आर्य समाज की शादी अवैध, नहीं मिली कानूनी मान्यता …

रजिस्ट्रार ने आर्य पद्धति से हुए विवाह को वैध मानने से किया इंकार

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आर्य समाज कि शादी को अवैध माना है. बता दें कि इस समय शादी रजिस्ट्रेशन का प्रचलन ज्यादा हो गया है. कोर्ट में शादी -विवाह को पंजीकृत करने वाले रजिस्ट्रार ने अब आर्य समाज पद्धति से हुई शादी को वैध मैंने से इंकार कर दिया है. उनका कहना है कि आर्य समाज हिंदू धर्म का ही एक सुधार आंदोलन रहा है. आर्य समाज ने कभी नहीं कहा कि वे हिंदू नहीं हैं. उलटे वे तो कहते हैं कि हम लोग ही शुद्ध रूप से वैदिक हैं और कालांतर में इस वैदिक धर्म में घुस आई. ऐसी स्थिति में रजिस्ट्रार क्या कहना चाहते हैं कि शादी सिर्फ वही सही हैं, जिनमें पुरोहित आधे-अधूरे श्लोक बोल कर भांवरें डलवा देते हैं.

आप भी गौर करके हिन्दू शादियों में देखिये कभी, तो पाएंगे कि पुरोहित किसी भी श्लोक को शुद्ध नहीं बोल पा रहा है. सच बात तो यह है कि आम तौर पर पुरोहितों को हिंदू समाज के षोडश संस्कारों की व्याख्या तक पता नहीं होती. नतीजा यह होता यह है, कि शादी-विवाह, मुंडन में वह वही श्लोक बोलता है, जो मृत्यु के समय बोला जाता है. तब आर्य समाज की परंपरा पर यह कुठार क्यों?

वेद- मंत्रों से संपन्न होती है आर्य समाज की शादी…

आपको बता दें कि आर्य समाज की शादी में वेद- मंत्रों का उच्चारण होता है. इस समाज की शादी में यजुर्वेद मंत्रों का पाठ करते हुए शास्त्री समस्त विधि-विधानों के साथ शादी संपन्न कराते हैं. आर्य समाज मंदिर में हुई शादी को आर्य समाज वैलिडेशन एक्ट 1937 और हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के अंतर्गत मान्यता भी दी जाती हैं. इसमें सभी धर्म के लोग शादी कर सकते है. कहा जाता है कि यदि दोनों ही पक्ष हिन्दू है तो उन्हें हिन्दू मैरिज एक्ट और अलग धर्म के है तो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत प्रमाण पत्र दिया जाता है. जबकि इसके विपरीत आर्य समाज मंदिर की ओर से बड़े पैमाने पर जारी किए जाने वाले विवाह प्रमाण पत्रों की वैधता को इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार ने मानने से इनकार कर दिया है. रजिस्ट्रार ने कहा है कि सिर्फ आर्य समाज मंदिर की ओर से विवाह प्रमाण पत्र जारी होने से विवाह साबित नहीं होता है.

दो अलग- अलग जातियों के जोड़ने का सेतु है आर्य- समाज….

गौरतलब है कि जब भारत में ब्रिटिश शासन था तब आर्य समाज को विवाह की मान्यता की पद्दति मिल गई थी. 1937 में अंग्रेजों ने आर्य मैरिज वैलिडेशन एक्ट बनाया था जिसके तहत अलग-अलग जातियों के युगल परस्पर शादी कर सकते थे. साथ ही अलग- अलग धर्मों के लोग भी शादी कर सकते थे. लेकिन पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, कि आर्य समाज को शादी का प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार नहीं है. उनके प्रमाण पत्रों की वैधता नहीं है. आर्य समाज एक हिन्दू सुधार आन्दोलन है. इसकी स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1875 में बंबई में मथुरा के स्वामी विरजानन्द की प्रेरणा से की थी. बता दें कि यह आन्दोलन हिंदू धर्म में सुधार के लिए प्रारम्भ हुआ था. आर्य समाज में शुद्ध वैदिक परम्परा में विश्वास करते थे तथा मूर्ति पूजा, अवतारवाद, बलि, झूठे कर्मकाण्ड व अन्धविश्वासों को अस्वीकार करते थे. इसमें छुआछूत व जातिगत भेदभाव का विरोध किया तथा स्त्रियों व शूद्रों को भी यज्ञोपवीत धारण करने व वेद पढ़ने का अधिकार दिया.

