नोटबंदी का असर:सरकार ने माना जीडीपी विकास दर कम रहेगी

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सरकार ने भी अब मान लिया है कि जीडीपी विकास दर 6.75-7.5 फीसदी तक रहेगी। इसका आशय यह है कि नोटबंदी का असर अब भी बेहद असरकारक है।

सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण-दो में शुक्रवार को यह जानकारी दी गई। वित्त मंत्रालय द्वारा सदन पटल पर रखे गए आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 भाग दो में कहा गया है, “अर्थव्यवस्था ने अभी तक अपनी गति हासिल नहीं की है और इसमें अभी काफी संभावनाएं हैं।”

ज्ञात हो कि भारत की विकास दर में पिछले वित्तीय वर्ष में भी करीब एक प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। केंद्रीय सांख्यिकी विभाग द्वारा विगत दिनों जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में पिछले साल के 8 प्रतिशत के मुकाबले इस साल वृद्धि दर 7.1 प्रतिशत रही।

वित्तीय वर्ष 2016-17 की चौथी तिमाही में जनवरी से मार्च के बीच भी, पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले विकास दर गिर कर 6.1 प्रतिशत पर आ गई।अर्थव्यवस्था में गिरावट का सबसे बड़ा कारण पिछले साल के अंत में भारत सरकार द्वारा की गई नोटबंदी रही है।

अर्थशास्त्रियों का अनुमान था कि नोटबंदी की वजह से जीडीपी में कमी आएगी, लेकिन किसी ने इतनी अधिक गिरावट के बारे में नहीं सोचा था।पिछले वित्तीय वर्ष के पहले तिमाही के 7 प्रतिशत के मुकाबले चौथी तिमाही में विकास दर 6.1 प्रतिशत दर्ज की गई।

मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविन्द सुब्रह्मण्यम द्वारा लिखित इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि कृषि राजस्व और गैर-खाद्यान्न कीमतों, कृषि ऋण छूट, राजकोषीय समेकन और बिजली व दूरसंचार क्षेत्रों की लाभप्रदता में आई कमी जैसे कारकों के कारण अपस्फीति की प्रवृत्ति पैदा हुई है।

सर्वेक्षण में कहा गया है, “इनमें संकटग्रस्त कृषि राजस्व, गैर-खाद्यान्न कीमतों में गिरावट, कृषि ऋण छूट, राजकोषीय समेकन और बिजली व दूरसंचार क्षेत्रों की लाभप्रदता में आई कमी जैसे कारकों के कारण दोहरी-बैलेंस शीट (टीबीएस) समस्या को और बढ़ा रही है।”

नवंबर में की गई नोटबंदी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में ठहराव आ गया और इस साल मार्च में खत्म हुई चौथी तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में तेज गिरावट दर्ज की गई और यह सात फीसदी से घटकर 6.1 फीसदी पर आ गया, जबकि समूचे वित्त वर्ष 2016-17 में भी तदनुसार गिरावट दर्ज की गई।

नोटबंदी के कारण प्रचलन में जारी नोट में भी बड़ी गिरावट दर्ज की गई। सर्वेक्षण में कहा गया है कि 31 मार्च को खत्म हुए पिछले वित्त वर्ष में प्रचलन में जारी नोट में 19.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जबकि रिजर्व नकदी में 12.9 फीसदी की गिरावट रही।सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि बैंकों से ऋण उठाव में भी लगातार गिरावट दर्ज की गई।

सर्वेक्षण में विकास दर धीमा पड़ने तथा अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में ऋणग्रस्तता में तेजी को लेकर चिंता व्यक्त की गई है, जिससे बैंकों की संपत्तियों की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है।

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