काशी गैस चैंबर में बदली : इनहेलर भी काम नहीं कर रहे

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आशीष बागची
एक तरफ खतरनाक स्मॉग से दिल्ली को मुक्ति नहीं मिल रही है तो दूसरी तरफ पूरी यूपी खासकर लखनऊ, वाराणसी, मुरादबाद में जहरीली धुंध से लोगों का जीना मुहाल है। लखनऊ, वाराणसी की वायु गुणवत्ता सबसे निम्नतम स्तर पर पहुंच गई। वाराणसी में यह 491 है, जो अत्‍यंत जहरीली है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जारी की गई वायु गुणवत्ता सूची (एक्यूआई) में शहर की हवा की गुणवत्ता बेहद खतरनाक स्तर पर मापी गई।
बीएचयू में दमा व चेस्ट रोग के विशेषज्ञ प्रोफेसर S. K.Agrawal  कहते हैं कि धुन्ध का असर सबसे अधिक अस्थमा, ब्रांकाइटिस के मरीजों पर पड़ रहा है। रोगियों पर इनहेलर का भी असर नहीं हो रहा है। उनके डोज बढ़ाने पड़ रहे हैं। अस्थमा के रोगियों में दोगुना वृद्धि हुई है। वाराणसी के बीएचयू की ओ पी डी में मरीजों की संख्या 200 से बढ़कर 400 तक पहुंच गई है।
उनका कहना है कि जहरीली धुन्ध दिल, दिमाग व फेफड़ा खराब कर रहा है। धुन्ध के समय घर से बाहर मजबूरी हो तभी निकलें। अगर निकलना ही हो तो मास्क पहन कर निकलें। धूप में खूब सुबह बैठने की गलती न करें। सुबह की धुंध और सूर्य की किरणों के मध्‍य छोटे बच्‍चों को तेल आदि मालिश के लिए भी न निकालें। वैसे भी शहर का एक नवजात शिशु पैदा होते ही 50 सिगरेट के बराबर का धुंआ निगल रहा है।
प्रदूषित काशी के निवासी भी धीमी मौत की ओर
आज से सालों पहले बीएचयू के वरिष्ठ चेस्ट विशेषज्ञ व चेस्ट विभाग में तीन बार विभागाध्यक्ष रह चुके डा. S. K Agrawal ने यह टिप्पणी की थी कि काशी गैस चैंबर में तब्दील हो चुकी है। सोमवार को उन्होंने न सिर्फ अपने इस पूर्व कथन को सही ठहराया बल्कि कहा कि अब तो स्थिति और भी भयावह हो चुकी है। सोमवार को तो उन्होंने साफ-साफ बता दिया कि काशी की हालत दिल्ली से किसी भी मामले में कम गंभीर नहीं है।
उनका मानना है कि शहर की हवा की क्वालिटी इन दिनों सीजन के बेहद निचले स्तर पर है। काशी में कई जगहों पर सांसों के जरिए नुकसान पहुंचाने वाले प्रदूषक पीएम 2.5 और पीएम 10 से जुड़ी रियल टाइम रीडिंग हवा के सुरक्षित स्तर से कई गुनी ज्यादा यानी 491 पहुंच गयी है। नगर के कई हिस्सों में यह स्तर अलग अलग होना चाहिये। कहीं कहीं-कहीं पांच सौ भी होना चाहिये। यह न्यूनतम 60 के स्तर से कई गुना ज्यादा है।
बीएचयू में इन दिनों आने वाले मरीजों की संख्या में भी कई गुना इजाफा देखा जा रहा है। उनका मानना यह भी है कि अगर प्रदूषण का यह स्तर बरकरार रहा तो वाराणसी में भी असामयिक मौतें हो सकती हैं। पीएम 2.5 के तत्व इतने सूक्ष्म व खतरनाक होते हैं कि ये पहले सांसों के जरिये फेफड़ों, फिर खून और फिर हृदय में पहुंचकर हार्ट अटैक को जन्म देते हैं। प्रदूषण से सीधे मौत भले ही न हो पर इससे होने वाली हर मौत को हार्ट अटैक से मौत करार दिया जाता है।
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वाराणसी शहर के भीतरी हिस्सों खासकर गोदौलिया, विशेश्वरगंज, मैदागिन, रथयात्रा, कैंट स्टेशन, पांडेयपुर आदि इलाकों के सड़क किनारे रहने वालों के फेफड़ों पर जोखिम बढ़ता जा रहा है। पहले बीएचयू में एक फूंक मारने से जो स्केल 525 तक पहुंच जाता था वह अब चार सौ के आसपास ही रहता है। यह एकदम स्वस्थ लोगों की बात है। इसका सीधा अर्थ यह है कि वह काशीवासी जो खुद को बेहद स्वस्थ मान रहा हो और जो यह भी मान रहा हो कि उसे किसी भी तरह की सांस की बीमारी नहीं है, दरअसल उसका फेफड़ा महज 80 प्रतिशत ही काम कर रहा है।
आम काशीवासी के फेफड़ों की क्षमता लगातार घट रही है। इसका किसी को पता नहीं है। यह बेहद खतरनाक स्थिति है। सड़क किनारे रेहड़ी लगाने वालों, सब्जी फल विक्रेताओं, ट्राफिक पुलिस के जवानों व डीजल के धुएं के बीच काम करने वाले लगातार धीमी मौत की तरफ बढ़ रहे हैं और न राज्य, न केंद्र सरकार ही इस ध्यान दे रही है।

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