एक पत्रकार, जिसका गांव में बसता है ‘दिल’

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एक समय था जब पत्रकारिता पैसा कमाने का जरिया नहीं बल्कि एक मिशन हुआ करता था, लेकिन समय के साथ-साथ पत्रकारिता भी बदलती गई। आज के पत्रकार अपना घर-बार, दुनियादारी सबकुछ छोड़कर बस पैसा कमाने में जुटे हैं। लेकिन इस दौर में भी कुछ ऐसे पत्रकार हैं जिनमें पत्रकारिता करने के अलावा भी कुछ कर दिखाने का जज्बा है। क्योंकि उनके लिए सिर्फ पैसा कमाना ही उनका मिशन नहीं है। आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं जो मूल रूप से तो पत्रकार हैं ही लेकिन इनका दिल गांव में बसता है। किसानी करते हुए, किसानों को खेती के बारे में बताते हैं, अपने अनुभव साझा करते हैं और लोगों को जमीन से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

एक पत्रकार ऐसा भी…

हम आज आपको बता रहे हैं पत्रकार से किसान बने गिरीन्द्र नाथ झा के बारे में। करीब पांच साल तक सक्रिय पत्रकारिता के बाद गिरीन्द्र नाथ झा अचानक पत्रकारिता की पकी-पकाई नौकरी छोड़कर खेती-किसानी में जुट गए हैं।

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बिहार के पूर्णिया जिले से करीब 25 किलोमीटर दूर एक गांव है ‘चनका’, जहां ये आजकल किसानी कर रहे हैं। अपनी प्रतिभा के बल पर नए-नए प्रयोग कर अपने खेतों को हरा-भरा करके उनमें एक नई जान डालते हैं। गांव के किसानों में एक नया जोश भरने का काम करते हैं। इनका मन आजकल हरे-भरे लहलहाते खेतों में ही रमता है।

जन्म व शिक्षा

19 नवंबर 1982 को जन्में गिरीन्द्र की स्कूली पढ़ाई उनके गृह नगर पूर्णिया जिले से हुई। लेकिन स्नातक करने के लिए उन्होंने दिल्ली का रूख किया। गिरी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद गिरीन्द्र ने दिल्ली के वाईएमसीए से पत्रकारिता की पढ़ाई की। साल 2006 में कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद सीएसडीएस से उन्होने फेलोशिप पूरी की।

पत्रकारिता में पदार्पण

पत्रकारिता की बढ़ाई करने के बाद 2007 से 2010 तक ‘आईएएनएस’ जैसी न्यूज एजेंसी में सीनियर सब एडिटर/रिपोर्टर के पद पर कार्य किए।

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इसके बाद इन्होंने विभिन्न मीडिया संस्थानों सहित 2010 से 2012 तक ‘आईनेक्स्ट लाइव’ कानपुर में पत्रकारिता की।

…जब सब छोड़ लौट गए गांव

लेकिन गिरी ने अपने मन में तय कर रखा था कि एक दिन उन्हें अपने गांव वापस लौटना है। इस बीच उनके पिता की तबियत खराब हुई तो उनको अपने गांव वापस लौटना पड़ा। तब उन्होने देखा कि वो गांव में रहकर वो सब कुछ कर सकते हैं जो शहरों में रहकर करते हैं। इस तरह वो जून, 2012 में अचानक पत्रकारिता की पकी-पकाई नौकरी छोड़कर हमेशा के लिए पूर्णिया लौट आए। और तभी से वे खेती-किसानी में जुटे हुए हैं।

रूलर टूरिज्म को दे रहे हैं बढ़ावा

गिरीन्द्र नाथ झा ना सिर्फ अपने गांव लौटे बल्कि आज वहां रहकर खेती-बारी के साथ-साथ रूलर टूरिज्म को बढ़ावा दे रहें हैं, इतना ही नहीं खेती में नए नए प्रयोग कर पर्यावरण के रक्षक भी बने हुए हैं। तभी तो उनके काम को समझने, गांव की संस्कृति को जानने और शांति की तलाश में देश के कई राज्यों के अलावा विदेशों से भी लोग उनसे मिलने उनके गांव ‘चनका’ आते हैं।

ब्लॉग के लिए मिला सम्मान

गिरीन्द्र की असली पहचान एक ब्लॉगर के तौर पर है। वो साल 2006 से ‘अनुभव’ (www.anubhaw.blogspot.in) नाम से नियमित तौर पर ब्लॉग लिखते हैं। इसमें वो सिर्फ गांव की बात करते हैं, गांव में नया क्या हो रहा है उसकी जानकारी देते हैं साथ ही छोटे बड़े चुनावों को किसान की नजर से देखते हुए अपनी राय रखते हैं।

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उनके शानदार ब्लॉग की वजह से दिल्ली सरकार और एक राष्ट्रीय हिन्दी न्यूज चैनल ने हिंदी दिवस के मौके पर उनको सर्वश्रेष्ठ हिंदी ब्लॉगर का सम्मान मिल चुका है। उनके लिखे ब्लॉग किस कदर प्रसिद्ध हैं इस बात का अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि कई बार 15 हजार से ज्यादा लोग उनका ब्लॉग पढ़ने के लिए आते हैं।

किसानों को सोशल मीडिया से जोड़ने का प्रयास

गिरीन्द्र की अब कोशिश है कि किसानों को सोशल मीडिया से जोड़ने की, ताकि वो अपनी जमीन से ज्यादा से ज्यादा पैदावार ले सकें। क्योंकि आज सोशल मीडिया एक बहुत बड़ा हथियार है, इसके जरिये किसान बहुत कुछ कर सकते हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्होने अपने गांव में कई बार सोशल मीडिया सम्मेलन का आयोजन कर चुके हैं।

हाल ही में राजकमल प्रकाशन से लघु प्रेम कथा शृंखला में उनकी किताब भी आई है-” इश्क़ में माटी सोना’।

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