लखनऊ : छतर मंजिल का अस्तित्व संकट में…

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कहीं ये बारिश राजधानी की ऐतिहासिक धरोहरों का अस्तित्व ही खत्म न कर दे। जिसमें से लखनऊ की नामचीन धरोहरों में से एक छतर मंजिल का अस्तित्व संकट में है। छतर मंजिल के ठीक पीछे गोमती तट पर दीवार बनाने के लिए खोदी गई मिट्टी के पहाड़ लगे हैं। बारिश में इसमें पानी रुक रहा है। जिससे बूढ़ी छतर मंजिल की नींव पर खतरा उत्पन्न हो गया है। महीनों हो गए हैं, लेकिन इस ढेर को हटाया नहीं गया है।

छतरमंजिल पर यह लापरवाही पड़ सकती है  भारी

पुरातत्व विशेषज्ञों का कहना है कि यह लापरवाही पहले से ही कमजोर छतर मंजिल के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। बताते चलें कि गोमती किनारे दीवार बनाने के लिए निकाली गई मिट्टी के बड़े-बड़े टीले ऐन छतर मंजिल के पीछे महींनों से लगे हैं।

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बरसात का मौसम होने के कारण यहां पानी रुक रहा है। यही नहीं, गीली मिट्टी का वजन भी बूढ़ी हो चुकी छतर मंजिल की नींव का बोझ बढ़ा रहा है। आइआइटी कानपुर व सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआइ) द्वारा कई साल पहले ही छतर मंजिल को कमजोर बिल्डिंग घोषित किया जा चुका है।

बिल्डिंग के सीने पर दीवार बनाने के लिए  चली भारी-भरकम मशीनें

यही नहीं इसी के चलते छतरमंजिल का संरक्षण भी शुरू किया गया है। जाहिर है कि पहले से ही नमी के चलते खराब हो रही छतरमंजिल पर यह लापरवाही कभी भी भारी पड़ सकती है। सूत्रों के अनुसार चूंकि रिवरफ्रंट के तहत किए जा रहे कार्य फिलहाल रोक दिए गए हैं।

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ऐसे में यह स्थिति कब तक बनी रहेगी कहना मुश्किल है। जाहिर है कि पहले 1800 में बनी इस पुरानी व कमजोर बिल्डिंग के सीने पर दीवार बनाने के लिए भारी-भरकम मशीनें चलाई गईं।

इकठ्ठा मिट्टी व सिल्ट को तत्काल हटाया जाना चाहिए

वहीं अब वहां पड़ी मिट्टी को भी नहीं हटाया जा रहा है। साफ है कि उम्रदराज हो चुकी इस धरोहर के प्रति ऐसी लापरवाही उसके अस्तित्व पर भारी पड़ सकती है।कमजोर हो चुकी छतर मंजिल पर बोझ बने मिट्टी के टीलेछतर मंजिल के पीछे इकठ्ठा मिट्टी व सिल्ट को तत्काल हटाया जाना चाहिए।

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इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि वॉटर लॉगिंग से छतरमंजिल में नमी पहुंचने का अंदेशा रहेगा जो पुरानी व कमजोर हो चुकी ऐतिहासिक धरोहर को नुकसान पहुंचा सकता है।

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