इनके पास है सपनों को हकीकत में बदलने का मंत्र

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संघर्ष के रग-रग से सफलता की धारा निकलती है। इस बात साबित किया है फिल्म निर्माता राजेंद्र विनोद ने। आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव (चिन्नागोटीगल्लू) में जन्में विनोद ने कभऊ सोचा भी नहीं था कि वो इतने बड़े फिल्म निर्माता बने हैं। आज विनोद लघु फिल्म निर्माण के क्षेत्र में काफी सूर्खियां बटोर रहे हैं। इनकी फिल्में अवार्ड समारोहों में चर्चा का विषय बन रही हैं।  विनोद अपनी फिल्मों के माध्यम से समाज को अंधविश्वास के खिलाफ शिक्षित करना चाहते हैं। उनको इस बात का दु:ख है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी ये चीजें हमारे देश में प्रचलित हैं।

सपनों की दुनिया

कम उम्र में ही राजेंद्र के बहन की शादी हो गई। जिसके बाद विनोद अपने आप को तन्हा महसूस करने लगे। और इसी तन्हाई ने उन्हें कल्पनालोक में जी भर के उड़ान भरने का मौका दिया। उस वक्त को याद करते विनोद कहते हैं कि उस समय मैं सिर्फ ग्यारह वर्ष का था जब मैंने इन काल्पनिक पात्रों को अपने जीवन में महसूस करना शुरू किया और फिर खुद को कल्पना की दुनिया में पाया। यह बचपन की वही कल्पना शक्ति है जो अब फिल्म निर्माण के क्षेत्र में मेरे लिए संजीवनी साबित हो रही है।

छोटा शहर, बड़ा सफर

छोटे शहर में जन्म लेने का विनोद पर कोई प्रभाव नहीं था। इरादे के पक्के विनोद बताते हैं अगर किसी का जन्म छोटे शहर में हुआ तो यह जरूरी नहीं कि उसकी किस्मत में सिर्फ सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना ही लिखा है। और इसका मतलब यह भी कतई नहीं होना चाहिए कि वह उसी शहर की किसी कंपनी में किसी कनिष्ठ पद पर ही काम करने के लायक है। मैं लोगों की इस पारंपरिक सोच को बदलना चाहता था और अपने करियर को एक नई दिशा देने के लिए मैंने बैंगलोर का रूख किया।

कॉलेज, कोर्स और कामयाबी

2012 में विनोद ने प्रसिद्ध कॉलेज विजटून्ज कॉलेज ऑफ मीडिया एण्ड डिजाइन से जनसंचार के क्षेत्र में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। जिसके बाद विनोद के लिए लघु फिल्म निर्माण का द्वार खुल गया। अपने जीवन के इस मुकाम को विनोद कुछ ऐसे याद करते हैं ‘‘वास्तव में यही मेरी प्रेरणा थी। हिंदुपुर के बिट प्रौद्योगिकी संस्थान से बी.टेक. का कोर्स करने के दौरान ही मैंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कुछ करने का मन बना लिया था।’’ बचपन से ही भावनाओं और कल्पनाओं में विचरने वाले विनोद अब अपने उन्हीं अनुभवों और हाव-भावों को कैमरे में कैद कर रहे हैं।

हर भाषा में बनाई फिल्म

राजेंद्र ने अपने प्रोडक्शन हाउस ‘आर्वी फिल्म्स’ के बैनर तले अब तक लगभग दस फिल्में बना चुके हैं। इनमें विज्ञापन और वृतचित्र का उन्होंने सफल निर्देशन किया है। एक फिल्म के वे स्वयं निर्माता भी रहे हैं। भाषा उनके लिए कोई बाधा नहीं है। उन्होंने तेलगु, तमिल, मराठी सहित अंग्रेजी और फ्रेंच में भी फिल्में बनाई हैं। उनकी डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘लेपक्षी’ तेलगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, बंगाली, मराठी, हिंदी, अंग्रेजी, फ्रेंच, गुजराती और असमी में डब की गई है। उनकी अंग्रेजी मूवी ‘चेंज’ ऑस्कर के लिए पटकथा श्रेणी में नामांकित भी हो चुकी है।

लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज

विनोद की फिल्में विभिन्न अवधारणाओं पर आधारित होती हैं। यही वजह है कि उनकी सफलता का कारवां बढ़ता जा रहा है। उनके प्रोडक्शन हाउस ‘आर्वी फिल्म्स’ को नवंबर, 2014 में दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय लघु फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ प्रोडक्शन हाउस के रूप में चुना गया। आज जहां फिल्में करोड़ों में बनती हैं, वहीं विनोद अपनी फिल्म मामूली एक लाख रूपये में बना लेते हैं। इस खासियत के लिए उनका प्रोडक्शन हाउस लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हो चुका है।

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अंधविश्वास पर बनाना चाहते हैं फिल्म

विनोद अभिनेता आमिर खान की फिल्म ‘पीके’ से बेहद प्रभावित हैं और उसी तर्ज पर विज्ञान और धर्म के संबंधों पर एक फिल्म बनाना चाहते हैं। विनोद का कहना है कि मैं अपनी फिल्मों के जरिए लोगों को अंधविश्वास और काले जादू जैसी चीजों के खिलाफ शिक्षित करना चाहता हूं, क्योंकि मैं देखता हूं कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी ये चीजें हमारे देश में बहुत प्रचलित हैं।

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