इस मंदिर के चमत्कार से भरता है किसान का खजाना? जानिए इतिहास
उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में मुख्यालय से तकरीबन 14 किलोमीटर की दुरी पर तिर्वा क्षेत्र में स्थित सिद्ध पीठ मां अन्यापूर्णा का एक विश्व प्रसिद्ध मंदिर बना हुआ है. यह आने वाले श्रद्धालुओ का मानना है कि इस जगह की मिट्टी में चमत्कार है अगर सच्चे मन से यहां की मिट्टी ले जाकर डालने आपके खेतों की उपजाऊ क्षमता बढ़ जाती है. क्योंकि माता अन्नपूर्णा को अन्न की देवी कहा गया है हर साल आषाढ़ी पूर्णिमा को यहां पर भव्य मेले का आयोजन होता है. देश के कोने कोने से श्रद्धालु माता अन्नपूर्णा के दर्शन करने आते हैं और मंदिर परिसर की मिट्टी प्रसाद स्वरूप अपने घर ले जाते हैं.
राजा प्रीतम सिंह ने करवाया था निर्माण…
यह मंदिर 16वीं शताब्दी में राजा प्रीतम सिंह ने बनवाया था. उस समय सिर्फ राज परिवार ही इसमें पूजा-पाठ किया करता था. राजा प्रीतम सिंह को एक देवी स्वरूप कन्या ने सपने में दर्शन दिए और कहा कि इस जगह पर खुदाई करने पर उन्हें कुछ प्राप्त होगा. जिसके बाद राजा प्रीतम सिंह ने यहां खुदाई कराई और उनको यहां पर एक देवी की प्रतिमा मिली जिसके बाद राजा प्रीतम सिंह ने यहां पर मंदिर का निर्माण कराया था.
क्या है मंदिर का इतिहास…
करीब 16 शताब्दी में कन्नौज तिर्वा के तत्कालीन राजा प्रीतम सिंह ने बनवाया था. सपने में माता के आदेश के बाद राजा ने इस क्षेत्र में खुदाई करवाई खुदाई के दौरान राजा को यहां एक देवी की मूर्ति मिली. राजा ने इस मंदिर का नाम सिद्ध पीठ माता अन्नपूर्णा मंदिर रखा. उस व्यक्ति सिर्फ राज परिवार को यहाँ पूजा करने की अनुमति थ. धीरे धीरे समय बीत जिसके बाद सभी को माता के दर्शन की अनुमति हो गई. मंदिर में जो कलाकृति है उसको देखकर ही इसकी प्राचीनता का अंदाजा लगाया जा सकता है.
मंदिर के बाहरी हिस्से में छोटे छोटे पत्थर के बने हाथियों की श्रंखला बनी हुई है. श्रद्धालुओं का मामना है कि ये मंदिर की सुरक्षा में लगे है. इन हाथियों एक और अद्भुत चीज है इन सभी हाथियों को कोई भी व्यक्ति कभी भी सही से गईं नही सकता, जितनी बार इनकी गिनती करते हैं गिनती हमेशा आगे-पीछे हो जाती है. प्रत्येक वर्ष गुरु पूर्णिमा के दिन यहां भव्य मेले का आयोजन होता है, जिसमे पूरे देश से यहां श्रद्धालु माता के दर्शन को आते है.
मंदिर के पुजारी ने बताया कि यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है. माता को अन्न की देवी कहा गया. जिसके चलते ऐसी मान्यता है कि मंदिर प्रांगण की मिट्टी माता का असली प्रसाद है. श्रद्धालु यहां की मिट्टी अपने घर ले जाते है और अपने खेतों में डाल देते है, जिससे उनके खेतो की उपजाऊ क्षमता बढ़ जाती है.