Bomb Cyclone: जानें क्या है ब्लिज़ार्ड और बॉम्ब साइक्लोन जिसने अमेरिका में मचा रखी है तबाही

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पूर्वी अमेरिका के ज्यादातर इलाकों में बम साइक्लोन का कहर जारी है.आर्क्टिक तूफान के कारण अमेरिका में 30 से अधिक लोगों की मौत हो गई है। अमेरिका के कई इलाकों में माइनस 45 डिग्री सेल्सियस तक लुढ़क गया है। वहीं जापान के बड़े हिस्से में भी भारी बर्फबारी के कारण कम से कम 17 लोग की मौत हो चुकी है। सड़कों और घरों की बिजली गायब है। इस्ट अमेरिका के ज्यादातर इलाकों में बॉम्ब साइक्लोन और ब्लिजार्ड के कहर ने लोगों की डेली लाइफ उलट-पुलट कर दी है। पर क्या है ये बॉम्ब साइक्लोन और ब्लिजार्ड जिसने अमेरिका में इतनी तबाही मचा दी है, चलिए जानते हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ हिस्सों में इसे सिल्वर मेल्टिंग के तौर पर भी जाना होता है.ये तूफान पानी की जगह बर्फ या ओलों की बारिश करता है. ये आमतौर पर तब होता है जब मौसम का तापमान पहले से ही काफी कम हो. जरूरी नहीं कि ऐसा तापमान केवल ठंड के मौसम में ही आए.अगर जमीन का तापमान कम हो तो भी कभी बर्फीला तूफान देखने को मिलता है लेकिन बहुत कम.

क्या होता है ब्लिज़ार्ड…
बर्फीले तूफान में जब तेज़ हवाएं भी चलती हैं और बहुत ज़्यादा बर्फ गिरती है, तो उसे ब्लिज़ार्ड या हिम झंझावात भी कहा जाता है. 1888 से 1947 के बीच और 1990 के दशक में अमेरिका में कई बार इस तरह के ब्लिज़ार्ड रिकॉर्ड किए गए थे. मिसाल के तौर पर 1947 में अमेरिका में दो फीट से ज़्यादा बर्फ गिरी थी. लगातार बर्फ गिरने से 12 फीट तक बर्फ जम गई थी, जो महीनों तक पिघली नहीं थी क्योंकि तापमान गिरा नहीं था.

क्‍या है बॉम्ब साइक्लोन…
जब हवा का सेंट्रल प्रेशर 24 घंटे के अंदर कम से कम 24 मिलीबार गिरा हो तो मौसम की उस स्थिति को बॉम्ब चक्रवात कहते हैं। दबाव जितना कम होता है तूफान की रफ्तार उतनी ही तेज होती जाती है। मौसम वैज्ञानिक इसे बॉम्बोजेनेसिस भी कहते हैं। ये तीव्र तूफान भारी वर्षा और बहुत तेज हवाएं लाते हैं। ये हरिकेन से अलग होता है। बॉम्ब साइकलोन बनने के लिए समुद्र के गर्म पानी की जरुरत नहीं होती। ये जमीन के साथ-साथ समुद्र में भी दिखाई दे सकती है। इस दौरान भारी बर्फबारी, बारिश, तेज ठंडी हवाएं और आंधी भी आती है।

जानें क्यों आते है बर्फ के तूफ़ान…

कुदरत के इस खेल को समझने के लिए आपको भौगोलिक स्थितियों के बारें में जानना जरुरी हैं कि बर्फीले तूफान क्यों आते है-

– समुद्र में कम दबाव के क्षेत्र में चक्रवात के कारण अपेक्षाकृत गर्म हवाओं का चक्र बनता है. अगर सतह के पास पर्याप्त ठंडी हवा नहीं होती तो बर्फ की बारिश हो सकती है.

– चूंकि चक्रवातों के कारण कम दबाव वाले क्षेत्र में हवाएं बहुत तेज़ बहती हैं इसलिए बहुत तेज़ हवाओं से बड़े बर्फीले तूफान बन सकते हैं.

– कितनी बर्फ गिरेगी, यह इससे तय होता है कि गर्म हवाएं ठंडी हवाओं के ऊपर कितनी तेज़ी से बहती हैं या कितना वाष्प उपलब्ध होता है या तूफान कितनी तेज़ी से बढ़ता है.

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क्या है खतरें और सावधानियां…

बर्फीले तूफ़ान के चलते फ्रॉस्टबाइट की आशंका रहती है जिसका मतलब है कि चेहरे, उंगलियों और पाव की फिलिंग चली जाती है. स्नो स्टॉर्म की चपेट में आने से व्यक्ति सुन्ना हो जाता है जिसके कारण उसकी त्वचा रूखी और पीली पड़ जाती है. लक्षण के रूप में आवाज लड़खड़ाना आम बात है. इन स्थितियों में अगर आपके शरीर का तापमान 95 डिग्री तक पहुंचे तो इसे इमरजेंसी समझना चाहिए. यह हाइपोथर्मिया जानलेवा भी हो सकता है.

क्या करना चाहिए…

स्नो स्टॉर्म ही नहीं बल्कि कड़ाके की ठंड के हालात में आपको किसी गर्म कमरे में जाना चाहिए. खुद को गर्म पानी में भिगोना चाहिए या फिर बॉडी हीट का इस्तेमाल करना चाहिए. लेकिन हीटिंग पैड के इस्तेमाल और मसाज से बचना चाहिए. सबसे पहले शरीर के मध्यभाग यानी छाती से सर की तरफ आपको खुद को गर्म करने पर ध्यान देना चाहिए.

बता दें कि अमेरिका में 1816 में गर्मियों के मौसम में ऐसा ही तूफान आया. फिर 2013 में यही हुआ, तब 10सेमी का बर्फ की चादर तूफान के चलते आकर जम गई थी.इससे हवा का तापमान भी फिर ठंडा हो गया. अभी एक पहले ही जापान में ऐसा ही बर्फीला तूफान आया, जिसे विंटर स्टॉर्म के नाम से भी समझा जाता है. इसमें बर्फ की बारिश काफी तेज़ी से होती है. हाड़ कंपा देने वाली हवाएं भी साथ में चलती हैं.

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