ये सिस्टम है साहब, मौत के बाद भी …

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सरकारें हैं कि विकास का दम भरते नहीं थकती है और आम जनता है कि पस्त है। विकास के नाम पर करोड़ों के बजट और योजनाए चलाई जाती है जबकि इसकी सच्चाई ढाक के तीन पात है। करोड़ों रुपये की एंबुलेंस और गरीबों के नाम पर सुवाधाएं भी है पर ये सुविधाएं लोगो तक तो पहुंच नहीं पाती इनके अभाव में लोग दम तोड़ देते है।

क्या इस धरती पर गरीब होना इतना बड़ा पाप है

जिले में इंसानियत को शर्मसार करने वाली एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जो आपकी रुह को झझकोर कर रख देगी। आपको ये सोचने पर मजबूर कर देगी कि आखिर किस काम की है सिस्टम की ये दिखावटी चकाचौंध। क्या इस धरती पर गरीब होना इतना बड़ा पाप है कि उसे इसकी कीमत मरने के बाद भी चुकानी पड़ेगी। सरकारों का ये कैसा विकास है जहां एक तरफ तो अमीर लोगों की शव यात्रा निकालने के लिए लोग लाखों करोड़ों रूपए पानी की तरह बहा देते हैं और वहीं दूसरी तरफ एक लाचार परिवार अपने पिता के शव को कई किलोमीटर तक ठेलिया में ढोने को मजबूर है।

…ले जाकर अंतिम संस्कार कर सके

हम आपको एक ऐसी ही तस्वीर दिखाने जा रहे हैं जो सरकारों के विकास के दावों के चीथड़े उड़ाने के लिए काफी हैं। मामला त्रिवेदीगंज सीएचसी का है। जहां गरीबी और मुफलिसी की मार झेल रहे 50 साल के मंशाराम को मरने के बाद भी उसकी कीमत चुकानी पड़ी। मंशाराम का परिवार जो इस उम्मीद में था कि उसे सरकार की किसी न किसी योजना का तो लाभ मिलेगा ही जिससे वह कम से कम अपने पिता के मरने के बाद उसका शव वहां से ले जाकर अंतिम संस्कार कर सके।

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मगर अफसोस कि उसकी सारी उम्मीदों पर उस समय पानी फिर गया जब उसे अपने पिता के शव को ले जाने के लिए एक गाड़ी तक नसीब नहीं हुई। परिवार के घंटों इस इंतजार में बीत गए कि शायद किसी को उनकी इस हालत पर तरस आ जाए और उनके पिता के शव को ले जाने के लिए कोई इंतजाम कर दे। लेकिन जब मदद के लिए किसी तरफ से कोई हाथ नहीं उठा तो मजबूरी में मृतक मंशाराम का शव उसके दिव्यांग लड़के राजकुमार और मासूम लड़की को ठेलिया से आठ किलोमीटर घसीट कर लोनी कटरा तक ले जाना पड़ा। दरअसल सोमवार को बीमार मंशाराम का लड़का और लड़की उसे इलाज के लिए ठेलिया पर लादकर ही सीएचसी त्रिवेदीगंज लेकर पहुंचे थे। जहां उसकी मौत हो गई थी। सीएचसी के डॉक्टर बस इतना कहते रहे कि गांव के प्रधान को जानकारी दी गई है।

बेहुदा और गैरजिम्मेदाराना रवैया दिखाया

वह मदद करेंगे लेकिन कोई नहीं आया। स्वास्थ्य विभाग की संवदेनहीनता का आलम ये है कि कोई सरकारी और आर्थिक मदद न होने के चलते अभी तक मंशाराम के शव का अंतिम संस्कार भी नहीं हो सका है। सीएचसी के डॉक्टरों से जब इस बारे में बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने पूरे मामले से पल्ला झाड़ते हुए बहुत ही बेहुदा और गैरजिम्मेदाराना रवैया दिखाया। सीएचसी के डॉक्टर ये कहकर अपनी जान छुड़ाते रहे कि यहां से शव को वापस गांव भिजवाने की कोई व्यवस्था नहीं है।

वहीं इस पूरे मामले पर जब मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर रमेश चंद्र से बात की गई तो उन्होंने कहा कि मृतक मंशाराम लंबे समय से काफी बीमार था। उसके या उसके परिवार की तरफ से कोई जानकारी न देने की वजह से उसे लेने 108 एम्बुलेंस उसके घर नहीं पहुंच सकी। अगर कोई जानकारी देता तो उसे जरूर एम्बुलेंस से सीएचसी पहुंचाया जाता।

जीते जी मंशाराम को जोंक की तरह चुसती रहीं और जाते जाते भी…

वहीं शव को ले जाने के सवाल पर डॉक्टर रमेश चंद्र ने बताया कि जिला अस्पताल में केवल दो शव वाहन उपलब्ध हैं। सीएचसी में शव को ले जाने के लिए शव वाहन की कोई व्यवस्था नहीं होती। लेकिन अगर सीएचसी इंचार्ज वहां मौजूद होते तो जरूर मृतक मंशाराम के शव को अपने निजी खर्च पर घर उसके घर भिजवाते। ये गरीबी है साहब कभी जो न कराये वो थोड़ा है। जीते जी मंशाराम को जोंक की तरह चुसती रहीं और जाते जाते भी…

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