केंद्र बनाम केजरीवाल: ट्रांसफर-पोस्टिंग पर अधिकार को लेकर सुनवाई की तारीख तय
केंद्र और दिल्ली सरकार की शक्तियों के दायरे के विवादास्पद मुद्दे पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने तारीख तय कर दी है। इस मामले में अब सुनवाई नौ नवंबर को होगी।
दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार मांग रही केजरीवाल सरकार की याचिका पर सुनवाई की तारीख सुप्रीम कोर्ट ने तय कर दी है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ अब इस मामले में नौ नवंबर से सुनवाई शुरू करेगी। बता दें कि दिल्ली सरकार ट्रांसफर-पोस्टिंग समेत अधिकारियों पर पूर्ण नियंत्रण की मांग कर रही है।
दिल्ली सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में केंद्र सरकार के पास सिर्फ जमीन, पुलिस और लोक आदेश यानी कानून व्यवस्था के मामले में अधिकार मिला है, इसलिए वह इन्हीं से संबंधित अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग कर सकती है। लेकिन केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार को चलाने से संबंधित गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली एक्ट में 2021 में संशोधन किया था जिसके तहत उपराज्यपाल को कई और अधिकार दे दिए गए थे। दिल्ली सरकार ने इस संशोधन को भी चुनौती दी है।
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2019 में आया था खंडित फैसला
दिल्ली सरकार की याचिका पर 14 फरवरी, 2019 को जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस भूषण की दो सदस्यीय पीठ ने खंडित फैसला सुनाया था, जिसमें दोनों ने चीफ जस्टिस से राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे को अंतिम रूप से तय करने के लिए मामला तीन जजों की पीठ को भेजने की सिफारिश की थी। दोनों जज रिटायर हो चुके हैं।
जस्टिस भूषण ने फैसला सुनाया था कि दिल्ली सरकार के पास सभी प्रशासनिक सेवाओं का कोई अधिकार नहीं है। हालांकि, इस पर जस्टिस सीकरी का रुख अलग था। उन्होंने कहा कि नौकरशाही (संयुक्त निदेशक और ऊपर) के शीर्ष पदों पर अधिकारियों की नियुक्ति या तबादला केवल केंद्र सरकार कर सकती है और अन्य नौकरशाहों से संबंधित मामलों पर विचारों में मतभेद के मामले में उप-राज्यपाल की राय जरूरी होगी।
2018 के फैसले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा था कि दिल्ली के उप-राज्यपाल को चुनी हुई सरकार की सहायता और सलाह से काम करना होगा और दोनों को एक दूसरे के साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।
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