जन्मदिन विशेष : भारतेन्दु ने किया कलम के दम पर विदेशी हुकूमत का पर्दाफ़ाश

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आज हिन्दी जगत व साहित्य  (literature) का पितामह कहे जाने वाले भारतेन्दू हरीशचन्द्र का जन्मदिन है। लाभ कछु न पुकारन में बदनाम ही होन की सारी कथा है… मात्र एक पक्ति से समूचे सागर को अपने में समेटे रहने की कला मात्र भारतेन्दु में ही थी। अपनी कलम के दम पर उन्होंने विदेशी हुकुमत का पर्दाफाश किया था। भारतेन्दु का जन्म 9 सितम्बर सन् 1850 मृत्यु: 6 जनवरी, सन् 1885 के हुआ था।

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विदेशी सभ्यता के प्रति आकर्षण था

उन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। भारतेन्दु हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। जिस समय भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का अविर्भाव हुआ, देश ग़ुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। अंग्रेज़ी शासन में अंग्रेज़ी चरमोत्कर्ष पर थी। शासन तंत्र से सम्बन्धित सम्पूर्ण कार्य अंग्रेज़ी में ही होता था। अंग्रेज़ी हुकूमत में पद लोलुपता की भावना प्रबल थी। भारतीय लोगों में विदेशी सभ्यता के प्रति आकर्षण था। ब्रिटिश आधिपत्य में लोग अंग्रेज़ी पढ़ना और समझना गौरव की बात समझते थे।

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विदेशी हुकूमत का पर्दाफ़ाश किया

हिन्दी के प्रति लोगों में आकर्षण कम था, क्योंकि अंग्रेज़ी की नीति से हमारे साहित्य पर बुरा असर पड़ रहा था। हम ग़ुलामी का जीवन जीने के लिए मजबूर किये गये थे। हमारी संस्कृति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा था। ऐसे वातावरण में जब बाबू हरिश्चन्द्र अवतारित हुए तो उन्होंने सर्वप्रथम समाज और देश की दशा पर विचार किया और फिर अपनी लेखनी के माध्यम से विदेशी हुकूमत का पर्दाफ़ाश किया।

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साहित्यकारों की सहायता हेतु मुक्त हस्त से दान

युग प्रवर्तक बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी नगरी के प्रसिद्ध ‘सेठ अमीचंद’ के वंश में 9 सितम्बर सन् 1850 को हुआ। इनके पिता ‘बाबू गोपाल चन्द्र’ भी एक कवि थे। इनके घराने में वैभव एवं प्रतिष्ठा थी। जब इनकी अवस्था मात्र 5 वर्ष की थी, इनकी माता चल बसी और दस वर्ष की आयु में पिता जी भी चल बसे। भारतेन्दु जी विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति थे। इन्होंने अपने परिस्थितियों से गम्भीर प्रेरणा ली। इनके मित्र मण्डली में बड़े-बड़े लेखक, कवि एवं विचारक थे, जिनकी बातों से ये प्रभावित थे। इनके पास विपुल धनराशि थी, जिसे इन्होंने साहित्यकारों की सहायता हेतु मुक्त हस्त से दान किया।

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लेखन कार्य के माध्यम से ये दूर-दूर तक जाने जाते थे

इनकी साहित्यिक मण्डली के प्रमुख कवि थे जिसमें पं. बालकृष्ण भट्ट, पं. प्रताप नारायण मिश्र, पं. बदरीनारायण उपाध्याय ‘प्रेमधन’ आदि शमिल थे। बाबू हरिश्चन्द्र बाल्यकाल से ही परम उदार थे। यही कारण था कि इनकी उदारता लोगों को आकर्षित करती थी। इन्होंने विशाल वैभव एवं धनराशि को विविध संस्थाओं को दिया है। इनकी विद्वता से प्रभावित होकर ही विद्वतजनों ने इन्हें ‘भारतेन्दु’ की उपाधि प्रदान की। अपनी उच्चकोटी के लेखन कार्य के माध्यम से ये दूर-दूर तक जाने जाते थे।

प्रेम माधुरी इनकी सर्वोत्कृष्ट रचना है

इनकी कृतियों का अध्ययन करने पर आभास होता है कि इनमें कवि, लेखक और नाटककार बनने की जो प्रतिभा थी, वह अदभुत थी। ये बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न साहित्यकार थे। उनकी प्रमुख कृतियों में से यद्यपि भारतेन्दु जी विविध भाषाओं में रचनायें करते थे, किन्तु ब्रजभाषा पर इनका असाधारण अधिकार था। इस भाषा में इन्होंने अदभुत शृंगारिकता का परिचय दिया है। इनका साहित्य प्रेममय था, क्योंकि प्रेम को लेकर ही इन्होंने अपने ‘सप्त संग्रह’ प्रकाशित किए हैं। प्रेम माधुरी इनकी सर्वोत्कृष्ट रचना है।

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