखंड की राजनीति में जारी कड़वाहट को रोकने का काम कर रहे हैं, वही दूसरी ओर राजनैतिक पंडितों का मानना है कि इस सबकी असल वजहें कुछ और ही हैं।

 

इस सब घालमेल के दो मुख्य कारण बताए जा रहे हैं…

पहला कारण है त्रिवेंद्र सिंह कैंप का सीबीआई जांच और उमेश द्वारा दायर कोर्ट केसों से उपजा डर और दूसरा कारण शायद यह है कि अब बलूनी को ये लगने लगा है कि त्रिवेंद्र सिंह अब उनके लिए कोई बड़ा राजनैतिक खतरा नहीं हैं ,क्योंकि वर्तमान में त्रिवेंद्र को उत्तराखंड की जनता के साथ साथ भाजपा संगठन भी फुका हुआ कारतूस मान चुका है।

बलूनी कैंप का अब मानना है कि जिस प्रकार उमेश कुमार उसके लिए एक मिसाइल का काम करते रहें हैं ,उसी प्रकार त्रिवेंद्र भी अब उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता फैलाने में कारगर साबित हो सकते हैं…

 

वजह कुछ भी हो पर ये मानना पड़ेगा कि बलूनी कैंप ने त्रिवेंद्र और उमेश दोनों को जहां एक ओर अपना शार्प शूटर बनाकर रख दिया है वहीं दोनों का कद एक बराबर कर दोस्ती की आड़ में त्रिवेंद्र सिंह से अपना पुराना हिसाब भी चुकता कर दिया है!!

इसे ही शायद राजनीति में धोबी पछाड़ कहा जाता है। इन सबके बीच राजनीतिक पंडितों का ये भी मानना है कि बलूनी का असली मकसद शायद कुछ और है!

अब मकसद चाहे कुछ भी हो पर इस पैंतरेबाजी से अनजाने में ही सबका भला करने की शायद उन्होंने ठान ली है।

 

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