मंदिर में छोटे कपड़ों में महिलाओं की एंट्री बंद : इन राज्यों महिलाएं नहीं पहन सकती जींस, व्यर्थ गया नांगेली का संघर्ष

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आजाद देश के इन कोनों में आज भी महिलाएं आजाद नहीं। उत्तर भारत के इन गांव-शहरों में महिलाओं को जींस पहनने की अनुमति नही है। घरों से बाहर महिलाएं मोबाइल फोन साथ लेकर नहीं जा सकतीं।

भारत देश में आज भी महिलाएं पसंद के कपड़े पहनने के लिए संघर्ष कर रही हैं। महिलाओं का ये संघर्ष आज या कल का नही है बल्कि सदियों पुराना है। मगर, समय बढ़ने के साथ ये संघर्ष ज्यों का त्यों ही रहा। घरों से निकलकर बाजार तक महिलाएं अपने पहनावे के लिए हमेशा टारगेट की जाती हैं। इस बीच अब मंदिरों में महिलाओं के कपड़े और पहनावे पर सवाल खड़े हो गए हैं। अब मंदिरों में महिलाएं अपने पसंद के परिधान पहनकर नहीं जा सकती हैं, बल्कि उन्हें मंदिर के नियमों के अनुसार कपड़े पहनने होंगे। महिलाएं मंदिर में फटी-कटी जींस और छोटे कपड़ों में प्रवेश नहीं कर सकती हैं।

ये बात यहीं पर खत्म नहीं होती है। मंदिर में महंत की ओर से नोटिस जारी की गई है कि यदि कोई महिला मंदिर में छोटे या कटे-फटे कपड़े पहने पाई जाती है तो उसपर सजा के तौर पर जुर्माना लगाया जाएगा।

महिलाओं को जींस पहनने पर पाबंदी

 

इसके साथ ही देश में कई ऐसे राज्य हैं, जहां महिलाएं घरों से बाहर अपने पसंद के कपड़े पहनकर नहीं निकल सकती हैं। ये बात सुनकर आप हैरत में पड़ गए होंगे कि भारत देश जो आधुनिकता की सीढ़ी चढ़ रहा है, वहां ऐसे प्रदेश भी हैं। जी हां, ऐसी कई जगहों पर महिलाओं को उनकी पसंद के कपड़े पहनने की इजाजत नही है। यहां महिलाएं आज भी जींस पहनकर नहीं घूम सकती हैं। साथ ही कई जगहों पर महिलाओं को मोबाइल फोन भी साथ रखने की अनुमति नही दी जाती है।

ये हैं भारत के वो प्रदेश, जहां महिलाएं आजाद नहीं…

हरियाणा का आदर्श कन्या महाविद्यालय, यहां पर माना जाता है कि छोटे कपड़े पहनने से छेड़खानी के मामले सामने आने लगते हैं। इसलिए लड़कियों को पूरा तन ढंकना जरूरी है। किसी ने इस नियम को तोड़ा, तो उसे 100 रुपए का जुर्माना भी देना पड़ेगा।

चेन्नई के श्री साईंराम कॉलेज में लड़कियां जींस-टॉप और एयरटाइट पैंट नहीं पहन सकतीं। ना ही अपने बाल खुले रख सकती हैं। यहां लड़कियों को क्या पहनना है, इसके नियम बनाए गए हैं।

तिरुवल्लुवर के इंजीनियरिंग कॉलेज में भी छात्राओं को पहनावे से संबंधित नियमों का पालन करना पड़ता है। सिर्फ छात्राओं को नहीं, बल्कि फीमेल लेक्चरर को भी इन नियमों का पालन करना पड़ता है।

राजस्थान के बाड़मेर में भी सिर्फ जींस ही नहीं, बल्कि लड़कियों को फोन पर बात करने पर भी पाबंदी है। पंचायत कहती है, यह फरमान लड़कियों की सुरक्षा के लिहाज से बनाया था।

कश्मीर और श्रीनगर में स्थानीय महिलाओं के साथ-साथ महिला पर्यटकों को भी साधारण कपड़े पहनने के लिए नियम हैं।

हरियाणा के महिला और बाल विभाग में फील्ड में काम करते समय महिलाओं को सादगीपूर्ण कपड़े पहनने का आदेश दिया गया। जींस को कथित तौर पर सभ्य नहीं माना जाता इसलिए इसे पहनने पर पाबंदी है।

मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के मंदिरों में जींस और छोटे कपड़े पहनने पर पाबंदी लगाई थी।

परिधान को लेकर अपमानित हो रहीं महिलाएं

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कानून देता है महिलाओं को अधिकार

