कमिश्नर ऑफ पुलिस के हवाले हुआ बनारस और कानपुर, जानें क्या है पूरा सिस्टम
आखिर क्यों जरूरी है पुलिस कमिश्नर प्रणाली।
लखनऊ और नोएडा के बाद यूपी गवर्नेंट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और कानपुर में भी पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू करने का फैसला किया है। एक दिन पहले हुई कैबिनेट बैठक में प्रस्ताव को मंजूरी मिल गयी है। इसके साथ ही कमिश्नर प्रणाली की चर्चा तेज हो गयी है।
सबके जेहन में यह सवाल है कि आखिर यह क्या होती है और इसमें पुलिस को क्या अधिकार मिलते हैं। आइए आपके हर सवाल का जवाब देते हैं इस खबर में साथ ही बताते हैं कि आखिर क्यों जरूरी है पुलिस कमिश्नर प्रणाली।
बंट गया डीएम का पावर-
भारतीय संविधान के आर्टिकल -7 की प्रविष्टि 1 और 2 के अनुसार, ‘लोक व्यवस्था’ और ‘पुलिस’ राज्य के विषय हैं। अतः इन मामलों में नए कानून बनाने या कानूनों में संशोधन करने तथा विभिन्न समितियों/आयोगों की सिफारिशों को लागू करने का उत्तरदायित्व राज्य सरकारों को सौंपा गया है।
स्वतंत्रता के बाद से लगभग सभी राज्यों में ज़िला स्तर पर विधि एवं व्यवस्था के संचालन के लिये ज़िलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक की नियुक्ति कर नियंत्रण की दोहरी व्यवस्था स्थापित की गई है। इस व्यवस्था के तहत पुलिस विषम परिस्थितियों (दंगा, कर्फ्यू आदि) में भी ज़िलाधिकारी के आदेश के अनुसार कार्रवाई करती है।
कमिश्नरी प्रणाली में पुलिस और कानून व्यवस्था की सारी शक्तियां पुलिस आयुक्त के पास होती हैं तथा पुलिस कमिश्नर एकीकृत पुलिस कमान का प्रमुख होता है। वह अपने कार्यक्षेत्र में कानून-व्यवस्था बनाए रखने एवं अपने निर्णयों के लिये राज्य सरकार के प्रति उत्तरदायी होता है।
अब पुलिस कमिश्नर देंगे असलहा लाइसेंस-
दंड प्रक्रिया संहिता के तहत कुछ मामलों में अंतिम फैसला लेने का अधिकार पुलिस आयुक्त को दे दिया जाता है। जैसे- CrPC की धारा 107-116, 144, 145 आदि। CrPC की धारा 20 के तहत पुलिस आयुक्त को दंडाधिकार की शक्तियां जबकि अपर आयुक्तों को CrPC की धारा 21 के तहत कुछ मामलों में दंडाधिकार की विशेष शक्तियां प्राप्त हैं।
कमिश्नरी प्रणाली में पुलिस आयुक्त को अपने कार्यक्षेत्र की सीमा के अंदर लाइसेंस जारी करने का भी अधिकार प्राप्त होता है। जैसे- शस्त्र लाइसेंस, होटल या बार लाइसेंस आदि। पुलिस आयुक्त के पास क्षेत्र के किसी भी भाग में किसी भी प्रकार के आयोजन (सांस्कृतिक कार्यक्रम, कॉन्सर्ट, विरोध प्रदर्शन, धरना आदि) की अनुमति देने या न देने का अधिकार होता है।
विशेष परिस्थितियों में बल प्रयोग और संवेदनशील मामलों में रासुका 1980 या गैंगस्टर एक्ट के तहत विभिन्न धाराओं का प्रयोग करने के लिये पुलिस आयुक्त का आदेश ही अंतिम एवं सर्वमान्य होता है। कमिश्नर सिस्टम लागू होने से पुलिस अधिकारियों की जवाबदेही भी बढ़ जाती है। दिन के अंत में पुलिस कमिश्नर, जिला पुलिस अधीक्षक, पुलिस महानिदेशक को अपने कार्यों की रिपोर्ट अपर मुख्य सचिव (गृह मंत्रालय) को देनी होती है, इसके बाद यह रिपोर्ट मुख्य सचिव को जाती है।
बेहतर मानी जाती है कमिश्नर प्रणाली