शादियों का पंजीकरण अनिवार्य…

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्थिति यह है कि रजिस्ट्रार द्वारा जारी किया गया विवाह प्रमाणपत्र ही एकमात्र वैध दस्तावेज है. यदि दोनों पक्ष हिंदू हैं, तो आर्य समाज विवाह को संबंधित कार्यालय में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत किया जा सकता है. 25 अक्टूबर 2007 को, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि सभी विवाहों को बिना किसी धर्म के अपवाद के पंजीकृत किया जाना चाहिए. अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को विवाहों का पंजीकरण अनिवार्य बनाने के लिए तीन महीने के भीतर कानून बनाने का निर्देश दिया. स्त्री के अधिकारों को सुरक्षित करने के उद्देश्य से विवाह का पंजीकरण अनिवार्य किया गया था. विवाह के रजिस्ट्रेशन से पत्नी को पति की संपत्ति में पूरा हक़ आसानी से हासिल हो जाता है.

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शादियां अवैध तो बच्चे भी वैध कैसे…

कोर्ट की वकील शिवानी के अनुसार लोगों को बुरा लगेगा परन्तु आर्यसमाज या आर्यसमाजी यजुर्वेद के मंत्रों से पूर्ण विधि-विधान से विवाह करते हैं. जबकि पौराणिक लोग या गैर आर्यसमाजी एक घंटे में श्लोक बोलकर या गणेशजी के मंत्र बोलकर शादी निपटा देते हैं. आर्यसमाजी रीति-रिवाज से विवाह पूरी एक रात में अनुष्ठापित हो पाता है. यजुर्वेद के मंत्रों से विवाह होता है. शास्त्री जी उस विवाह को सम्पन्न करते हैं और जिन-जिन का विवाह हुआ है, उनका नाम रजिस्टर में दर्ज किया जाता है. रजिस्ट्रार को समझाया गया कि आप मैरिज को आर्यसमाजी रीति-रिवाज से विवाह करने की वजह से रजिस्टर्ड नही कर रहे. इस लिहाज से तो अब तक इस रीति से हुई सारी शादियाँ अवैध हुईं और उनके बच्चे अवैध संतानें.

कोर्ट के जजमेंट को समझा नहीं गया…

आपको बता दें कि ताजा मामला एडवोकेट शिवानी के एक क्लाइंट का है. उनके क्लाइंट ने शादी को रजिस्टर्ड कराने के लिए ऑन लाइन आवेदन किया था. इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार ने शादी का प्रमाण पत्र देने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि शादी का प्रमाण पत्र आर्य समाज ने जारी किया था. इस संदर्भ में एडवोकेट शिवानी ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर अपने क्लाइंट के हवाले से लिखा है कि मैं जब इलाहाबाद हाई कोर्ट में ऑनलाइन मैरिज रजिस्ट्रेशन के बाद रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट लेने गयी तो वहां मुझसे रजिस्ट्रार ने साफ कह दिया कि हम आर्य समाज रीति-रिवाज से की गयी शादियों को वैलिड नहीं मानते हैं. आर्य समाज में कोई शादी-वादी नही होती.

मैंने उनको हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 7 में प्रावधानित सप्तपदी तथा धारा 8 में मैरिज रजिस्ट्रेशन की बात कही तो उन्होंने मुझे सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट दिखा दिया. जबकि सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट यह है कि वह आर्यसमाज के सर्टिफिकेट को वैध मैरिज प्रमाणपत्र नहीं मानता. आर्य समाज की शादी को कहीं से भी अवैध नही किया गया है. इससे स्पष्ट है, कि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को ठीक से समझा नहीं गया.

मामलें में आर्य समाज सभा चुप क्यों?

एडवोकेट शिवानी ने बताया कि हम आर्य समाज प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश, लखनऊ के समक्ष एक प्रत्यावेदन प्रस्तुत करने जा रहे हैं कि हमारे माता-पिता का विवाह 15 जून 1986 को अलीगढ़ में आर्यसमाज रीति-रिवाज के द्वारा अनुष्ठापित हुआ था, जो टिपिकल अरेंज मैरिज थी. ऐसी स्थिति में इनके विवाह को विवाह वैधानिक समझा जाए? है ? और यदि आर्यसमाज रीति-रिवाज से किया गया विवाह वैध है तो आर्य समाज प्रतिनिधि सभा ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष क्यों नही रखा? सरकार के समक्ष अपना पक्ष क्यों नही रखा? क्यों आपने आर्यसमाज मैरिज वैलिडेशन का हवाला नही दिया? क्यों आर्य समाज मत का अनुसरण किया जाए? जब आपके पास एक सही विज़न नही है. आपके पास करैक्ट लीडरशिप नही है.

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