देश में महिलाएं अपने परिधान को लेकर समय-समय पर बेज्जत होती रही हैं। कहने को तो देश में महिलाओं को आजादी से जीवन जीने का अधिकार दिया गया है। यहां तक कि कानून भी महिलाओं के हक की बात करता है। अगर कोई भी किसी महिला के अधिकारों को जबरदस्ती छीनने की कोशिश करता है या गलत तरह से रोकता है, तो उसके लिए सजा का प्रावधान है। मगर, इसके बाद भी महिलाओं के अधिकारों का हनन करते हुए कई जगहों पर उनके परिधानों पर प्रहार किया जा रहा है।

मंदिर में छोटी ड्रैस नहीं पहन सकती महिलाएं

इसी बीच अब कई मंदिरों में भी महिलाओं के परिधानों के लिए नियम तय कर दिए गए हैं। यानी अब महिलाएं इन मंदिरों में भी अपने पसंद के कपड़े नहीं पहन सकती हैं। जैसे महिलाएं मंदिर में छोटे कपड़े व कटी-फटी जींस पहनकर प्रवेश नहीं कर पाएंगी। मंगलवार को मुजफ्फरनगर के बालाजी मंदिर के बाहर एक पोस्टर लगाया गया। उसमें लिखा था, “महिलाएं या युवतियां परिसर में जींस, मिनी स्कर्ट और कटे-फटे कपड़े पहनकर नहीं आ सकती हैं।”

कहीं हिजाब पर वार तो कहीं खींच लिए कपड़ें

जबकि ठीक इसके विपरीत 5 दिन पहले मेरठ में एक घटना घटी। जहां कुछ लड़कों ने हिजाब पहने हुए लड़कियों से बदसलूकी की थी। लड़कों ने लड़कियों को कहा, ‘हिंदू लड़के के साथ घूम रही हो, शर्म नहीं आती’ ऐसा चिल्लाते हुए उन  लड़कों ने 3 लड़कियों के साथ बद्तमीजी की और उनका हिजाब खींचने की कोशिश की। ऐसे ही मामले सहारनपुर, बुलंदशहर और अलीगढ़ में भी सामने आए, जहां महिलाओं को अपने पहनावे की वजह से बेइज्जत होना पड़ा। इसी तरह की एक और घटना आई थी कि बीच बाजार कुछ लड़कियों के कपड़े खींचे गए थे। बीते 10 दिनों में महिलाओं के पहनावे को लेकर उनके साथ अभद्रता के 9 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं।

19वीं सदी से महिलाएं कर रहीं संघर्ष

भारत में ऐसा पहली बार नहीं है। बात चाहे हिजाब पहनने की हो, तन ढकने की हो या जींस पहनने की, महिलाओं को अपने पहनावे को लेकर भेदभाव का सामना करना पड़ा है। 19वीं सदी में तो दलित महिलाओं की छाती पर कपड़ा या ब्लाउज दिखते ही चाकू से खींचकर फाड़ दिया जाता था।

ब्रेस्ट के साइज के हिसाब से टैक्स भरना पड़ता था

1729, मद्रास प्रेसीडेंसी में त्रावणकोर साम्राज्य की स्थापना हुई। राजा थे मार्थंड वर्मा। साम्राज्य बना, तो नियम-कानून बने। टैक्स लेने का सिस्टम बनाया गया। जैसे आज हाउस टैक्स, सेल टैक्स और जीएसटी, लेकिन एक टैक्स और बनाया गया। ब्रेस्ट टैक्स मतलब ‘स्तन कर’। ये टैक्स दलित और कुछ ओबीसी वर्ग की महिलाओं पर लगाया गया।

महिलाएं सिर्फ कमर तक पहन सकती थी कपड़े

त्रावणकोर में निचली जाति की महिलाएं सिर्फ कमर तक कपड़ा पहन सकती थीं। अफसरों और ऊंची जाति के लोगों के सामने वे जब भी गुजरती, उन्हें अपनी छाती खुली रखनी पड़ती। अगर महिलाएं छाती ढकना चाहें, तो उन्हें इसके बदले ब्रेस्ट टैक्स देना होगा। इसमें भी दो नियम थे। जिसका ब्रेस्ट छोटा, उसे कम टैक्स और जिसका बड़ा उसे ज्यादा टैक्स। टैक्स का नाम रखा था मूलाकरम।

स्तन ढकने पर चाकू से फाड़ दिए जाते थे कपड़े

नादर वर्ग की महिलाओं ने कपड़े से सीना ढका, तो सूचना राजपुरोहित तक पहुंच जाती। पुरोहित एक लंबी लाठी लेकर चलता था, जिसके सिरे पर एक चाकू बंधी होती थी। वह उसी से ब्लाउज खींचकर फाड़ देता था। उस कपड़े को वह पेड़ों पर टांग देता था। यह संदेश देने का एक तरीका था कि आगे कोई ऐसी हिम्मत न कर सके। रियासत के महाराज जब कभी रास्तों से गुजरते, तो सारी कुंवारी लड़कियां आधे कपड़े उतार कर फूल बरसाती थीं।