देश के कई राज्यों के अतिरिक्त विश्व के कई प्रगतिशील देशों में भी पुलिस कमिश्नरी प्रणाली को कानून-व्यवस्था बनाए रखने का सबसे प्रभावी माध्यम माना गया है। वर्ष 1983 में जारी छठी राष्ट्रीय पुलिस आयोग रिपोर्ट में भी 10 लाख से अधिक की आबादी वाले महानगरों के लिये इस प्रणाली को आवश्यक बताया गया था।
इस प्रणाली के अंतर्गत पुलिस आयुक्तों को अतिरिक्त उत्तरदायित्वों के साथ कुछ Magisterial Powers भी प्रदान की जाती हैं। पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो द्वारा वर्ष 2018 में जारी रिपोर्ट के अनुसार, देश के 15 राज्यों और 61 शहरों में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू है।
कमिश्नर सिस्टम में पुलिस व्यवस्था कुछ ऐसी होगी-
1. पुलिस कमिशनर – सीपी
2. संयुक्त आयुक्त – जेसीपी
3. डिप्टी कमिश्नर – डीसीपी
4. सहायक आयुक्त- एसीपी
5. पुलिस इंस्पेक्टर – पीआई
6. सब-इंस्पेक्टर – एसआई
7. पुलिस दल
लखनऊ में पहले से बैठते हैं पुलिस कमिश्नर
बीते जनवरी 2020 में नोएडा और लखनऊ में कमिश्नरेट प्रणाली शुरू हुई थी। सरकार के नए फैसले के बाद वाराणसी के 18 और कानपुर के 34 थानो में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होगा। इसके साथ ही बनारस एवं कानपुर नगर दोनों कमिश्नरेट में कम से कम 15-15 आईपीएस तैनात होंगे। बनारस के कोतवाली, आदमपुर, रामनगर, भेलूपुर, लंका, मंडुवाडीह, चेतगंज, जैतपुरा, सिगरा, छावनी, शिवपुर, सारनाथ, लालपुर-पांडेयपुर, दशाश्वमेध, चौक, लक्सा, पर्यटक, महिला थाना कमिश्नर के अधीन आएंगे।
बढ़ती आबादी बन रही चुनौती
महानगरों में बढ़ती आबादी के कारण प्रशासन और प्रबंधन पर दबाव बढ़ रहा है। अपराध नियंत्रण भी मुश्किल हो रहा है ऐसे में पुलिस तंत्र का एकीकृत होना जरूरी है। प्रशासन की दोहरी व्यवस्था में विधि-व्यवस्था का उत्तरदायित्व ज़िलाधिकारी और एसपी द्वारा साझा किया जाता है। इस व्यवस्था में पुलिस किसी भी अप्रिय घटना की स्थिति में डीएम के आदेश के अनुसार काम करती है।
ऐसे में दोनों अधिकारियों के बीच परस्पर समन्वय जरूरी होता है लेकिन कई बार देखने को मिलता है कि विभागों में परस्पर समन्वय की कमी है और आरोप-प्रत्यारोप के चलते बड़ी दुर्घटनाएं हो जाती हैं। कमिश्नरी प्रणाली में प्रशासन की कोई दोहरी व्यवस्था नहीं होती है, अतः विषम परिस्थितियों में कठिन निर्णय लेने और उनके शीघ्र क्रियान्वन में आसानी होती हो।
कोलकाता में अंग्रेजों ने शुरु किया था कमिश्नर सिस्टम
हालांकि कमिश्नर प्रणाली भारत में कोई नयी व्यवस्था नहीं है। भारत में सबसे पहले पुलिस कमिश्नर की नियुक्ति ब्रिटिश शासन के अंतर्गत बंगाल के कोलकाता शहर में वर्ष 1856 में (पुलिस अधिनियम-1861 के लागू होने से पहले) की गई थी। वर्ष 1856 में ही पुलिस अधिनियम (Police Act)-XII के तहत मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में पहले पुलिस कमिश्नर की नियुक्ति की गई।
बंबई (वर्तमान मुंबई) महानगर में पुलिस कमिश्नर की नियुक्ति वर्ष 1864 में की गई। वर्तमान समय में महाराष्ट्र के लगभग 9 महानगरों में कमिश्नरी प्रणाली लागू है। इसके साथ ही महाराष्ट्र रेलवे में भी कमिश्नर रेलवे के रूप में यह प्रणाली लागू है।
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