बीएचयू विश्वनाथ मंदिर में लगा भक्तों का रेला, विधि विधान से किया दर्शन पूजन
वाराणसी – काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित विश्वनाथ मंदिर में सावन के प्रथम सोमवार को दर्शनार्थियों का हुजूम उमड़ पड़ा. यहां पर सावन भर दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है. देश ही नहीं विदेशों से भी यहां पर दर्शन पूजन करने लोग पहुंचते हैं. आज सुबह बाबा का विधि विधान के साथ पूजन अर्चन और आरती किया गया. जिसके बाद दर्शनार्थियों को दर्शनार्थ मंदिर परिसर को खोल दिया गया. भोर से ही लोग हर हर महादेव का जय घोष करते हुए दर्शन पूजन कर रहे हैं लगभग 1 किलोमीटर दूर तक लाइन लगी हुई है. महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग बैरिकेडिंग भी की गयी है. इस मंदिर का निर्माण बीएचयू में पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा कराया गया था. निर्माण के साथ ही कुछ भाग महामना के रहते नहीं बन सका. इसके बाद इसकी जिम्मेदारी उद्योगपति बिरला द्वारा ली गयी और इसका निर्माण पूरा कराया गया.
बिरला मंदिर के नाम से भी चर्चित
इस मंदिर को बिरला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर में आज पूरे दिन दर्शन पूजन का क्रम चलता रहेगा. कैंपस में रहने वाले छात्र – छात्राओं के साथ ही यहां के शिक्षक, कर्मचारी और बाहर से आने वाले लोग भी दर्शन पूजन करते हैं. मंदिर परिषद के पास ही विशाल नंदी की भी मूर्ति है जिसके कानों में मन्नत बोलकर लोग मनवांछित फल मांगते हैं. भारत का ये सबसे विशाल शिवमंदिर ना सिर्फ बनारस की शान है बल्कि इसकी भव्य नक्काशी और आस-पास का वातावरण यहां आने वाले हर किसी का मन मोह लेता है.
इस तरह से शिव मंदिर की हुई स्थापना
सन् 1916 में बीएचयू की स्थापना के बाद से ही महामना मदन मोहन मालवीय के मन में परिसर के भीतर एक भव्या विश्व नाथ मंदिर बनाने की योजना थी. मालवीय जी इस मंदिर का शिलान्यास किसी महान तपस्वी से ही कराना चाहते थे. किसी सिद्ध योगी की तलाश में प्रयासरत महामना को स्वामी कृष्णाम नामक महान तपस्वीा के बारे में पता चला. स्वा कृष्णाम देश-दुनिया से दूर हिमालय पर्वतमाला में गंगोत्री ग्लेशियर से 150 कोस आगे काण्डाकी नाम की गुफा में वर्षों से तप कर रहे थे.
सन् 1927 में मालवीय जी ने सनातन धर्म महासभा के प्रधानमंत्री गोस्वानमी गणेशदास को स्वातमी कृष्णाम के पास भेजकर मंदिर का शिलान्याास करने का निवेदन किया. हमेशा साधना में लीन रहने वाले तपस्वी कृष्णाम स्वामी को मनाने में गोस्वामी गणेशदास जी को भी चार साल लग गए. आखिरकार 11 मार्च सन् 1931 को स्वामी कृष्णाम के हाथों मंदिर का शिलान्यास हुआ. इसके बाद मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ. दुर्भाग्या से मंदिर का निर्माण मालवीय जी के जीवन काल में पूरा ना हो सका. महामना के निधन से पूर्व उद्योगपति जुगलकिशोर बिरला ने उन्हें भरोसा दिलाया कि हर हाल में बीएचयू परिसर के भीतर भव्य मंदिर का निर्माण होगा और इसके लिए धन की कभी कोई कमी नहीं आएगी.
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सन 1954 तक शिखर को छोड़कर मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो गया. 17 फरवरी सन् 1958 को महाशिवरात्रि के दिन मंदिर के गर्भगृह में नर्मदेश्वर बाणलिंग की प्रतिष्ठा हुई और भगवान विश्वनाथ की स्थापना इस मंदिर में हो गयी. मंदिर के शिखर का कार्य वर्ष 1966 में पूरा हुआ. मंदिर के शिखर पर सफेद संगमरमर लगाया गया और उनके ऊपर एक स्वरर्ण कलश की स्थारपना हुई. इस स्वर्णकलश की ऊंचाई 10 फिट है, तो वहीं मंदिर के शिखर की ऊंचाई 250 फिट है. यह मंदिर भारत का सबसे ऊंचा शिवमंदिर है. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर के ठीक बीचो-बीच यह मंदिर 2,10,000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में स्थित है.