भगवान आशुतोष की कृपाप्राप्ति के लिए प्रदोष व्रत रखने का विशेष महत्व है। सामान्यतः चान्द्रमास में दो बार प्रदोष व्रत पड़ते हैं। भगवान शिवजी को तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में देवाधिदेव महादेव माना गया है। हर आस्थावान धर्मावलम्बी मनोकामना की पूर्ति लिए भगवान् शिवजी की पूजा-अर्चना अपनी-अपनी परम्परा के अनुसार करते हैं।
इनकी पूजा अर्चना से सुख-समृद्धि, खुशहाली के साथ ही जीवन में अलौकिक शान्ति भी बनी रहती है। व्रत उपवास रखकर विधि-विधानपूर्वक भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करने की विशेष महिमा है। वैसे तो भगवान शिवजी की पूजा कभी भी की जा सकती है, लेकिन प्रदोष व्यापिनी त्रयोदशी तिथि के दिन पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है।
प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने की धार्मिक परम्परा है। इस बार 9 फरवरी, मंगलवार को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। कलियुग में प्रदोष व्रत को शीघ्र फलदायी माना गया है। प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि माघ कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 8 फरवरी, सोमवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 3 बजकर 20 मिनट पर लगेगी, जो कि 9 फरवरी, मंगलवार को अर्द्धरात्रि के पश्चात् 2 बजकर 06 मिनट तक रहेगी। जिसके फलस्वरूप प्रदोष व्रत 9 फरवरी, मंगलवार को रखा जाएगा।
प्रदोषकाल का समय सूर्यास्त से 48 मिनट या 72 मिनट का माना जाता है। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना उत्तराभिमुख होकर करने की परम्परा है
वार (दिनों) के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ-
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग प्रभाव है। जैसे-रवि प्रदोष-आयु एवं आरोग्य लाभ, सोम प्रदोष-शान्ति एवं रक्षा, भौम प्रदोष-कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष-मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष-विजय प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष-पुत्र सुख की प्राप्तिमनोरथ की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा अभीष्ट की पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने की धार्मिक मान्यता है।
ऐसे रखें प्रदोष व्रत-
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिनभर निराहार रहकर सायंकाल पुनः स्नान करके प्रदोष काल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार श्रद्धा-भक्तिभाव के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
देवाधिदेव शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि व्रतकर्ता अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर देवाधिदेव शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलित होती है। देवाधिदेव महादेव जी की महिमा में प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोष व्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए।
प्रदोष व्रत से सम्बन्धित कथाएँ भी सुननी चाहिए। यह व्रत महिला एवं पुरुष दोनों के लिए समानरूप से फलदायी है। प्रदोष व्रत से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के साथसाथ जीवन में सुख, समृद्धि व खुशहाली मिलती है तथा जीवन के समस्त दोषों का शमन भी होता है। प्रदोष व्रत के दिन व्रतकर्ता को परनिन्दा से बचते हुए शुचिता का विशेष ध्यान रखना चाहिए तथा दिन में शयन नहीं करना चाहिए। अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मण को दान तथा जरूरतमंद एवं असहायों की सेवा व सहायता सदैव करते रहना चाहिए।
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