बिगड़ने लगा बनारस का ‘अर्थतंत्र’, क्या कोरोना की दूसरी लहर से लड़ पाएंगे व्यापारी ?

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पर्यटन उद्योग को बनारस के अर्थतंत्र का सबसे बड़ा स्त्रोत माना जाता है. बड़े-बड़े होटल, गेस्ट हाउस और लॉज के अलावा ट्रैवेल्स एजेंसियां, नाव और बजड़े, शहर में लोगों की आमदनी का जरिया है. इनके सहारे ही लाखों लोगों की जिंदगी का गुजर-बसर होता है. लेकिन कोरोना काल में इन उद्योगों को तबाही की कगार पर पहुंचा दिया है. पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों ने कोरोना के पहले वार को तो जैसे-तैसे झेल लिया लेकिन वायरस की दूसरी लहर से लड़ने की हिम्मत अब नहीं है.

अप्रैल के पहले हफ्ते में करोड़ों रुपए का नुकसान

कोरोना (corona) वायरस की दूसरी लहर ज्यादा मारक दिख रही है. अप्रैल के पहले हफ्ते में जो आंकड़ें सामने आए हैं, उसने लोगों के होश फाख्ता कर दिए हैं. विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि पहले के मुकाबले कोरोना का नया स्ट्रेस ज्यादा खतरनाक है. संक्रमण के खतरे को देखते हुए देश के कुछ राज्यों में लॉकडाउन की शुरुआत हो गई है. धर्म नगरी वाराणसी भी कोरोना वायरस की चपेट में है. यहां पर सबसे अधिक नुकसान पर्यटन उद्योग को हो रहा है. होटलों में पिछले एक हफ्ते में साठ फीसदी से अधिक फीसदी बुकिंग कैंसिल हो चुकी है. आने वाले दिनों में इसके और बढ़ने की आशंका है. माना जा रहा है कि अगर लॉकडाउन लगता है तो कारोबार से जुड़े लोग सड़क पर आ जाएंगे.

अर्श से फर्श पर पहुंची होटल इंडस्ट्री

पिछले एक साल से पर्यटन उद्योग अर्श से फर्श पर पहुंच गया है. कोरोना के चलते विदेशी सैलानियों की संख्या लगभग शून्य पर पहुंच गई है. हालांकि नवंबर 2020 के बाद हालात कुछ सामान्य हुए लेकिन कोरोना के दोबारा अटैक ने व्यापारी को फिर से बेपटरी कर दिया है. होटल प्लाज़ा इन के एचआर मैनेजर प्रभाकर पाठक कहते हैं कि ‘’ 2020 के कोरोना काल के बाद स्थितियों कुछ सुधरती हुई नजर आ रही थी. उम्मीद थी कि 2021 में सबकुछ सामान्य हो जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं है.’’ अब तो घरेलू पर्यटकों की ओर से लगातार बुकिंग कैंसिल कराई जा रही है. अप्रैल महीने के शुरुआती हफ्ते में ही 60 फीसदी से अधिक बुकिंग कैंसिल हो चुकी है. होटलों के लगभग अस्सी फीसदी कमरे खाली पड़े हैं. आमतौर पर गर्मी के दिनों में दक्षिण भारत के राज्यों जैसे तमिलनाडू, कर्नाटका, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के श्रद्धालु काफी संख्या में बनारस घूमने आते हैं. इसके अलावा श्रीलंका के सैलानियों से भी शहर गुलजार रहता है. लेकिन कोरोना ने सैलानियों के कदमों को थाम दिया है. आकर्षक ऑफर के बाद भी होटलों में पर्यटकों का टोटा पड़ा है. होटल कारोबारी प्रदीप सिंह कहते हैं कि अगर यही हालात रहे तो अगले महीने से होटल पर ताला लटकाना पड़ेगा. बिजली का बिल, मेंटनेंस और स्टॉफ की सैलरी मिला ले तो प्रतिमाह लगभग पांच से छह लाख रुपए का खर्च आता है. जिंदगी भर की जमापूंजी लगाकर लॉकडाउन की पहली मार को तो झेल लिया लेकिन आगे ऐसा कर पाना मुश्किल होगा.

औने-पौने दाम पर बेची जा रही हैं गाड़ियां

होटल कारोबारियों की तरह ट्रैवेल्स एजेंसी वाले भी परेशान हैं. एजेंसी मालिक अभिषेक पटेल कहते हैं कि ‘’हर महीने उन्हें गाड़ियों की किस्त जमा करनी पड़ती है. इसके अलावा ड्राइवर और रोड टैक्स. अगर यही हालत रहे तो हम लोग सड़क पर आ जाएंगे. कोरोना कॉल में गाड़ियों के भी अच्छे दाम नहीं मिल रहे हैं ताकि उन्हें बेचा जाए. सरकार ने पिछले साल 20 हजार करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया लेकिन हमे तो फूटी कौड़ी नसीब नहीं हुई.’’

नाविकों के सामने भी रोजी रोटी का संकट

बनारस में गंगापुत्र के नाम से पहचान रखने वाले नाविक भी कोरोना की दूसरी लहर से मुकाबले के पहले सरेंडर कर चुके हैं. कोरोना संक्रमण की संख्या में इजाफा होने के साथ ही गंगा घाटों पर भी सियापा छाने लगा है. सुबह शाम जो लोग घाटों पर जाते भी हैं वो स्थानीय लोग हैं. पर्यटकों के इंतजार में नाविक पूरे दिन गंगा किनारे बैठे रह रहे हैं. दरअसल गंगा में लगभग पांच हजार छोटी बड़ी नावों का संचालन होता है. लेकिन कोरोना काल में नाविकों के सामने भी रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

अब तक हो चुका है इतने का नुकसान

पर्यटन उद्यमियों के अनुसार कोरोना काल में लगभग 3000 करोड़ का झटका लगा है. शहर में 50 बड़े होटल, 1000 मध्यम-छोटे होटल, 600 गेस्ट हाउस और अनगिनत होम स्टे भी हैं. छावनी सहित शहर के विभिन्न क्षेत्रों के होटल में पर्यटकों से भरे रहते थे. हर माह 10 से 15 विदेशी तो 30 से 40 की संख्या में दक्षिण भारतीय पर्यटकों की बुकिंग एक होटल में रहती थी. कई गेस्ट हाउस तो महीने भर तक दक्षिण भारतीयों से फुल रहते थे. अब सब खाली चल रहे हैं.घाट किनारे होटलों में पीक सीजन में मुंहमांगी कीमत देकर पर्यटक ठहरते थे. अब 5 से 10 प्रतिशत ही कारोबार रह गया है. बनारस में सितबंर से मार्च माह तक सैलानियों के लिहाज से पीक सीजन माना जाता है. जुलाई से सितंबर स्पेन, इटली और फ्रांस के लोग ज्यादा आते थे, यह तीनों देश पूरी तरह प्रभावित है, ऐसे में दो साल तक मान लिया जाए इन देशों के लोग भारत भ्रमण पर नहीं आएंगे.

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