Bilkis Bano case: बिलकिस बानो कांड के दोषियों की रिहाई का फ़ैसला रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के निर्णय को पलटा
नई दिल्ली: बिलकिस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले को पलटते हुए दोषियों की सजा माफी रद्द कर दी है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दोषियों को अब फिर से जेल जाना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जहां अपराधी के खिलाफ मुकदमा चला और सजा सुनाई गई, वहीं राज्य दोषियों की सजा माफी का फैसला कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा दोषियों की सजा माफी का फैसला गुजरात सरकार नहीं कर सकती बल्कि महाराष्ट्र सरकार इस पर फैसला करेगी. गौरतलब है कि बिलकिस बानो मामले की सुनवाई महाराष्ट्र में हुई थी.
गुजरात सरकार ने सजा माफी का लिया था फैसला
गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत साल 2022 में बिलकिस बानो से गैंगरेप और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों की सजा माफ कर दी थी और उन्हें जेल से रिहा कर दिया था. हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दोषियों को फिर से जेल जाना होगा.
क्या है पूरा मामला ?
27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के कोच को जला दिया गया था. इस ट्रेन से कारसेवक लौट रहे थे. आगजनी में कोच बैठे 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद दंगे भड़क गए थे. दंगों की आग से बचने के लिए बिलकिस बानो अपनी बच्ची और परिवार के साथ गांव छोड़कर चली गई थी.
कहा जा रहा है की जहां बिलकिस बानो छिपी थी वहां 3 मार्च 2002 को 20-30 लोगों की भीड़ ने तलवार और लाठियों से हमला कर दिया. भीड़ ने बिलकिस बानों के साथ दूराचार किया. उस समय बिलकिस 5 महीने की गर्भवती थीं. इतना ही नहीं, उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या भी कर दी थी जबकि 6 सदस्य वहां से भाग गए थे.
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2008 में मिली उम्रकैद की सजा
घटना पर नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. इस मामले के आरोपितों को 2004 में गिरफ्तार कर लिया गया. इस मामले का ट्रायल अहमदाबाद में शुरू हुआ था. बाद में बिलकिस ने चिंता जताई कि यहां मामला चलने से गवाहों को डराया-धमकाया जा सकता है और सबूतों से छेड़छाड़ की जा सकती है. इसके चलते इस मामले को मुंबई ट्रांसफर कर दिया गया था. जनवरी 2008 को स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई. स्पेशल कोर्ट ने 7 दोषियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. जबकि एक दोषी की मौत ट्रायल के दौरान हो गई थी.
दोषियों ने दी ये दलील
साथ ही, दोषियों ने दलील दी थी कि उन्हें शीघ्र रिहाई देने वाले माफी आदेशों में न्यायिक आदेश का सार है. इसे संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका दायर करके चुनौती नहीं दी जा सकती. दूसरी ओर एक जनहित याचिका वादी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने दलील दी थी कि छूट के आदेश ‘कानून की दृष्टि से खराब’ हैं. यह 2002 के दंगों के दौरान बानो के खिलाफ किया गया अपराध धर्म के आधार पर किया गया “मानवता के खिलाफ अपराध” था. जयसिंह ने कहा था कि शीर्ष अदालत के फैसले में देश की अंतरात्मा की आवाज झलकेगी.