जानें उस महिला वैज्ञानिक के बारे में जिसने सबसे पहले कोरोना वायरस को खोजा!

इस खोज के बाद ही सूर्य के कोरोना के नाम पर वायरस का नाम रखा गया कोरोना

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बर्लिन : गरीबी में पली बढ़ी एक महिला वैज्ञानिक Dr. June Almeida ने सबसे पहले कोरोना वायरस को खोजा और आज उनके मरने के 13 साल बाद दुनिया भर के वैज्ञानिक उनकी खोज पर आगे अनुसंधान कर रहे हैं। उन्होंने सबसे पहले पता लगाया कि इंसानों में कोरोना वायरस कैसे असर करता है। वह एक जर्मन मूल की वैज्ञानिक थीं। उन्होंने ही सूर्य के कोरोना की तरह इस नये वायरस में भी प्रोटीन का कोरोना देखा और नाम रखा कोरोना। आज वैज्ञानिक उनकी इस खोज को आगे के अनुसंधान में सहायक मान रहे हैं। आज यह महिला वैज्ञानिक हमारे बीच नहीं हैं पर उनके काम को सराहा जा रहा है।

आइए जानते हैं इस महिला वैज्ञानिक की कहानी।

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दुनिया में 1.65 लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं

कोरोना वायरस से पूरी दुनिया में अब तक 1.65 लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। 24 लाख से अधिक लोग बीमार हैं। कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि यह चमगादड़ों से इंसानों में आया। जबकि, कुछ लोग कह रहे हैं कि इसे प्रयोगशाला में बनाया गया है।

बात है 1964 की यानी आज से 56 साल पहले की। एक महिला वैज्ञानिक अपने इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप में कुछ देख रही थी। तभी उन्हें एक वायरस दिखा जो आकार में गोल था और उसके चारों तरफ कांटे निकले हुए थे। जैसे सूर्य का कोरोना। इसके बाद इस वायरस का नाम रखा गया कोरोना वायरस। इसे खोजने वाली महिला का नाम है Dr. June Almeida।

जिस समय खोज की उनकी उम्र 34 साल थी

Dr. June Almeida ने जिस समय कोरोना वायरस की खोज की थी, तब उनकी उम्र 34 साल की थी। 1930 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर के उत्तर-पूर्व में स्थित एक बस्ती में रहने वाले बेहद साधारण परिवार में जून का जन्म हुआ। Dr. June Almeida के पिता बस ड्राइवर थे। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से Dr. June Almeida को 16 साल की उम्र में स्कूल छोड़ना पड़ा था।

16 साल की उम्र में ही उन्हें ग्लासगो रॉयल इन्फर्मरी में लैब टेक्नीशियन की नौकरी मिल गई। धीरे-धीरे काम में मन लगने लगा। फिर इसी को अपना करियर बना लिया। कुछ महीनों के बाद ज्यादा पैसे कमाने के लिए वे लंदन गईं और सेंट बार्थोलोमियूज हॉस्पिटल में बतौर लैब टेक्नीशियन काम करने लगीं।

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1954 में वेनेजुएला के कलाकार एनरीक अल्मीडा से शादी की

वर्ष 1954 में उन्होंने वेनेजुएला के कलाकार एनरीक अल्मीडा से शादी कर ली। इसके बाद दोनों कनाडा चले गए। इसके बाद टोरंटो शहर के ओंटारियो कैंसर इंस्टीट्यूट में Dr. June Almeida को लैब टेक्नीशियन से ऊपर का पद मिला। उन्हें इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी टेक्नीशियन बनाया गया। ब्रिटेन में उनके काम की अहमियत को समझा गया। 1964 में लंदन के सेंट थॉमस मेडिकल स्कूल ने उन्हें नौकरी का ऑफर दिया।

सर्दी-जुकाम पर शोध करते समय कोरोना को खोजा

लंदन आने के बाद Dr. June Almeida ने डॉ. डेविड टायरेल के साथ रिसर्च करना शुरू किया। उन दिनों यूके के विल्टशायर इलाके के सेलिस्बरी क्षेत्र में डॉ. टायरेल और उनकी टीम सामान्य सर्दी-जुकाम पर शोध कर रही थी। डॉ. टायरेल ने बी-814 नाम के फ्लू जैसे वायरस के सैंपल सर्दी-जुकाम से पीड़ित लोगों से जमा किए थे। लेकिन प्रयोगशाला में उसे कल्टीवेट करने में काफी दिक्कत आ रही थी।

परेशान डॉ. टायरेल ने ये सैंपल जांचने के लिए जून अल्मीडा के पास भेजे। Dr. June Almeida ने वायरस की इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप से तस्वीर निकाली। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी बताया कि हमें दो एक जैसे वायरस मिले हैं। पहला मुर्गे के ब्रोकांइटिस में और दूसरा चूहे के लिवर में। उन्होंने एक शोधपत्र भी लिखा, लेकिन वह रिजेक्ट हो गया। अन्य वैज्ञानिकों ने कहा कि तस्वीरें बेहद धुंधली हैं।

सूर्य के कोरोना की तरह कंटीला और गोल वायरस

लेकिन, Dr. June Almeida और डॉ. टायरेल को पता था कि वो एक प्रजाति के वायरस के साथ काम कर रहे हैं। फिर इसी दौरान एक दिन अल्मीडा ने कोरोना वायरस को खोजा। सूर्य के कोरोना की तरह कंटीला और गोल। उस दिन इस वायरस का नाम रखा गया कोरोना वायरस। ये बात थी साल 1964 की। उस समय कहा गया था कि ये वायरस इनफ्लूएंजा की तरह दिखता तो है, पर ये वो नहीं, बल्कि उससे कुछ अलग है।

1985 तक Dr. June Almeida बेहद सक्रिय रहीं

1985 तक डॉ. जून अल्मीडा बेहद सक्रिय रहीं। दुनियाभर के वैज्ञानिकों की मदद करती रहीं। एंटीक्स पर काम करने लगीं। इसी बीच उन्होंने दूसरी बार एक रिटायर्ड वायरोलॉजिस्ट फिलिप गार्डनर से शादी की। डॉ. जून अल्मीडा का निधन 2007 में 77 साल की उम्र में हुआ। लेकिन उससे पहले वो सेंट थॉमस में बतौर सलाहकार वैज्ञानिक काम करती रहीं। उन्होंने ही एड्स जैसी भयावह बीमारी करने वाले एचआईवी वायरस की पहली हाई-क्वालिटी इमेज बनाने में मदद की थी। अब उनकी मृत्यु के 13 साल बाद दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस संक्रमण को समझने में उनकी रिसर्च की मदद मिल रही है।

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