मिशनरी से प्रभावित होकर महिलाओं ने किया विरोध

धीरे-धीरे वक्त बीता। 1820 में ईसाई मिशनरियों का प्रभाव भारतीय महिलाओं पर पड़ने लगा। इसके बाद महिलाओं ने ब्लाउज से अपना तन ढंकना शुरू कर दिया। लेकिन जैसे ही ये बाद लोगों के बीच पहुंची, मर्दों ने औरतों पर हमले करके उनके कपड़े फाड़ने शुरू कर दिए। मामला इतना बढ़ गया कि अदालत में भी पोशाक परिवर्तन की इस मुहिम के खिलाफ अर्जियां डाली गईं। ये अर्जियां इसलिए भी डाली गईं, क्योंकि प्रभावशाली जातियों के लोग महिलाओं के फ्री में शरीर ढकने के खिलाफ थे। 1829 आया, उस वक्त तो त्रावणकोर की सरकार ने भी ये घोषणा करवाई कि शनार जाति की औरतें अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को ढकने से बचें। लेकिन इसके बावजूद महिलाओं ने इस बात का विरोध किया और अपने पूरे शरीर को ढंकना जारी रखा।

नांगेली ने लड़ी महिलाओं के हक की लड़ाई

1859 में एक दिन बाजार में महिलाएं ब्लाउज पहने नजर आईं तो ऊंची जाति के लोगों ने उनपर हमले किए और वहीं उनके कपड़े उतार दिए गए। इस वाकए के बाद दंगे भड़कने लगे, घर लूटे गए, चर्चों को जलाया जाने लगा। इसी बीच नांगेली नाम की एक महिला से ब्रेस्ट टैक्स मांगा गया। उसने कहा कि कपड़े भी पहनूंगी और टैक्स भी नहीं दूंगी।

नांगेली ने अफसर को काट कर दे दिया ब्रेस्ट

बात राजा तक पहुंच गई। राजा के आदेश पर टैक्स लेने अफसर नांगेली के घर पहुंच गए। पूरा गांव इकट्ठा हो गया। अफसर बोले, “ब्रेस्ट टैक्स दो, किसी तरह की माफी नहीं मिलेगी।” नांगेली बोली, ”रुकिए मैं लाती हूं टैक्स।” नांगेली अपनी झोपड़ी में गई। बाहर आई, तो लोग दंग रह गए। अफसरों की आंखें फटी की फटी रह गईं। नांगेली केले के पत्ते पर अपना कटा स्तन लेकर खड़ी थी। अफसर भाग गए। लगातार ब्लीडिंग से नांगेली जमीन पर गिर पड़ी, उसकी मौत हो गई।

विद्रोह के बाद महिलाओं को मिली तन ढकने की आजादी

नांगेली की मौत के बाद उसके पति चिरकंडुन ने भी चिता में कूदकर अपनी जान दे दी। भारतीय इतिहास में किसी पुरुष के ‘सती’ होने की यह एकमात्र घटना है। इस घटना के बाद विद्रोह हो गया। हिंसा शुरू हो गई। आखिर में सरकार ने एक और फैसला लिया। उसने घोषणा की कि अब महिलाओं को जैकेट या किसी भी कपड़े से अपनी मर्जी से स्तन ढकने की इजाजत है। लेकिन वो ठीक उसी तरह अपना शरीर नहीं ढक सकतीं, जैसे ऊंची जाति की महिलाएं ढकती हैं।

आजादी के बाद भी महिलाओं का संघर्ष जारी

पर इसके बाद भी ये मामला पूरी तरह शांत नहीं हुआ था। अंग्रेजी दीवान जर्मनी दास ने अपनी किताब ‘महारानी’ में इस कुप्रथा का जिक्र करते हुए लिखा, “संघर्ष लंबा चला। 1965 में प्रजा जीत गई और सभी को पूरे कपड़े पहनने का अधिकार मिल गया। इस अधिकार के बावजूद कई हिस्सों में दलितों को कपड़े न पहनने देने की कुप्रथा चलती रहीं। 1924 में यह कलंक पूरी तरफ से खत्म हो गया, क्योंकि उस वक्त पूरा देश आजादी की लड़ाई में कूद पड़ा था।”

वहीं, आज मंदिरों में महिलाओं के कपड़ों पर टिप्पणी होने के बाद यह मामला फिर अस्तित्व में आ गया है। क्या वाकई नांगेली का संघर्ष व्यर्थ हो गया। नांगेली ने महिलाओं को उनके पसंद के परिधान पहनने के लिए जो कुर्बानी दी थी, आज धूल बराबर हो गई है ?

 

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