इस राज्य में 75 दिनों तक मनाया जाता है दशहरे का उत्सव, जानें क्या 600 साल पुराना इतिहास
हालही देश भर में विजदशमी या दशहरे का पर्व मनाया गया है, शारदीय नवरात्र के शुरूआत के साथ शुरू हुई रामलीला रावण दहन के साथ खत्म हुई. इसके साथ ही खत्म हुआ दशहरे का यह उत्सव, लेकिन क्या आपको पता है कि, एक राज्य ऐसा भी है जहां सबसे लंबा दशहरे का पर्व मनाया जाता है। आपको बता दें कि, इस राज्य में पूरी 75 दिनों तक दशहरे का उत्सव मनाया जाता है और यहां रावण का वध नहीं किया जाता बल्कि माता की पूजा होती है और रथ यात्रा निकाली जाती है। ऐसे में सवाल उठता है आखिर कौन सा है वो राज्य और क्या है इतने लंबे समय तक दशहरा मनाने के पीछे का इतिहास. आइए जाते है 75 दिनों के दशहरे की पूरी कहानी…..
…तो यहां मनाया जाता है अनोखा दशहरा
75दिनों तक मनाया जाने वाला यह अनोखे दशहरे का पर्व भारत के राज्य छत्तीसगढ के जिला बस्तर में मनाया जाता है और यह अनोखा दशहरा देश ही नहीं विदेशों तक काफी मशहूर है. इसके साथ ही इस अनोखे दशहरे का लुफ्त उठाने देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी सैलानी पहुंचते है।बस्तर के दशहरे में राम-रावण युद्ध नहीं, बल्कि बस्तर की दंतेश्वरी माता के प्रति अपार श्रद्धा दिखाई देती है। इसके साथ ही रावण का वध न करके माता की पूजा कर रथ यात्रा निकाली जाती है। इसके साथ ही हर साल 75 दिनों तक चलने वाला दशहरा इस साल 109 दिनों तक चलने वाला है।
ऐसे मनाते है अनोखे दशहरा
श्रावण की हरियाली अमावस्या बस्तर में दशहरे की शुरुआत है। इस दिन रथ बनाने के लिए पहली लकड़ी जंगल से लाया जाता है। इस पूजा को पाट जात्रा कहते हैं। दशहरा के बाद, मुरिया दरबार की रस्म होती है। इस रस्म में बस्तर के महाराज दरबार लगाकर लोगों की परेशानियों को सुनते हैं। देश में यह त्योहार सबसे ज्यादा दिनों तक मनाया जाता है।
इस वजह से नहीं होता विजयादशमी को रावण दहन
दशहरे की सुंदरता सबको आकर्षित करती है। विजयादशमी, असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है, इसलिए दशहरे को पूरे देश में मनाया जाता है। लेकिन बस्तर दशहरा सिर्फ देश का नहीं, बल्कि पूरे विश्व का एक अनूठा उत्सव है, जो असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है। लेकिन बस्तर दशहरा में रावण की पूजा नहीं की जाती बस्तर की देवी को पूजा जाती है।
क्या है अनोखे दशहरे का इतिहास
बस्तर दशहरे का इतिहास भगवान राम से जुड़ा है। दशहरे को बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व मानते हैं। लंका के राजा रावण को भगवान राम ने इसी दिन मार डाला था, लेकिन बस्तर के दशहरे का संबंध महिषासुर का वध करने वाली मां दुर्गा से है। पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि, अश्विन शुक्ल की दशमी तिथि को मां दुर्गा ने महिषासुर को मार डाला था। यह त्योहार हरेली अमावस्या से शुरू होकर सत्तर दिनों तक चलता है। इसमें बस्तर के अलग-अलग जिलों से आने वाले देवताओं को भी निमंत्रण भेजा जाता है।
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दशहरे पर क्यों निकलती है रथयात्रा
सालों पहले बस्तर के विश्व प्रसिद्ध मंदिर से दशहरे के अवसर पर चालुक्य वंश के चौथे राजा पुरुषोत्तम देव ने र रथ यात्रा की शुरुआत की थी। इससे रथ यात्रा से खुश होकर जगन्नाथपुरी के राजा ने ‘लुहरी रथपति’ की उपाधि देते हुए 16 पहियों का एक रथ भेंट किया था। लेकिन बस्कर सड़के उस रथ को चलाने के लायक नहीं थी, इसलिए राजा पुरूषोत्तम ने उस रथ का विभाजन कराकर चार पहियों का रथ भगवान जगन्नाथ को भेंट कर दिया । इसी से बाद में विजय रथ और फूल रथ बनवाया गया, जिसे आज भी चलाया जाता है। विजय रथ में आठ और फूल रथ में चार पहिए हैं।